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विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का शुभारंभ, गूंज उठे मानस के प्रसंग

वाराणसी में रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का बुधवार को गणेश चतुर्थी पर रामनगर में चौक स्थित रामलीला पक्की में द्वितीय गणपति पूजन के साथ शुभारंभ हो गया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 08:35 PM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 08:35 PM (IST)
विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का शुभारंभ, गूंज उठे मानस के प्रसंग
विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का शुभारंभ, गूंज उठे मानस के प्रसंग

वाराणसी । धर्म- अध्यात्म के साथ ही बनारसी फक्कड़ मस्ती को सहेजे अनूठे पारंपरिक आयोजन रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का बुधवार को गणेश चतुर्थ पर द्वितीय गणपति पूजन के साथ शुभारंभ हो गया। संध्या काल 6.38 बजे चतुर्थी तिथि लगने के बाद गणेश चतुर्थी के मान के तहत चौक स्थित रामलीला पक्की पर विघ्नहर्ता की वैदिक मंत्रों के बीच पूजा आराधना की गई। झाल-मंजीरा और मृदंग की थाप गूंजी और रामायणी दल ने 'गाइये गणपति जग वंदन...' के साथ मानस के प्रसंगों में पगे दोहों का गायन शुरू कर दिया।

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पहले दिन का आयोजन

पहले दिन श्रीगणेश के तौर पर सात दोहों को स्वर दिए। प्रमुख पंचस्वरूपों का वरण किया गया। नवग्रह, हनुमान जी के मुखौटे, मानस संवाद पोथी व रामलीला के दौरान उपयोग में ले आए जाने वाले साजो सामान और रामायणी दल के मृदंग का भी पूजन किया गया। रामलीला अधिकारी डा. जयप्रकाश पाठक यजमान थे। प्रधान रामायणी रूद्रनारायण पाठक समेत पूरे दल का भी अभिनंदन-वंदन किया। गणपति देव की आरती उतारी गई और लीला प्रेमियों में सारिणी का वितरण किया गया। पुरोहित के रूप में लक्ष्मी नारायण व्यास के आचार्यत्व में ब्राह्मïणों के समूह ने सस्वर मंत्रों के बीच पूजन अनुष्ठान कराए। रघुनाथदत्त व्यास, शिवदत्त व्यास, कृष्ण दत्त व्यास, मनोज श्रीवास्तव, संतोष यादव, चंद्रशेखर शर्मा, जामवंत गुरु (रमेश पांडेय), अनिल सिंह, शत्रुघ्न समेत विशिष्टजन थे। 

दोहे चौपाइयों के गायन से श्रीगणेश और समापन भी

अनंत चतुर्दशी से मासपर्यंत चलने वाली रामनगर की रामलीला में कई प्रसंगों का मंचन नहीं किया जाता। इनमें बालकांड के 175 दोहे-चौपाइयों का रामलीला मंचन शुरु होने से एक दिन पहले तक नित्य संध्याकाल पाठ किया जाएगा। इसमें बालकांड के वह प्रसंग होंगे जिनका रामलीला मंच पर मंचन नहीं किया जाता है। इनमें शिव विवाह, नारद मोह, राजा भानु प्रताप की कथा समेत विभिन्न प्रसंग होंगे। इसकी शुरुआत सात दोहों से कर दी गई। अगले नौ दिनों में बराबर हिस्सों में वितरण कर दोहा गायन किया जाएगा। लीला मंचन का समापन होने के बाद भी रामायणी दल के गान से ही इसे पूर्ण विराम दिया जाता है। वास्तव में सनकादिक मिलन प्रसंग के साथ उत्तरकांड के 91वें दोहे पर ही मंचन संपन्न हो जाता है। कोट विदाई के दौरान शेष दोहे का गायन कर रामायणी दल लीला को पूर्णता देते हैं। इसके अलावा दशरथ के अंतकाल और रावण मरण जैसे प्रसंग भी रामायणियों के ही जिम्मे होते हैं। 


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