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'ईश्वर आवई, दरिद्र भागई' संग महिलाओं ने सूप बजाकर घरों से दरिद्रता को भगाया

पहले से चली आ रही परंपरा एकादशी की रात बीत जाने पर भोर में महिलाओं द्वारा धन की लक्ष्मी के आगमन के लिए परंपरा को निभाया जाता रहा है जो आज भी कायम है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 11:32 AM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 11:32 AM (IST)
'ईश्वर आवई, दरिद्र भागई' संग महिलाओं ने सूप बजाकर घरों से दरिद्रता को भगाया
'ईश्वर आवई, दरिद्र भागई' संग महिलाओं ने सूप बजाकर घरों से दरिद्रता को भगाया

जौनपुर, जेएनएन । गांवों में पहले से चली आ रही परंपरा एकादशी की रात बीत जाने पर भोर में महिलाओं द्वारा धन की लक्ष्मी के आगमन के लिए एक पुरानी परंपरा को निभाया जाता रहा है जो आज भी कायम है। एकादशी की रात बीतने के दौरान भोर में महिलाओं ने पुराने सूप को गन्ने के डंडे से पीटते हुए अपने घरों में हर कोने-कोने में जाकर के यह बोलते हुए 'ईश्वर आवाई, दरिद्र भागयीं' बोलते हुए और सूप को डंडे से पीटते हुए गांव से दूर ले जाने के बाद फेंक कर घर वापसी के बाद स्नान किया। अवध क्षेत्र में यह बहुत पुरानी परंपरा है जिसको आज भी कायम रखा गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से दरिद्रता घरों से भाग जाती है, घर में लक्ष्मी जी का वास होता है। यह परंपरा अनुसार सुख और समृद्धि से जोड़ा गया है। 

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इस संबंध में जब शाहपुर के पंडित बृज भूषण तिवारी ने बताया कि यह परंपरागत ढंग से चला रहा है। एकादशी वाली रात को पौ फटने के पहले दरिद्र नारायण को भगाया जाता है। दरिद्रा और लक्ष्मी सगी बहनें हैं। दरिद्रा बड़ी हैं। दोनों में विरोधाभास होने के कारण दोनों ही एक स्थान पर नहीं रहती हैं। परंपरागत विरोधी तत्व धारण करने के कारण दरिद्रा को भगा दिया जाता है। तो लक्ष्मी का स्थाई वास हो जाता है। मान्यता यह है कि मानव जीवन का बांस से तारतम्य जन्म से मृत्यु तक रहता है। चुकी बांस वनस्पति का ही अंश होता है और सुख को वनस्पति से जुड़ा माना जाता है। इसका अर्थ समृद्धि से जोड़ा जाता है। समृद्धि को लेना और अशुद्धि और दरिद्रता को भगाना के लिए यह परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसलिए इस टोटके में बांस का बना हुआ सूप पीटकर भगाने का अपना महत्व है।

इस बारे में गाव की ही बुजुर्ग महिला चंद्रावती ने बताया कि ऐसा बहुत पहले पुरखों के समय से ही किया जाता रहा है। इसके लिए सूप खरीदकर रखा रहता है। एकादशी की रात भोर में उठ कर सूप को बजाते हुए पूरे घर से दरिद्रता को भगा कर बस्ती से दूर फेंक दिया जाता है।


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