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बीत गए आठ बरस, नहीं बनी आठ किमी सड़क

संवाद सहयोगी, रानीखेत : पहाड़ में ग्रामीण विकास की कुंजी यानी सड़कें तंत्र के नकारेपन से करा

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 11:00 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 11:00 PM (IST)
बीत गए आठ बरस, नहीं बनी आठ किमी सड़क
बीत गए आठ बरस, नहीं बनी आठ किमी सड़क

संवाद सहयोगी, रानीखेत : पहाड़ में ग्रामीण विकास की कुंजी यानी सड़कें तंत्र के नकारेपन से कराह रही हैं। इसे बजट की बाजीगरी कहें या अफसर व राजशाही की सुस्ती, दूर गांवों को रोड से जोड़ने के दावे हकीकत बयां कर रहे। राज्य मंत्री के विधानसभा क्षेत्र की जलमग्न सड़क इसकी बानगी भर है। आठ वर्ष पूर्व स्वीकृत आठ किमी लंबा ऐना जाख मोटरमार्ग मूर्तरूप तो न ले सका। उल्टा भारी भरकम बजट बहाने के बाद सड़क नदी में है या नदी रोड पर इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है।

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पर्वतीय अंचल में ग्रामीण विकास का बुरा हाल है। कहीं सड़कें ही नहीं, कहीं आधी अधूरी। जहां मोटा बजट खर्च किया भी गया तो वह कटान के वर्षो बाद तक बदहाल पड़ी है। द्वाराहाट ब्लॉक व सोमेश्वर विधानसभा के सुदूर आठ दस गांवों को सड़क सुख के मकसद से सरकार ने वर्ष 2011 में मलिया घाटी से ऐना जाख रोड को मंजूरी दी। कटान में लाखों की रकम खर्चने के बाद सड़क को आधा अधूरा ही छोड़ दिया गया। मौजूदा हालात इतने बद्तर हैं कि सड़क नदी में तब्दील हो चुकी है। मगर जनप्रतिनिधियों या विभागीय अधिकारियों को यह सब नजर नहीं आता। विडंबना यह कि राज्य मंत्री रेखा आर्या की यह विधानसभा है तो केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा का भा गहरा ताल्लुक। इधर ईई पीएमजीएसवाई एचबी जोशी कहते हैं, डामरीकरण शीघ्र कराया जाएगा।

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तमाम गांवों का संपर्क कटा

दो दिन की बारिश ने ऐना भिटारकोट मोटर मार्ग से जुड़े गांवों को अलग थलग सा कर दिया है। रोड कटान कर भगवान भरोसे छोड़ दी गई सड़क पर मलिया नदी का पानी बह रहा। हादसे की आशंका में आवागमन ठप हो चुका है।

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बेबस प्रधानों ने साध ली चुप्पी

ऐना जाख मोटर मार्ग से करीब दस गांव जुड़े हैं। इनमें मुख्य रूप से ऐना, कुंवाली, नैणी, मलियाल, कुलसीवी, बकथल, लालर, भिटारकोट, जाख शामिल है। मगर सड़क की दुर्दशा पर इन गांवों के प्रधानों की चुप्पी भी दुर्भाग्यपूर्ण है।

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'यह क्षेत्रवासियों के साथ छलावा है। सरकारी बजट का दुरूपयोग भी। स्थानीय जनप्रतिनिधियों को जनसमस्याओं से कोई सरोकार नहीं रहा। सड़क पर वर्षो से नदी बह रही लेकिन सरकार के नुमाइंदे बेखबर बैठे हैं। डामरीकरण भले नहीं किया गया लेकिन दूर गांवों को कुछ लाभ तो मिल ही रहा था। अब वाहन चलने बंद से हो गए हैं।

- हेम पांडे, सामाजिक कार्यकर्ता'


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