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हिमालय में 70 फीसद जीव-जंतु व वनस्पतियां घटीं

वैश्विक तापवृद्धि यानी ग्लोबल वॉर्मिग की बढ़ती दर से हिमालय में 70 प्रतिशत जीव-जंतु और वनस्पति घट गई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 10:21 PM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 10:21 PM (IST)
हिमालय में 70 फीसद जीव-जंतु व वनस्पतियां घटीं
हिमालय में 70 फीसद जीव-जंतु व वनस्पतियां घटीं

दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा

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वैश्विक तापवृद्धि यानी ग्लोबल वॉर्मिग की बढ़ती दर, इस पर काबू पाने की कोशिशों के बीच नई शोध रिपोर्ट ने चिंता बढ़ा दी है। ताजा अध्ययन के मुताबिक पूरा हिमालयी क्षेत्र बेहद नाजुक है। साल दर साल तापक्रम में वृद्धि से यह बहुत जल्द गर्म हो जाता है। यही कारण है कि सन् 1700 से अब तक हिमालय की तकरीबन 70 से 80 फीसद वनस्पति व जीव प्रजातियां कम हो गई हैं। वैज्ञानिक आगाह करते हैं कि बढ़ते तापक्रम व जलवायु परिवर्तन पर अंकुश के लिए हमें ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन पर रोक लगा देश के औद्योगिक क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीक से प्रदूषण को न्यून स्तर पर लाने के ठोस प्रयास करने होंगे।

पिछले कई वर्षो से हिमालयी क्षेत्र में शोध व अध्ययन में जुटे मित्र राष्ट्र के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (काठमांडू) में प्रोग्राम कोआर्डिनेटर डॉ. नकुल क्षेत्री एक रिपोर्ट का हवाला दे बताते हैं कि हिमालयन बेल्ट में तापवृद्धि व जलवायु परिवर्तन वैश्रि्वक एजेंडा बन चुका है। आगाह करते हैं कि इन चुनौतियों के लिहाज से हिमालय बेहद नाजुक है। यही वजह है कि यहां विविधता आने लगी है। फ्लोरा एंज फोना पर अब तक किए गए अध्ययन के अनुसार वह कहते हैं कि जैवविविधता काफी बदली है। सन् 1700 से अब तक की शोध रिपोर्ट बताती है कि हिमालय में 70 से 80 फीसद वनस्पतिया व जीवजंतुओं में कमी आई है।

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उच्च हिमालय की ओर खिसक रहा जीवन बकौल डॉ. नकुल, जलवायु परिवर्तन के कारण जीवन उच्च हिमालय की ओर जगह तलाश रहा। यानी वनस्पतियां, जीव जंतु तापवृद्धि से बचने को ऊपर की ओर खिसक रहे हैं। फल व फूल आने का चक्र गड़बड़ाने लगा है। समयपूर्व फूल खिलना व फल आना इसका बड़ा उदाहरण है।

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मेहमान पक्षी तक प्रभावित

ताजा शोध रिपोर्ट के मुताबिक मानवीय गतिविधिया मसलन ग्रीन हाउस गैस के अधिक उत्सर्जन से वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ रही है। इससे तापक्रम बढ़ने व जैवविविधता में बदलाव से मेहमान पक्षियों के व्यवहार में बदलाव दिखने लगा है। डॉ. नकुल के मुताबिक जंगलात बचाने होंगे। तभी जलस्रोत व जैवविविधता भी बचेगी।

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'पहले दिन जलसंकट व प्रबंधन के उपायों पर गहन चर्चा की गई। दूसरा, हिमालयी क्षेत्रों में जीवनयापन के संसाधन मुख्य बिंदु रहे। हिमालय बचाने को माउंटेन अकादमी बनाए जाने की जरूरत जाहिर की गई। आज मंगलवार को गोलमेज सम्मेलन में व्यापक मंथन होगा। वरिष्ठ विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लेकर नीति बनानी होगी। लद्दाख में कैसे पर्यटन विकास हो, इस पर भी चर्चा की गई। नेपाल की आइसीआइसीएमओडी ने शोध रिपोर्ट तैयार की है कि हिमालयी क्षेत्रों में प्रभाव ज्यादा पड़ रहा है।

- डॉ. आरएस रावल, निदेशक जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा'


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