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एसिड अटैक से रहीं हैं पीडि़त, बीएचयू की संगीत विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद भी करा रहीं शोध

एसिड अटैक और पैर की हड्डी अलग हो जाने के बाद भी बीएचयू की संगीत विभाग में प्रोफेसर पद से रिटायर होने के बाद भी यह शख्सियत जिस तरह से बनारस के संगीत घरानों और कबीर की सूफी व निर्गुण गीतों पर शोध व अनुसंधान करा रहीं हैं।

By saurabh chakravartiEdited By: Published: Mon, 14 Dec 2020 08:39 PM (IST)Updated: Mon, 14 Dec 2020 08:39 PM (IST)
एसिड अटैक से रहीं हैं पीडि़त, बीएचयू की संगीत विभाग से सेवानिवृत्ति के बाद भी करा रहीं शोध
मंच कला एवं संगीत संकाय में संगीत की आचार्य रहीं प्रो. मंगला कपूर।

वाराणसी, जेएनएन। एसिड अटैक और पैर की हड्डी अलग हो जाने के बाद भी बीएचयू की संगीत विभाग में प्रोफेसर पद से रिटायर होने के बाद भी यह शख्सियत जिस तरह से बनारस के संगीत घरानों और कबीर की सूफी व निर्गुण गीतों पर शोध व अनुसंधान करा रहीं हैं, वह किसी आम इंसान के लिए भी संभव नहीं है। आज वह अपने अंतर्गत कई शिष्याओं को पीएचडी करा रहीं हैं जिनमें कबीर के भोजपुरी से लगाव पर काफी बेहतरीन काम देखने को मिला है।

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मंच कला एवं संगीत संकाय में संगीत की आचार्य रहीं प्रो. मंगला कपूर अब अपने जीवन में घटे खतरनाक अनुभवों को कागजों में समेट रहीं हैं। जल्द ही उनकी जीवनी हम सबके सामने कठिन दौर से गुजर रही एक महिला, एक एसिड अटैक पीडि़ता और संगीतकार की भूमिका व अनुभवों से परिचित कराएगी। साठ के दशक में प्रो. मंगला कपूर जब सातवीं में पढ़ रहीं थीं, तब परिवार के बनारसी साड़ी के कारोबार और सुंदर बिटिया पर नाज खत्म करने के लिए कुछ आततायी पड़ोसियों ने रात उनके किराए के घर (अब झुकासो होटल) में सो रहीं मंगला का पूरा चेहरा जला दिया। कबीरचौरा अस्पताल से लेकर पटना सर्जरी अस्पताल तक वह करीब दस वर्षों तक भटकती रहीं। चेहरे व शरीर पर हुए 37 से ज्यादा आपरेशन से वह एकदम टूट चुकीं थीं। बचपन तो कब का निकल चुका था। फिलहाल, इलाज पूरा होने के बाद उन्होंने अग्रसेन कन्या पीजी कालेज में लोगों के ताने और सामाजिक दूरियों के बावजूद पढ़ाई पूरी की। जले चेहरे का लोग अक्सर मखौल उड़ाते थे। प्रो. कपूर बताती हैं कि यह उनकी हार होती अगर वह इन परिस्थितियों के आगे झुककर घर बैैठ जातीं।

बिना विकलांग कोटे के पार किया हर मुकाम

जब चेहरा नहीं था, सहेलियां नहीं थी और पढऩे को कई बार कैंपस भी नहीं था तो संगीत ने हौसला दिया। घरानों से लेकर स्कूल तक संतूर व हारमोनियम से लेकर आठ वाद्य यंत्रों पर अपनी पकड़ बनाई। प्रो. कपूर बतातीं हैं कि इसके बाद बीएचयू से बी.म्यूज, गोल्ड मेडल के साथ एम.म्यूज व पीएचडी की उपाधि ली और बिना किसी विकलांग कोटे के सहारे महिला महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पद चयनित हुईं। इसके बाद से जो सफर शुरू हुआ वह सेवानिवृत्ति के बाद भी जारी है।

मधुर आवाज के चलते मिली बनारस की लता मंगेशकर की उपाधि

प्रो. मंगला कपूर ने जीवनपर्यंत शादी नहीं की। उनकी सेवा करने वाले उनके छोटे भाई कैलाश कपूर भी आजीवन अविवाहित रहे। उनके मधुर व सूफियाना आवाज को देखते हुए 1982 में बनारस की लता मंगेशकर की उपाधि मिली है। वर्ष 2007 में एक एक्सीडेंट के दौरान उनके जांघ की हड्डियां दो खंडों में विभक्त हो गई तो लोगों ने कहा कि अब इनका सफर खत्म, मगर प्रो. कपूर एक साल बाद दोबारा जब बीएचयू के अपने चैंबर में पाईं गईं तो लोगों को काफी हैरानी हुई।

रिटायर होने के बाद प्रो. कपूर घर पर ही रहकर छोटे बच्चों को निश्शुल्क संगीत व वाद्य यंत्रों की शिक्षा देती हैं। सामनेघाट स्थित उनके निवास पर 10 वाद्ययंत्र हैं जिन पर वह रोज रियाज करती हैं। इसके साथ ही अपने संगीत को कंपोज कर वह खुद के बनाए गए आनलाइन मंच व यूट्यूब आदि पर साझा करती हैं। इतना ही नहीं सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने के लिए कई तरह के कार्य संस्थाओं से जुड़कर करती रहती हैं।


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