खुशहाली के दावों में छिपी अन्नदाता की बदहाली
जागरण टीम, रानीखेत : पहाड़ सरीखी कठिन खेती। उस पर संसाधन समेत चौतरफा चुनौतियों से घिरे ि
जागरण टीम, रानीखेत : पहाड़ सरीखी कठिन खेती। उस पर संसाधन समेत चौतरफा चुनौतियों से घिरे किसान की आय दोगुनी तो छाड़िए उसे पेंशन ही नसीब होना दूभर हो रहा। सरकारी दावों को उलट प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का जहा दम फूल रहा, वहीं हजारों किसान बजट पर ब्रेक लगने से पिछले कई माह से पेंशन को तरस रहे।
सरकार बेशक किसानों को उनकी फसल की लागत को दोगुना समर्थन मूल्य देने का दावा कर रही, पर हालात बिल्कुल उलट हैं। विषम भौगोलिक हालात वाले पर्वतीय किसानों की तो पेंशन ही समय पर नहीं मिल पा रही। अन्य जिलों को छोड़ अल्मोड़ा का ही जिक्र करें तो यहा 1667 पेंशनधारक अन्नदाताओं को बीते तीन माह से धेला ही नसीब न हो सका है। ऐसे में प्रति किसान एक हजार की दर से 50.10 लाख रुपये पर बजट का रोड़ा लगा है। हालाकि पिछली राशि के लिए करीब छह माह इंतजार करना पड़ा था।
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पड़ोसी नैनीताल और बेहाल
रानीखेत : पड़ोसी नैनीताल जनपद का अन्नदाता भी ऐसी बदहाली झेल रहा। यहा पहाड़ व मैदानी क्षेत्र में खेती कर रहे करीब 2200 किसानों को पिछले छह माह से पेंशन नहीं मिली है। किसान रोजाना बैंकों के चक्कर काट मायूस लौट रहा। जिले में किसानों की पेंशन का 1.43 करोड़ रुपये शासन में दबे हैं।
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'तीन माह से पेंशन नहीं दी जा सकी है। बजट का भारी अभाव है। अल्मोड़ा जिले में करीब 1667 पेंशन धारक किसान हैं।च्यादा बताने को अधिकृत नहीं हूं।
- जगमोहन सिंह कफोला, जिला समाज कल्याण अधिकारी अल्मोड़ा'
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'इन हालात में पहाड़ का किसान खुशहाल नहीं बन सकता। पर्वतीय कृषि के अनुरूप पहले नीति ही स्पष्ट नहीं है। उस पर पेंशन समय पर न मिलने से किसान हतोत्साहित हो रहा है। खासकर विकासखंड के काश्तकारों की इसी तरह उपेक्षा होती रही तो पंचायत प्रतिनिधि आदोलन को बाध्य होंगे।
- रचना रावत, ब्लॉक प्रमुख
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'पिछली बार मैंने सदन में मामला उठाया तो शासन ने कुछ बजट उपलब्ध कराया था। मगर किसानों के मामले में सरकार को गंभीर होने की जरूरत है। पेंशन व मुआवजे के मामले में बार बार बजट आदि का बहाना कर पर्वतीय कृषि को उन्नत नहीं बना सकते।
- करन माहरा, उपनेता