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लोकसभा चुनाव- सेना व शहीदों के परिजनों का ख्याल रखने व स्पष्ट नीति वाली सरकार चाहिए

चंदौली जिले का बहादुरपुर गांव उस समय सुर्खियों में आ गया था जब 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमले में वहां के सीआरपीएफ जवान अवधेश यादव शहीद हो गए थे।

By Vandana SinghEdited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 02:16 PM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 02:16 PM (IST)
लोकसभा चुनाव- सेना व शहीदों के परिजनों का ख्याल रखने व स्पष्ट नीति वाली सरकार चाहिए
लोकसभा चुनाव- सेना व शहीदों के परिजनों का ख्याल रखने व स्पष्ट नीति वाली सरकार चाहिए

वाराणसी, [रत्नाकर दीक्षित]। चंदौली जिले का बहादुरपुर गांव उस समय सुर्खियों में आ गया था जब 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमले में वहां के सीआरपीएफ जवान अवधेश यादव शहीद हो गए थे। गांव वीरों का है, इसका प्रमाण यह कि लगभग दो दर्जन से अधिक युवा सेना व अद्र्धसैनिक बल में शामिल हो देश की सेवा कर रहे हैं। वैसे वह गांव एक और मामले में परचम फहरा रहा है। बहादुरपुर ओडीएफ गांव घोषित हो चुका है। वाराणसी जिले से सटे बहादुरपुर गांव बुनियादी सुविधाओं से भरपूर है। बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा व स्वास्थ्य के मामले में ग्रामीणों को असुविधा नहीं होती। गांव से चंद कदम दूर पड़ाव कस्बा है, कुछ कदम दूर पूर्व की ओर जाने पर चंधासी और पीडीडीयू नगर है। चंधासी में जहां कोयला मंडी है वहीं पीडीडीयू नगर में रेलवे का सबसे बड़ा जंक्शन है। वहीं पश्चिम में जाने पर वाराणसी शहर है। इन्हीं चार स्थानों पर गांव के अधिकतर युवा कार्यरत हैं। दस हजार आबादी वाले इस गांव में लगभग सभी बिरादरी के लोग हैं। लेकिन यादव, मुस्लिम व ब्राह्म्ण बहुल गांव में इस समय चुनावी चर्चा जोरों पर है। कोई भाजपा तो कोई गठबंधन को तरजीह दे रहा है। कुछ लोग कांग्रेस को भी आजमाने के मूड में हैं। मतलब साफ है यहां के ग्रामीण इस बात पर अड़े हैं कि मतदान तो करेंगे लेकिन, किसको करेंगे इस बात पर कुछ ग्रामीण कन्नी भी काट गए। ग्रामीणों को मलाल है तो बस यही कि रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं हैं।

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गांव में प्रवेश करते ही सबसे पहले शहीद के घर पहुंचे। चुनावी माहौल होने के बावजूद शहीद के दरवाजे पर कोई हलचल नहीं थी। लोहे के दरवाजे को कई बार पीटने के बाद भी नहीं खुला तो थोड़ी मायूसी हुई। अचानक साथी का मोबाइल बजा तो पता चला कि कॉल करने वाले शहीद के छोटे भाई बृजेश यादव हैं। उन्होंने बताया कि घर में केवल माता जी हैं वह भी बीमार हैं। वहीं ठहरिए दरवाजा खोलवाते हैं। कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो सामने शहीद की मां मालती देवी थी। अंदर जाने पर कमरे में शहीद अवधेश यादव की बहुत बड़ी तस्वीर रखी हुई थी। उनकी मां एकटक उसी तस्वीर को निहारे जा रही थीं। ऐसे में हिम्मत डिग गई। अब उनसे भला चुनाव के बारे में क्या बात करते। बावजूद इसके थोड़ी हिम्मत जुटाने के बाद पूछा माता जी, बहू को नौकरी मिली कि नहीं। बोलीं, बहू हिप्पी को नौकरी मिल गई है। वह डीएम कार्यालय में डयूटी पर है। रोज सुबह जाती है और शाम को आ जाती है। आगे कोई और प्रश्न करने की हिम्मत नहीं हुई।  वहीं पिता हरकेश चंधासी कोयला मंडी थे सुने वो आ गए। उनसे बात हुई तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरकार किसी की बने लेकिन आतंकवाद का सिर जरूर कुचले। पाकिस्तान व आतंकियों के खिलाफ ढुलमुल नीति वाली सरकार नहीं चाहिए। पुलवामा में जवान शहीद हुए तो मोदी सरकार ने कम से कम सर्जिकल स्ट्राइक तो किया। इससे कलेजे को थोड़ी ठंडक मिली। वहीं शहीद के भाई बृजेश भी कुछ देर बाद आ गए। बात छिड़ी तो आक्रोश उभर आया। बोले कि अब समय आ गया है, प्रत्येक नागरिक को अपनी भूमिका तय करनी होगी। समर्थन उसी पार्टी को जो सभी का ख्याल रखें।

