Vaccine आने तक जीना होगा कोरोना के साथ, वर्चुअल तरीके से करना होगा काम : प्रो. टीएम महापात्रा
लोग सार्वजनिक स्थलों पर जाने के बजाय वर्चुअल तरीके से काम पूरा करें। यह कहना है आइएमएस बीएचयू के वरिष्ठ माइक्रोबायोलॉजिस्ट प्रो. टीएम महापात्रा का।
वाराणसी, जेएनएन। चीन के पड़ोसी वियतनाम में कोरोना के 288 पॉजिटिव केस लेकिन मौत एक भी नहीं। ताइवान मानचित्र में चीन के ठीक नीचे है, लेकिन 440 कोरोना पॉजिटिव में से मात्र सात लोगों को जान गंवानी पड़ी। दक्षिण कोरिया में 10 हजार से ज्यादा केस लेकिन 258 मौतें, जापान में 15847 केस और 633 लोगों की मृत्यु। ये आंकड़े चीन से नजदीकी व काफी घने देशों के हैं। इसके पीछे शारीरिक दूरी, हाइजीन व बेहतर खानपान है। वहां इतना कड़ा लॉकडाउन भी नहीं लगाना पड़ा। हां, लोग वहां सार्वजनिक स्थलों पर जाने के बजाय वर्चुअल तरीके से काम निबटा रहे हैं। यह कहना है आइएमएस, बीएचयू के वरिष्ठ माइक्रोबायोलॉजिस्ट प्रो. टीएम महापात्रा का।
प्रो. महापात्रा के मुताबिक बिना लॉकडाउन के इन देशों ने जैसे कोरोना को हराया वह आदर्श है। वैक्सीन बनने तक मान लेना चाहिए कि हमें कोरोना के साथ ही जीना है। इसलिए थोड़ी भी लापरवाही काल को बुलाने की तरह है। इसके लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता की मजबूती जरूरी है। हमें आयुर्वेदिक नुस्खों को जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा। प्रो. महापात्रा डिस्टिंग्विश प्रोफेसर के तौर पर बीएचयू के वेबिनार में भी इन बातों को वह उठाते रहते हैं।
डिजिटल इंडिया का प्रसार जरूरी
सभी एकेडमिक कार्य ऑनलाइन के हवाले कर लोगों से दूरी बनाने में ही भलाई है। अब समय आ गया है कि सरकार जुट जाए, क्योंकि डिजिटल इंडिया का प्रसार तेजी से गांवों में होगा। यूरोप व यूएसए में 2021 तक सभी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। बावजूद इसके वहां शिक्षा रुकी नहीं है, क्योंकि सब कुछ सौ फीसद डिजिटलाइज हो चुका है। ऐसी व्यवस्था हमें भी करनी होगी।
वैक्सीन बना सकते हैं ये देश
प्रो. महापात्रा के अनुसार कोरोना का वैक्सीन आसान नहीं है लेकिन ब्रिटेन, इटली, अमेरिका, इजराइल और भारत जैसे देश इसका हल निकालने में सक्षम हैं। भारत में सरकारी से बेहतर कार्य निजी लैब कर रहे हैं। बकौल प्रो. महापात्रा वह खुद मलेरिया के वैक्सीन पर काम कर चुके हैं। परजीवी के मुकाबले वायरस का वैक्सीन बनना ज्यादा आसान है। हालांकि कोविड-19 वायरस बड़ा ही घातक है। अभी तक यह तीन बार म्यूटेशन कर गुणधर्म बदल चुका है, जिससे इसे पकडऩा मुश्किल है। यदि वैक्सीन बनने के बाद इसने जेनेटिक म्यूटेशन बदला तो यह मानवता को ज्यादा भारी पड़ सकता है।