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'द्वाराहाटा बिखौती म्यौल लागि रौ..'

जागरण संवाददाता द्वाराहाट अद्भुत अलौकिक अविस्मरणीय..। रणसिंह की गर्जना। नगाड़े की टंका

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 05:52 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 05:52 PM (IST)
'द्वाराहाटा बिखौती म्यौल लागि रौ..'
'द्वाराहाटा बिखौती म्यौल लागि रौ..'

जागरण संवाददाता, द्वाराहाट : अद्भुत, अलौकिक, अविस्मरणीय..। रणसिंह की गर्जना। नगाड़े की टंकार में वीर रस की हुंकार। अगले ही पल हुड़के की घमक में भक्ति, प्रेम व श्रृंगार रस का बेजोड़ संगम। दो ढाई लटक (कदमों के थिरकने की विशिष्ट नृत्य कला) के साथ झूमते रणबांकुरों का देवाधिदेव शिव के आंगन में पहुंच भावविभोर करती आस्था। नगाड़े निषाणों के साथ लयबद्ध झोड़ा गीतों की लाजवाब प्रस्तुति। फिर त्रिवेणी में पवित्र डुबकी के साथ सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने का आह्वान भी।

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ऐसा ही नजारा दिखा गुप्त सरस्वती, सुरभि व नंदिनी की त्रिवेणी स्थित विभांडेश्वर तीर्थ में। भगवान शिव को भेंटने की अद्भुत उमंग। 12 प्रमुख ग्राम पंचायतें, इतने ही नगाड़े निषाणों के साथ तीन भिन्न मार्गो से आल, नौज्यूला व गरख धड़े (दल) के रणबांकुरों मेला स्थल में प्रवेश किया तो बिखौती मेले की उमंग दूनी हो गई।

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घंटों चली जोड़ गीतों की टक्कर

मध्य रात्रि बाद दूसरे प्रहर आल, नौज्यूला व गरख धड़ों ने स्वरचित झोड़ा गीतों के जरिये एक दूसरे को घंटों टक्कर दी। 'खोल दे माता खोल भवानी, धारमें किवाड़ा, बार जोड़ा निषाण ल्यैरु तेरो दरबारा..' के माध्यम से देवस्तुति से मंत्रमुग्ध भी किया। इसके बाद 'द्वाराहाटा बिखौती म्यौल लागि रौ, तिकणीं दीपा ऊण पणौल, मनुव र्वट शिषूण सागा तिकड़ी दीपा खाण पणौल..' 'धर अनुली चहा कितली, खित शेरुआ पति, मैसों हबेरा सैंणी होश्यारा, बणगी सभापति..' आदि लोकगीतों पर खूब थिरके।

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महास्नान की निभाई रस्म

तड़के ब्रह्मा मुहुर्त में त्रिवेणी पर नहान (महास्नान) की रस्म निभाई गई। तत्पश्चात परंपरानुसार पहले शिव फिर सती कलावती देवी की चरण पादुका का विशेष पूजन किया गया। इस अवसर पर रणा, वलना व असगोली के दो, सिमलगांव, नैणी, बेढुली, कुई, तल्ली कहाली, बूंगा तथा सलना।

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गरख धड़े की शान डंगा बाजा

बिखौती कौतिक में गरख धड़े में शामिल बूंगा गांव का डंगाबाजा खास आकर्षण रहा। डांडिया से मेल खाती यह नृत्य शैली गुजरात को सांस्कृतिक लिहाज से उत्तराखंड से जोड़ती है।

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चांचरी की चंचलता देती चुस्ती

किसी दौर में अध्यात्म एवं वीरता से जुड़ा स्यालदे बिखौती मेले का विस्तार कुमाऊं व गढ़वाल के 31 परगनों तक था। भाबर, गढ़वाल, चंपावत से रणबांकुरे मीलों लंबा सफर तय कर मध्यरात्रि यहां पहुंचते थे। इनकी थकान को चांचरी की चंचलता दूर करती थी। यही वजह है बिखौती में झोड़ा गीतों के साथ चांचरी की भी अहमियत है।


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