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मीरजापुर-प्रयागराज के बीच जलधारा में आबाद होगा कछुओं का संसार, वाराणसी स्थित कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य का होगा स्थानांतरण

वाराणसी स्थित कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य को जल्द ही मीरजापुर-प्रयागराज के बीच गंगा की जलधारा में स्थानांतरित किया जाएगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 09:12 PM (IST)Updated: Fri, 15 Nov 2019 08:10 AM (IST)
मीरजापुर-प्रयागराज के बीच जलधारा में आबाद होगा कछुओं का संसार, वाराणसी स्थित कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य का होगा स्थानांतरण
मीरजापुर-प्रयागराज के बीच जलधारा में आबाद होगा कछुओं का संसार, वाराणसी स्थित कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य का होगा स्थानांतरण

मीरजापुर [सतीश रघुवंशी]। वाराणसी स्थित कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य को जल्द ही मीरजापुर-प्रयागराज के बीच गंगा की जलधारा में स्थानांतरित किया जाएगा। शासन द्वारा इस संभावित पुनर्वास को अधिसूचित किया जा रहा है। योजना के तीन दशक बाद अस्तित्व में आए इस अभ्यारण्य को अब शिफ्ट करने के पीछे राष्ट्रीय जलमार्ग प्रोजेक्ट है, जो इस अभ्यारण्य से ही गुजरता है। राष्ट्रीय वन्यजीव संस्थान द्वारा इसके लिए सर्वे किया गया है।

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वर्तमान में वाराणसी के रामनगर किले से मालवीय रेल रोड ब्रिज के बीच करीब सात किलोमीटर की लंबाई में देश की पहली कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य स्थित है। इसकी परिकल्पना गंगा एक्शन प्लान 1989 के तहत की गई थी। स्वच्छ जल में यह देश का पहला कछुआ अभ्यारण्य बना। सेंचुरी के संरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा इस क्षेत्र में बालू खनन पर रोक लगाई गई थी। पर्यावरण मंत्रालय ने 2017 में राज्य सरकार को अपनी ङ्क्षचता से अवगत कराया था जिसमें कहा गया था कि लगातार खनन से घाटों का अस्तित्व खतरे में है। बाद में कछुआ वन्यजीव अभ्यारण्य के संरक्षण की प्रक्रिया चल ही रही थी कि राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना आई जिससे एक नई समस्या पैदा हो गई। अधिकारियों की मानें तो यह 1620 किमी. लंबी जलमार्ग योजना कछु़आ अभ्यारण्य से ही होकर गुजरती है। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि इसके बाद अभ्यारण्य को शिफ्ट करने के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव संस्थान द्वारा सर्वे कराया गया। इसमें यह पाया गया कि मीरजापुर-प्रयागराज के बीच अभ्यारण्य के लिए संभावित ठिकाना बन सकता है। जल्द ही इस पर सरकार अंतिम निर्णय लेगी क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हाल ही में हुई राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में इसे उच्च प्राथमिकता पर रखा गया है।

चंबल नदी के कछुओं की प्रजाति

कछुओं के अंडे को चंबल नदी से सुरक्षित किया जाता है जिन्हें सारनाथ स्थित ब्रीङ्क्षडग सेंटर में सेया जाता है। इसके बाद गंगा नदी में छोड़ दिया जाता है। इनमें साधारण कछुआ, सुंदरी कछु़आ, ढोंढोका और पछेड़ा वैरायटी के कछ़ुए शामिल हैं। यह सभी मांसाहारी कछुए हैं जो गंगा नदी में बहने वाले अधजले शव आदि को खाकर पानी को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैविक तरीके से जल स्वच्छता के लिए इन कछुओं का बड़ा महत्व है।

गंगा की चौड़ाई ज्यादा होना कारण

मीरजापुर से प्रयागराज के बीच गंगा नदी की चौड़ाई व गहराई ज्यादा है। ऐसे में वन्यजीवों, कछुओं आदि के लिए यह क्षेत्र बेहद मुफीद है। यदि कछुआ अभ्यारण्य इस क्षेत्र में शिफ्ट होता है तो निश्चित रुप से स्वच्छ गंगा, निर्मल गंगा अभियान में सफलता मिलेगी।

-रविशंकर सिंह, अवर अभियंता राष्ट्रीय जल आयोग।


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