दीपावली में झुलसे तो नहीं मिलेगा इलाज
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं लोगों को बेहतर उपचार देने के बजाय उन
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं लोगों को बेहतर उपचार देने के बजाय उनके लिए मुसीबत का सबब बनती जा रही है। खुद झुलस रहे अस्पतालों से लोगों को उपचार मिलने की कोई उम्मीद बाकी नहीं रह गई है। हालत यह है कि झुलसे रोगियों के लिए जिला मुख्यालयों में उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है।
दीपावली पर्व के मौके पर पटाखों से जलने के कई मामले हर साल सामने आते हैं, लेकिन सालों बाद भी इसको लेकर सरकार ने कोई पहल नहीं की। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय की बात करें तो यहा लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए तीन बड़े अस्पताल खोले गए हैं। जिला अस्पताल के अलावा बेस अस्पताल व विक्टर मोहन जोशी राजकीय महिला चिकित्सालय मुख्यालय में स्थित है। लेकिन इनमें से एक भी अस्पताल में बर्न वार्ड की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। औपचारिकताएं पूरी करने के लिए बेस अस्पताल में एक कमरे को बर्न वार्ड बनाया गया है। लेकिन उसमें बर्न वार्ड जैसी एक भी सुविधा नहीं है। बस तीन चार बेड लगाकर उसे बर्न वार्ड का नाम दे दिया गया है। अस्पताल में जहा जले या झुलसे लोगों के उपचार के लिए चिकित्सकों का अभाव है। वहीं संसाधनों के अभाव में तीनों अस्पताल ऐसे रोगियों के लिए रेफरल सेंटर में तब्दील होकर रह गए हैं। अल्मोड़ा जिले के अस्पतालों की बात करें तो यहा जिले के अलावा बागेश्वर जनपद के रोगी भी उपचार कराने आते हैं। लेकिन उच्च नीति नियंताओं में इच्छाशक्ति की कमी और शासन की लापरवाही के लिए ये अस्पताल रोगियों की जान से खेलने का काम कर रहे हैं।
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बच्चा वार्ड को बना दिया बर्न वार्ड
जिले में स्वास्थ्य महकमा जले और झुलस चुके पीड़ितों के उपचार के लिए कितना संजीदा है। इसका अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि अधिकारियों ने औपचारिकताएं पूरी करने के लिए बेस अस्पताल के बच्चा वार्ड के बाहर रंग से बर्न वार्ड लिखकर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली है।
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बेस में संसाधनों के बिना सुलग रहा बर्न वार्ड
जिले के बेस अस्पताल में औपचारिकताओं के लिए तैयार किया गया बर्न वार्ड बिना संसाधनों के सुलग रहा है। वार्ड में एसी, आक्सीजन व तमाम चिकित्सा संसाधनों का अभाव है। एक दो पंखे लगे हैं। लेकिन वह भी राम भरोसे है।
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क्या है बर्न वार्ड के मानक
- बर्न वार्ड में 20 से 25 डिग्री तापमान हर समय मैंटेन होना चाहिए।
-दिन में तीन चार बार फिनाइल से सफाई होनी चाहिए।
- तीमारदार और चिकित्सक बाहर से पहने जूते अंदर न ले जाएं क्योंकि गंदे जूते चप्पलों से इंफेक्शन का खतरा रहता है।
- मरीज से मिलने वाले लोग एप्रन पहने बिना अंदर न जाएं।
- झुलसे रोगियों से लोगों को बार बार न मिलने दिया जाए।
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लापरवाही से चली गई कई की जान
जिला मुख्यालय में बर्न यूनिट के अभाव में यहा के अस्पताल रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। यह बड़े ताज्जुब की बात है कि चंद वंश के राजाओं के समय से स्थापित इस शहर में चिकित्सा सेवाओं का बुरा हाल है। एक ओर सरकार जिले में मेडिकल कालेज को अस्तित्व में लाने के दावे कर रही है। वहीं सच्चाई यह है कि बर्न वार्ड के अभाव में कई लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं।
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बेस अस्पताल में जितने संसाधन हैं उनसे रोगियों का उपचार करने का प्रयास किया जाता है। अगर स्थिति अधिक खराब होती है तो उन्हें हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है। वर्तमान में मेडिकल कॉलेज निर्माणाधीन है और जल्द ही यह कक्ष भी कॉलेज को डिलिवर्ड किया जाना है, मेडिकल कॉलेज का निर्माण पूरा होने के बाद बर्न वार्ड में सभी सुविधाएं मिलने लगेगी।
-डॉ.एचसी गढ़कोटी, सीएमएस, बेस अस्पताल