ज्ञान व संस्कारों के बगैर शिक्षा अधूरी
संवाद सहयोगी, रानीखेत : शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है। सांस्कृतिक ज्ञान व संस्कारों के बगैर श्ि
संवाद सहयोगी, रानीखेत : शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है। सांस्कृतिक ज्ञान व संस्कारों के बगैर शिक्षा अधूरी है, इसीलिए संस्कृति शिक्षा का अभिन्न अंग है। विद्यार्थियों में सामाजिक भाव की संस्कृति का विकास करने में शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में वर्तमान शिक्षा प्रणाली में संस्कृति का समावेश बेहद जरूरी है। तभी नौनिहालों में सामाजिकता के साथ नागरिकता व नैतिकता की सोच आकार ले सकेगी।
यह बात मुख्य अधिशासी अधिकारी (कैंट बोर्ड) ज्योति कपूर ने मिशन कॉलेज में गुरुवार को सांस्कृतिक शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र की ओर से 'शिक्षा व संस्कृति' विषयक तीन दिनी कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि कही। उन्होंने सोशल मीडिया आदि पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी संस्कृति को भूलती जा रही जो अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। ऐसे में किताबी तालीम के साथ संस्कृति ज्ञान भी जरूरी है। ज्योति ने कहा, शिक्षा का सीधा संबंध मनोविज्ञान, समाज, दर्शन व अर्थशास्त्र के साथ भाषा विज्ञान से भी है। यह भाषा व संस्कृति को जोड़ने वाली सतत प्रक्रिया है।
प्रधानाचार्य सुनील मसीह ने कहा, शिक्षा से विद्यार्थी समाज, मानव जीवन, सांस्कृतिक विरासत व परंपरा सीखता है। संस्कृति के समावेश से उनमें जिम्मेदारी व नागरिकता की भावना जन्म लेती है। इससे पूर्व सीईओ ज्योति ने दीप जलाकर कार्यशाला का शुभारंभ किया। सर्वधर्म प्रार्थना भी हुई।
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पहले दिन इन बिंदुओं पर मंथन
= मल्टीमीडिया के जरिये सांस्कृतिक शोध एवं प्रशिक्षण (सीसीआरटी), शिक्षक एवं सांस्कृतिक शिक्षा, पर्यावरण के प्रति सचेतता, जिले की सांस्कृतिक परंपराओं का अध्ययन, राजभाषा नीति आदि।
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ये रहे मौजूद
शिक्षक दीप चंद्र पांडे, डॉ. विनीता खाती, मनीषा ढैला, सीमा बोरा, संदीप गोरखा, मनोज जोशी, विमलेश, हरीश बिष्ट, रमेश चंद्र, दीप पंत, मनोज जोशी, भुवन पांडे, जीवन तिवारी, नंदन रावत आदि।