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भारत और अमेरिका के जवानों ने जोड़े दिली रिश्ते, ताउम्र रहेंगे जिंदा

चौबटिया में भारत और अमेरिकी सेना के जवानों ने सिर्फ संयुक्त युद्धाभ्यास किया बल्कि एक दूसरे से दिली रिश्ते भी बनाए और उनके ताउम्र रहने की इच्छा जतार्इ।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 29 Sep 2018 05:44 PM (IST)Updated: Sat, 29 Sep 2018 05:44 PM (IST)
भारत और अमेरिका के जवानों ने जोड़े दिली रिश्ते, ताउम्र रहेंगे जिंदा
भारत और अमेरिका के जवानों ने जोड़े दिली रिश्ते, ताउम्र रहेंगे जिंदा

रानीखेत, [मनीष साह]: भारत व अमेरिका का 14वां संयुक्त सैन्य युद्ध अभ्यास हर लिहाज से महत्वपूर्ण रहा। दोनों देशों के सैनिकों ने जहां एक दूसरे के अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर युद्ध तकनीक साझा की, वहीं एक दूसरे को करीब से समझने का बेहतर मौका भी मिला। भारतीय सेना के अनुशासन व व्यवहार से अमेरिकी सैनिक खासे प्रभावित नजर आए, तो 14 दिन के इस सफर में एक दूसरे से सामरिक रिश्तों से इतर दिली रिश्ते भी जोड़े। इस उम्मीद के साथ कि मित्रता की यह डोर ताउम्र जिंदा रखी जाएगी। यूएस आर्मी के लेफ्टिनेंट शिवा थापा, जोसेफ, रोनाल्डो आदि ने तो भारतीय जांबाजों को सपरिवार अमेरिका आने का न्यौता भी दिया। 

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चौबटिया क्षेत्र में दो सप्ताह तक चले भारत अमेरिकी संयुक्त सैन्य अभ्यास में दोनों देशों की सेनाओं ने रक्षा सहयोग के उद्देश्य से एक दूसरे की युद्धक तकनीक को बारीकी से सीखा तो रणनीति साझा भी की। जमीन से जमीन पर जंग हो या आतंकवाद प्रभावित ठिकानों पर जंगी हेलीकॉप्टर से सेंध दोनों सेनाओं ने बगैर क्षेत्रवासियों व खुद को नुकसान पहुंचाए ऑपरेशन को अंजाम देने का युद्ध कौशल भी साझा किया।  

एक दशक में बहुत एडवांस हो गई भारतीय सेना 

यूएस आर्मी में भारतवंशी सार्जेंट गुरप्रीत सिंह गिल कहते हैं कि युद्ध तकनीक में हर पांच वर्ष में बदलाव होता रहता है। भारतीय सेना को ही लीजिए पिछले एक दशक में टेक्टिस के साथ टेक्निक के मामले में काफी एडवांस हो चुकी है। अब यदि भारत को जम्म कश्मीर के बजाय अफगानिस्तान व अन्य आतंकवाद प्रभावित देशों में जंग लड़नी पड़े तो उसे वहां की भौगोलिक परिस्थिति के अनुरूप तकनीक अपनानी पड़ेगी ताकि हर मोर्चे पर वह खुद को कुशल साबित कर सके। 

सार्जेंट गिल ने कहा कि यूएस आर्मी की भी माउंटेन डिवीजन है। हमें वहां के हिसाब से तकनीक अपनानी पड़ती है। अमेरिकी सेना अधिकतर बाहरी देशों मसलन, अफगानिस्तान, सीरिया, इराक आदि का अनुभव रखती है। ऐसे में अमेरिकी फौज की लड़ाई दूसरे तरह की है। यही भारत के साथ भी है। उसे भी मौके के हिसाब से तकनीक में बदलाव करना पड़ेगा। 

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