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सरकारी उदासीनता का पर्याय बना शिल्प उन्नयन संस्थान

जिले की जागेश्वर विधानसभा के गरूड़ाबांज में प्रस्तावित शिल्प उन्नयन संस्थान उपेक्षा का शिकार हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 11:00 PM (IST)Updated: Sun, 24 Nov 2019 11:00 PM (IST)
सरकारी उदासीनता का पर्याय बना शिल्प उन्नयन संस्थान
सरकारी उदासीनता का पर्याय बना शिल्प उन्नयन संस्थान

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : जिले की जागेश्वर विधानसभा के गरूड़ाबांज में प्रस्तावित मुंशी हरिप्रसाद टम्टा हस्तकला शिल्प उन्नयन संस्थान सरकारी उदासीनता का पर्याय बनकर रह गया है। हस्तकला के संरक्षण और पहाड़ के शिल्पियों को रोजगार मुहैया कराने के लिए इस संस्थान के निर्माण की घोषणा की गई थी। लेकिन बजट न मिल पाने के कारण अब यह संस्थान अधर में लटक गया है।

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पर्वतीय क्षेत्र के हस्तशिल्प को बढ़ावा देने और यहां के शिल्पियों को अपनी प्रतिभा का हुनर दिखाने के लिए बेहतर मंच उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पूर्ववर्ती सरकार में गरूड़ाबांज में इस हस्तशिल्प संस्थान को खोले जाने का निर्णय लिया गया था। सरकार की मंशा थी कि यहां स्थानीय शिल्पियों को प्रोत्साहन दिया जा सके और यहां उपलब्ध कच्चे पदार्थो से तमाम तरह के उत्पादों का निर्माण किया जा सके। ताकि पर्वतीय क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा हो सकें और पलायन की समस्या से भी काफी हद तक निजात मिल सके। शुरूआत में इस योजना में कार्य शुरू कराया गया था। लेकिन बाद में बजट न मिल पाने के कारण अब निर्माण कार्य आधा अधूरा पड़ा है। स्थानीय शिल्पियों की मानें तो प्रोत्साहन के अभाव में अब नई पीढ़ी इस विधा से दूर होती जा रही है। अगर इस संस्थान का निर्माण हो गया होता तो वर्तमान पीढ़ी को भी शिल्प के माध्यम से रोजगार से जोड़ा जा सकता।

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सोलह विभागों को शामिल करने की थी तैयारी

जागेश्वर विधानसभा के गरूड़ाबांज में प्रस्तावित शिल्प संस्थान में सूक्ष्म और लघु उद्योग विभाग ने तकरीबन सोलह संस्थान खोलने की योजना बनाई थी। जिसमें हस्तकला और तांबे के वाद्य यंत्रों और अन्य कलाओं को श्रेणीवार अलग अलग किया जाना था। जबकि इस अलावा संस्थान में शोध कार्य अलग से करने की योजना बनाई गई थी।

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पूर्ववर्ती सरकार ने इस योजना की घोषणा करने के बाद करीब तीन करोड़ रुपये टोकन मनी के रूप में भी अवमुक्त किए थे। लेकिन बाद में शासन से इस योजना के लिए बजट मिलना बंद हो गया । जिस कारण यह योजना आज भी अधूरी पड़ी है।

गोविद सिंह कुंजवाल, विधायक जागेश्वर


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