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हिमालय में विलुप्त होने लगी प्राचीन फसल प्रजातिया

संवाद सहयोगी, रानीखेत : हिमालयी राज्य में औषधीय गुणों वाले मोटे अनाज के उत्पादन की सदियों पुरान

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 10:45 PM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 10:45 PM (IST)
हिमालय में विलुप्त होने लगी प्राचीन फसल प्रजातिया
हिमालय में विलुप्त होने लगी प्राचीन फसल प्रजातिया

संवाद सहयोगी, रानीखेत : हिमालयी राज्य में औषधीय गुणों वाले मोटे अनाज के उत्पादन की सदियों पुरानी परंपरा अब खतरे में है। वैज्ञानिकों की मानें तो नित नए शोध ने नए बीजों के बूते बंपर पैदावार तो दी पर विकास की बयार में पहाड़ की प्राचीन फसल प्रजातिया संकटग्रस्त हो चली हैं। ऐसे में पुरानी फसल प्रजातियों के बीजों के साथ ही पेटेंट पर अंकुश को वैज्ञानिक किसान अधिकारों के संरक्षण की पुरजोर वकालत करने लगे हैं।

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मौजूदा दौर पहाड़ की मोटी अनाज प्रजातियों के माकूल नहीं रहा। वैज्ञानिकों के मुताबिक उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में कौंणी, चींड़ा (मडवा की तरह), जखिया की प्रजातिया, काला पहाड़ी भट, गहत, राजमा, सफेद तिल, काला जीरा, जौं, उपराऊ का धान (लाल चावल) आदि प्रजातिया विलुप्ति की कगार पर हैं।

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अपनी प्रजातियों का समय रहते करा लें पंजीकरण : डॉ. ममता

सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ सब ट्रॉपिकल हॉर्टीकल्चर (एसआइएसएच) मुक्तेश्ववर व राष्ट्रीय पादप आनुवाशिकी संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में उत्तराखंड जैविक कृषि प्रशिक्षण व अनुसंधान संस्थान मजखाली में प्रदेश स्तरीय कार्यशाला हुई। संस्थान की डॉ. ममता आर्या ने किसान अधिकार अधिनियम-2001 की गहन जानकारी दी। कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों की तमाम प्रजातिया अन्य क्षेत्रों में नहीं उगतीं। कोई पेटेंट न कर पाए इसलिए किसानों के अधिकारों का संरक्षण जरूरी है।

पर्वतीय किसान इन फसलों का पंजीकरण समय रहते करा लें।

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पहाड़ में 70 किस्मों का कृषिकरण : डॉ. पूरन

डॉ. पूरन सिंह मेहता ने कहा, मौसम परिवर्तन की चुनौतियों के बीच पुराने बीजों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई वाले मध्य हिमालय क्षेत्र में लगभग 70 प्रकार की फसलों का कृषिकरण किया जाता है। लोक चेतना मंच अध्यक्ष जोगेंद्र सिंह बिष्ट ने भी स्थानीय परंपरागत फसलों को बचाने पर बल दिया।

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बागवानी में भी हैं भिन्न प्रजातिया : डॉ. राम

डॉ. राम नारायण ने कहा, बागवानी में भी प्रचलन से भिन्न किस्म है तो किसान पंजीकरण करा सकता है। उन्होंने पंजीकरण व संरक्षण में किसानों को पुरस्कृत करने वाली योजनाओं की भी जानकारी दी।

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18 वषरें तक रहेगा अधिकार डॉ. राय

डॉ. कृष्ण माधव राय ने कहा, एक्ट में पाच किस्मों का पंजीकरण नि:शुल्क है। इसके बाद किसानों का 18 वषरें तक पंजीकृत किस्म पर अधिकार रहता है। राज्य जैविक कृषि संस्थान प्रभारी डॉ. देवेंद्र सिंह नेगी ने विलुप्त होती पुरानी प्रजातियों के संरक्षण को ठोस नीति पर जोर दिया। अजय रस्तोगी आदि ने भी विचार रखे। कार्यक्त्रम में मुझौली, चिनौड़ा, गल्ली बस्यूरा, रणखिला आदि गावों के किसान पहुंचे।


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