श्रवण नक्षत्र व विजय काल का योग मिलने से दशमी 18 अक्टूबर को
असत्य पर सत्य व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक पर्व विजय दशमी यानी दशहरा इस बार 18 अक्टूबर को होगा। इस दिन श्रीराम ने रावण का वध किया था।
वाराणसी (जेएनएन): असत्य पर सत्य व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक पर्व विजय दशमी यानी दशहरा आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। श्रवण नक्षत्र युक्त इस तिथि में ही मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ने रावण का वध कर तीनों लोकों को राक्षसराज से मुक्ति दिलाई थी। यह तिथि-नक्षत्र इस बार 18 अक्टूबर को मिल रहा है। ऐसे में विजय दशमी इसी दिन मनाया जाएगा।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार आश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 18 अक्टूबर को दोपहर बाद 2.33 बजे लग रही है जो 19 अक्टूबर को शाम 4.39 बजे तक रहेगी। श्रवण नक्षत्र 17 अक्टूबर की रात 10.05 बजे लग जा रहा है जो 18 अक्टूबर को मध्य रात्रि के बाद 12.42 बजे तक रहेगा। शास्त्रों में कहा गया है कि 'ईषत्संध्यामतिक्रान्ता किष्चदुभिन्नतारका: विजयो नाम काकोयं सर्वकार्यार्थ सिद्धये' अर्थात् पूर्व दिन दशमी विजय काल को स्पर्श करती हो या विजय काल में व्याप्त हो, पर दिन (अगले दिन) केवल अपराह्न काल में ही व्याप्त हो। अत: दशमी, श्रवण व विजय काल का योग 18 अक्टूबर को मिलने से इसी दिन विजय पर्व का मान है।
धर्म ग्रंथ रत्न कोष के अनुसार कुछ संध्या का आक्रमण कर कुछ तारे निकल आए हों, उस समय का नाम विजय है। वह सारे काम और अर्थो को पूरा करने वाला होता है। अगर दो दिन तारों के उदय में व्याप्त हों अथवा न हों तो अपराजिता की पूजा में पूर्वा (पहले दिन) ही ली जाती है।
भविष्य पुराण में भी वर्णन है कि दशमी के दिन मनुष्य को अपराजिता का भली -भांति प्रयत्न पूर्वक पूजन करना चाहिए। अपराह्न के समय ईशानी दिशा में लेकर जो दशमी, नवमी से युक्त हो, उसमें क्षेम व विजय के लिए अपराजिता का विधि- विधान से पूजन करना चाहिए। नवमी के शेष से संयुक्त दशमी के दिन पूजी गई अपराजिता देवी विजय देती हैं। विजय दशमी सनातनधर्मियों के चार प्रमुख पर्वो में खास है। इसे देश-दुनिया में कहीं भी बसे सनातनी युगों से मनाते आ रहे हैं।
विजय दशमी पर अस्त्र-शस्त्र पूजन, शमी वृक्ष की विधिवत पूजा और अपराजिता का पूजन-अर्चन किया जाता है। इस बार विजय मुहूर्त दोपहर 1.59 बजे से 2.40 बजे तक है। इसे अपुच्छ मुहूर्त कहा गया है जिसमें किसी भी काम को प्रारंभ किया जा सकता है। इसमें किए गए सभी तरह के कार्यो में सफलता अवश्य प्राप्त होती है। प्राचीन काल में राजा-महाराज विरोधी देशों पर इस काल में आक्रमण करते थे।
विजय दशमी पर नीलकंठ दर्शन का विशेष महत्व होता है। इस पक्षी की भगवान शिव स्वरूप में मान्यता है। तिथि विशेष पर इनके दर्शन से निश्चित रूपेण सुख-समृद्धि, धन-ऐश्वर्य के साथ हर क्षेत्र में उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। भगवान श्रीराम के लंका प्रस्थान समय नीलकंठ पक्षी ने दर्शन दे कर विजय का शगुन दर्शाया था, तभी से विजय दशमी पर नीलकंठ दर्शन की परंपरा है।