उसके बाद वहां से निकले तो सीधे शहीद की पत्नी शिल्पी यादव को कॉल किया और मकसद भी बता दिया। शहीद की पत्नी का स्पष्ट कहना था कि घर में महज पति ही कमाने वाले थे। शहीद होने की खबर तो मानो परिवार पर वज्रपात था। इसके बाद बोलीं कि कम से कम केंद्र व प्रदेश की सरकारों ने शहीद के परिजनों की सुधि तो ली। इसके पहले कौन शहीद के परिजनों को पूछता था। योगी सरकार ने शहीदों की पत्नियों को नौकरी देकर नेक कार्य किया है। किसको वोट देंगी के प्रश्न पर कहा कि अब इसे सार्वजनिक नहीं कर सकती। फिर भी मेरा उसे समर्थन है जो देशहित में काम करें।

गांव के अधिकतर लोग चंद कदम दूर पड़ाव कस्बे में ही थे। वहां जाने पर चुनावी अड़ी मिल गई। बात बहुत ही सरल व सपाट ढंग से शुरू हुई। गांव के पूर्व प्रधान वीरेंद्र यादव गठबंधन को जिताते हैं। पूरी दबंगई से कहते हैं कि चंदौली संसदीय सीट से गठबंधन की जीत सुनिश्चित है। तर्क देते हैं कि तत्कालीन सांसद महेंद्र पांडेय ने कुछ काम नहीं किया है। लेकिन, वहीं आनंद स्वरूप चतुर्वेदी उनके तर्क को दरकिनार कर देते हैं। कहते हैं कि भाई ये तो खानदानी सपाई हैं। सांसद के काम इन्हें नहीं दिखाई देंगे क्योंकि विरोध का काला चश्मा बचपन से ही पहने हैं। एक जोरदार ठहाका लगाने के बाद दीपचंद चौरसिया ने कहा कि अब ये बताइए मोदी सरकार ने इतना काम किया उसके बाद भी लोग उनका विरोध कर रहे हैं तो उसे क्या समझा जाए। उनकी हां में हां श्रीप्रकाश सिंह भी मिलाते हैं। कहते हैं कि दो-तीन योजनाएं तो कमाल की निकलीं। मसलन उज्ज्वला, सौभाग्य, आयुष्मान का तो कोई काट ही नहीं है। कहते हैं कि इतनी बिजली कभी मिलती थी क्या। सड़कें लगातार बन रहीं हैं। अनिल श्रीवास्तव तत्काल विराम लगाते हैं। कहते हैं कि तुलना निष्पक्ष होकर करें। इतने साल कांग्रेस रही तो क्या कोई काम नहीं किया। अरे सुई से लेकर हवाई जहाज उसी के कार्यकाल में बना। बहुत देर केवल सुन रहे हिदायतुल्ला खां से नहीं रहा गया। वह भी बोल पड़े, कहा कि कई घोटालों का जन्म भी उसी के कार्यकाल में हुआ था। खालिस्तान, आतंकवाद, आदि किसकी देन है। थोड़ी देर में बात सर्जिकल स्ट्राइक पर आ गई। गोपेश यादव ने कहा कि इंदिरा गांधी से बड़ा निर्णय लेने वाला कौन है। अरे पाकिस्तान पर चोरी से बम नहीं गिरवाया बल्कि उसके दो भाग कर दिए। पंकज शर्मा को गोपेश की बात चुभ गई। बोले कि भाई साहब वह दौर कुछ और था ये दौर कुछ और है। अंतरराष्ट्रीय दबाव उस समय इतना नहीं था। करीब घंटे भर की लगी अड़ी में अचानक मुराहू प्रगट होते हैं। आते ही कहते हैं कि सरकार किसी की बने लेकिन उसका दृष्टिकोण सही होना चाहिए। अब कचोधन बंद करिए। अब कुछ रोजी-रोटी की भी बात हो जाए। उनके इतना कहने भर की देर थी कि अड़ी से उठ-उठकर लोग गंतव्य को रवाना हो गए।


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