सुधारीकरण को तरस रहा बडन मेमोरियल मैथोडिस्ट चर्च
डीके जोशी, अल्मोड़ा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व पर्यटन नगरी में स्थापित ब्रिटिश साम्राज्य के वैभ्
डीके जोशी, अल्मोड़ा
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व पर्यटन नगरी में स्थापित ब्रिटिश साम्राज्य के वैभवशाली अतीत की प्रतीक बडन मेमोरियल मैथोडिस्ट चर्च अनुरक्षण को तरस रहा है। सन् 1887 में अस्तित्व में आए इस इमारत की बाहरी दीवारों में अधिकांश स्थानों पर काई जम चुकी है। वहीं छत भी जीर्ण-क्षीर्ण स्थिति में पहुंच गई है। जिससे यह ऐतिहासिक इमारत अपना सौंदर्य खोती जा रही है। भवन निर्माण की प्राचीन गोथिक शैली में निर्मित इस चर्च का निर्माण पूरी तरह से स्थानीय पत्थरों से किया गया है। इसके विशाल कक्ष की काष्ठकला अत्यंत बारीक व सुंदर है। जब भी देशी व विदेशी पर्यटक इस पर्यटन स्थली के सैर सपाटे पर पहुंचते हैं, इस चर्च का दीदार करना नहीं भूलते हैं। पुरातन हो चुके इस चर्च को अब बेहतर अनुरक्षण की दरकार आन पड़ी है।
अल्मोड़ा स्थित यह गिरजाघर उत्तराखंड का दूसरा मैथोडिस्ट चर्च है। इसकी विशेषता यह है कि फ्रांस में सृजित गोथिक (इंडो-यूरोपियन) शैली के इस चर्च का निर्माण पूरी तरह स्थानीय पत्थरों से किया गया है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान 1897 में अपने पूर्ण स्वरूप में आए इस चर्च की कई विशेषताएं हैं। चर्च के विशाल कक्ष जिसमें काष्ठ कला इतनी बारीक व सुंदर है कि वह विचलित मन को भी शांति प्रदान करती है। चर्च ऊंचाई वाले स्थान में स्थापित होने से यहा से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं साफ दृष्टिगोचर होती हैं। जिस गोथिक शैली में चर्च का निर्माण हुआ है यह फ्रांस में 12 वीं से शुरू होकर 16 वीं शताब्दी तक पूरे यूरोप में इसका प्रचलन रहा। ऐतिहासिक गिरजाघर का अस्तित्व उपेक्षा के चलते कब तक संरक्षित रहेगा कहा नहीं जा सकता। जब भी देश के विभिन्न हिस्सों से पर्यटक पहाड़ का रूख करते है, वह इस इस चर्च की वास्तुकला को करीब से निहारते हैं।
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फोटो- 6 एएलएमपी 2
परिचय-चित्र में
एतिहासिक बडन मेमोरियल चर्च को सहेजने का काम शुरू कर दिया गया है। चर्च के विशाल कक्ष के अनुरक्षण का काम पूरा कर दिया गया है। चर्च की निगहबानी के लिए इसके इर्द-गिर्द सीसीटीवी कैमरा भी लगा दिए गए हैं। इस प्राचीन धरोहर के वाह्य क्षेत्र की दीवारों तथा पुरानी हो चुकी छत के सुंदरीकरण के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
-रॉविन्सन दास, पाश्चर इंचार्ज, बडन मेमोरियल चर्च
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चर्च की वास्तुकला अद्भुत है। इसका निर्माण गोथिक शैली में किया गया है। गोथिक भवन निर्माण की एक शैली है। जो फ्रांस के गोथ जगह से शुरू हुई। इसलिए यह गोथिक शैली कहलाती है। यह वास्तविक मेहराब पर आधारित होती है और भवन को ऊंचा बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें विशेष तौर पर की स्टोन का उपयोग किया जाता है।
-डॉ.वीडीएस नेगी, इतिहास विभाग, एसएसजे परिसर, अल्मोड़ा