बीएचयू के युवा मुद्रा शास्त्री करेंगे 2800 वर्ष पुरानी मुद्राओं का अध्ययन, सामने आएगा इतिहास के कई सत्य
अभी तक कहा जाता है कि भारत से बाहर से आने वाले लोगों के प्रभाव में ये मुद्राएं जारी हुईं और 2800 वर्ष पुरानी हैं। इन पुरानी चांदी की मुद्राओं के अध्ययन हेतु इनका मेटल एनेलिसिस किया जाएगा जिसमें भौतिकी धातुकीय भौमिकी विभागों से भी सहयोग लिया जाएगा।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : भारतीय मुद्राशास्त्र के इतिहास में आहत (पंचमार्क) मुद्राओं का स्थान अग्रणी है। ये मुद्राएं भारत की सर्वप्रथम बड़े पैमाने पर जारी होने वाली मुद्राएं हैं जो पूरे देश में पाई गई हैं। निश्चित रूप से ये कहा जा सकता है कि ये मुद्राएं पूरे देश में सर्वस्वीकार्य थीं। फिर भी यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि ये मुद्राएं किस काल की हैं। किसने इन्हें जारी किया, किस टकसाल से जारी की गईं। अब तक के इन छिपे रहस्यों पर शोध करेंगे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला संकाय स्थित प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अमित कुमार उपाध्याय। इन्हें इन मुद्राओं का सत्य सामने लाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आइएनएसए- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संस्था) की प्रतिष्ठित परियोजना सौंपी गई है।
अभी तक कहा जाता है कि भारत से बाहर से आने वाले लोगों के प्रभाव में ये मुद्राएं जारी हुईं और 2800 वर्ष पुरानी हैं। इन पुरानी चांदी की मुद्राओं के अध्ययन हेतु इनका धातु विश्लेषण (मेटल एनेलिसिस) किया जाएगा, जिसमें भौतिकी, धातुकीय, भौमिकी विभागों से भी सहयोग लिया जाएगा। पता लगाया जाएगा कि इनका निर्माण कहां और किस तकनीक से होता था और इसके लिए चांदी कहां से लाई जाती थी। प्रारंभ में इस प्रोजेक्ट का दायरा उत्तर प्रदेश से प्राप्त सिक्के ही हैं, जिसे भविष्य में और विस्तृत किया जाएगा। उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जगहों जैसे काशी, मथुरा, पांचाल, अयोध्या से प्राप्त सिक्कों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उन पर प्राप्त प्रतीक चिह्नों की ऐतिहासिक व्याख्या भी की जाएगी। डा. उपाध्याय ने बताया कि इन मुद्राओं की प्राचीनता के संंबंध में साहित्यिक साक्ष्यों मुख्य रूप से वैदिक ग्रंथों में प्राप्त संदर्भों से भी इनकी पुष्टि कराई जाएगी।
बाजार में मिल रहे हैं नकली सिक्के
डा. उपाध्याय ने बताया कि यह भी एक तथ्य है कि वर्तमान में इन पुरानी मुद्राओं की नकल करके जाली मुद्राएं भी बनाई जाती हैं, उनकों बाजार में उनके प्राच्य मूल्य के आधार पर बेचा जाता है। इस पर रोक लगाने की आवश्यकता है। एक सामान्य शोधार्थी के लिए नकली और सही मुद्राओं में अंतर कर पाना कठिन होता जा रहा है। इससे अध्ययन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।