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बनारस में पश्मीना शाल की बुनाई के लिए लेह में चल रही ऊन की कताई, 20 जनवरी के बाद काम शुरू

हाथ में हुनर और उसे समृद्ध करने की ओर बढ़ते कदम के क्रम में बहुत जल्द बनारस और गाजीपुर में पश्मीना शाल की बुनाई शुरू हो जाएगी। अभी तक यह शाल कश्मीर के क्षेत्रों में बनते रहे हैं लेकिन बनारस में यह पहला प्रयास है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 14 Jan 2022 09:10 AM (IST)Updated: Fri, 14 Jan 2022 09:10 AM (IST)
बनारस में पश्मीना शाल की बुनाई के लिए लेह में चल रही ऊन की कताई, 20 जनवरी के बाद काम शुरू
बनारस में पश्मीना शाल की बुनाई के लिए लेह में चल रही ऊन की कताई

जागरण संवाददाता, वाराणसी : हाथ में हुनर और उसे समृद्ध करने की ओर बढ़ते कदम के क्रम में बहुत जल्द बनारस और गाजीपुर में पश्मीना शाल की बुनाई शुरू हो जाएगी। अभी तक यह शाल कश्मीर के क्षेत्रों में बनते रहे हैं लेकिन बनारस में यह पहला प्रयास है। इससे महिलाएं जहां रोजगार से जुड़ेंगी वहीं उन्हें सशक्त होने में भी सहायता मिलेगी। शाल बुनाई का कार्य बनारस और गाजीपुर में 20 जनवरी के बाद शुरू होना है। इसके लिए यहां की संस्थाएं धागे की कताई का काम लेह में तेजी से करा रही हैं।

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कश्मीर में पश्मीना सिर्फ एक शॉल नहीं बल्कि जीवन का वह धागा है जिसे बुनकर एक परिवार भविष्य का सपना संजोता है। जानकारों की मुताबिक पश्मीना शाल की कुछ सालों पहले मांग बहुत थी और इसे पूरे भारत के साथ विदेशों में भी बेचा जाता था। बीच की अवधि में आई गिरावट को एक बार फिर से उठाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। बनारस और गाजीपुर में ही लगभग पांच हजार लोगों को रोजगार से जोड़ने की तैयारी है।

आनलाइन मार्केटिंग की तैयारी तेज :

कृषक विकास ग्रामोद्योग संस्थान सेवापुरी संदीप सिंह बताते हैं कि इस क्षेत्र के लिए पश्मीना नया होने के बावजूद अवसर की भरपूर संभावना है। रोजगार के साथ आय तो बढ़ेगी ही पश्मीना शाल के बाजार को लेकर लगातार कोशिशें जारी हैं। आनलाइन मार्केटिंग पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है।

सितंबर से मार्च तक सर्द मौसम में काम :

चांगथांगी बकरियों को पूर्वी लद्दाख में और तिब्बती पठार के पश्चिमी भाग वाले चांगथंग क्षेत्र के खानाबदोश चांगपा पशुपालकों द्वारा पाला जाता है। उनके लिए समुद्र तल से 4,000 से 5,000 मीटर की ऊंचाई पर भेड़, पश्मीना बकरियों के लिए चारागाहों की तलाश और सितंबर के अंत से मई तक लंबी सर्दियां मुश्किल भरी होती हैं। ईंधन इकट्ठा करना, बच्चों की देखभाल, खाना पकाना, पश्मीना धागे की कताई करते हुए इस दौरान काम के दिन लंबे गुजरते हैं। हर चांगपा परिवार में कम से कम 80-100 जानवर होते हैं। आमतौर पर बकरियों और भेड़ों की संख्या समान होती है। लेह की सहकारी समिति आल चांगथंग पश्मीना ग्रोवर्स कोआपरेटिव मार्केटिंग सोसायटी (राज्य द्वारा संचालित लद्दाख हिल डेवलपमेंट काउंसिल से संबद्ध) सीधे चरवाहों से एक तय दर पर कच्ची पश्मीना खरीदती है।


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