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अवैज्ञानिक विकास से खत्म हो रहे प्राकृतिक खाद्य संसाधन : प्रो. सुकुमार

संवाद सहयोगी अल्मोड़ा भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के प्रोफेसर रमन सुकुमार ने मानव एवं वन्य

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 06:08 PM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 06:08 PM (IST)
अवैज्ञानिक विकास से खत्म हो रहे प्राकृतिक खाद्य संसाधन : प्रो. सुकुमार
अवैज्ञानिक विकास से खत्म हो रहे प्राकृतिक खाद्य संसाधन : प्रो. सुकुमार

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के प्रोफेसर रमन सुकुमार ने मानव एवं वन्यजीव संघर्ष के लिए सीधे तौर पर मानवीय दखल मसलन विकास से जुड़ी गतिविधियों को जिम्मेदार ठहराया। चेताया कि प्राकृतिक वन क्षेत्रों के विखंडन से वन्यजीवों के खाद्य संसाधन खतरे में हैं। समय रहते व्यापक नीतिगत ढाचा तैयार न किया तो संकट और गहरा जाएगा।

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प्रो. सुकुमार जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत् विकास संस्थान कोसी कटारमल के स्थापना दिवस पर 'मानव वन्यजीव संघर्ष के बीच दोराहे पर संरक्षण' विषयक व्याख्यानमाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने मानव वन्यजीव संघर्ष के लिए जिम्मेदार कारक वन विखंडन की भूमिका को हाथी मानव संघर्ष के जरिये रेखाकित किया। स्पष्ट किया कि विकास से जुड़ी गतिविधियों के कारण प्राकृतिक वनों का लगातार विखंडन हो रहा। इससे वन्यजीवों के प्राकृतिक खाद्य संसाधन कम पड़ने लगे हैं। कई राज्यों में वनभूमि खनिज खनन व खपत के लिए बायोमास के संग्रह की वजह से जंगली जानवरों के चारे व विचरण स्थल पर भी संकट गहराता जा रहा। ऐसे में समय रहते वन्यजीवों के प्रबंधन को व्यापक नीतिगत ढाचा तैयार करना मौजूदा दौर की सख्त जरूरत है।

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कम किया जा सकता है मानव वन्यजीव संघर्ष

कैंपा (वनीकरण व प्रबंधन योजना प्राधिकरण) के जरिये वन्यजीव प्रबंधन की पुरजोर वकालत करते हुए प्रो. सुकुमार ने कहा, आबादी के मद्देनजर जैव विविधता संरक्षण के साथ ही मानव वन्यजीव संघर्ष कम किया जा सकता है। व्यापक लक्ष्यों में खासतौर पर जलवायु परिवर्तन में चल रही व्यवस्था के तहत लोगों की जमीनी स्तर पर सक्रियता व एकजुटता पर भी जोर दिया। बताया कि राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना 2017-32 में कई बिंदु शामिल कर लिए गए हैं।

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देश विदेश में संस्थान का नाम : डॉ. रावल

निदेशक डॉ. आरएस रावल ने संस्थान का ब्योरा रखा। कहा बीते 30 वषरें में शोध कार्यो के बूते संस्थान ने देश विदेश में खास पहचान बनाई है। विविध कार्यक्रमों के जरिये लोगों को पर्यावरण संरक्षण व आजीविका से जोड़ा जा रहा।

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हिमालयी क्षेत्र चुनौतियों भरा : अजय टम्टा

अध्यक्षता कर रहे सासद अजय टम्टा ने भारत रत्‍‌न पं. गोविंदबल्लभ पंत को याद किया। उन्होंने हिमालयी क्षेत्र की चुनौतियों की ओर ध्यान खींचा। साथ ही संस्थान में प्लास्टिक का इस्तेमाल न किए जाने को पर्यावरणहित में सराहनीय पहल बताया। इससे पूर्व भारतरत्न पं.पंत की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया। संचालन दीपा बिष्ट व समापन वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक प्रो. किरीट कुमार ने किया।

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प्रदर्शनी भी लगी

राष्ट्रीय हिमालयी अध्यन मिशन के तहत वित्त पोषित परियोजनाओं के इनहेयर (मासी), चिया (नैनीताल), चिराग (मुक्तेश्वर) आदि संस्थाओं ने विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई।

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इन्होंने दिया व्याख्यान

निदेशक विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर देहरादून डॉ. एमपीएस बिष्ट, पूर्व कुलपति गढ़वाल विवि प्रो. एसपी सिंह, महानिदेशक उत्तराखंड स्टेट काउंसलिंग फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी (यूकॉस्ट) डॉ. राजेंद्र डोभाल, निदेशक भारतीय वन्यजीव संस्थान डॉ. गोपाल सिंह रावत।

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ये रहे मौजूद

निदेशक वीपीकेएएस डॉ.ए. पटनायक, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून डॉ. बीएस अधिकारी, सेवानिवृत्त वैज्ञानिक हेमंत बडोला, प्रोफेसर कुमाऊं विवि डॉ. जीत राम, पालिकाध्यक्ष प्रकाश जोशी, डॉ. शिव दत्त तिवारी, निदेशक जड़ीबूटी शोध संस्थान डॉ.गजेंद्र रावत, डॉ. गिरीश पंत आदि।


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