वाराणसी के स्टोन क्राफ्ट की दुनिया भर में बढ़ी डिमांड, जापान के प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं तारीफ
काशी के शिल्पी पत्थरों को तराश कर और जाली बनाने की कला (अंडर कट ) से तैयार उत्पाद दुनिया भर में अपनी पहचान बना रहा है। कला की खास बात यह है कि पत्थरों को बिना तोड़े-जोड़े उसके अंदर दूसरी और दूसरी के भीतर तीसरी मूर्ति बनाई जाती है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। बनारस की शिल्प कला की जब-जब बात होती है तो उसमें स्टोन क्राफ्ट का नाम प्रमुखता से आता है। काशी के शिल्पी पत्थरों को तराश कर और जाली बनाने की कला (अंडर कट ) से तैयार उत्पाद दुनिया भर में अपनी पहचान बना रहा है। कला की खास बात यह है कि पत्थरों को बिना तोड़े-जोड़े उसके अंदर दूसरी और दूसरी के भीतर तीसरी मूर्ति बनाई जाती है। इस शानदार कला की स्वयं जापान के प्रधानमंत्री भी तारीफ कर चुके हैं।
गंगापार रामनगर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले सैंकड़ों शिल्पी परिवार स्टोन क्राफ्ट और अंडर कट वर्क से जुड़े हैं। इस कार्य के लिए मूल रूप से चुनार के पत्थरों को तराश कर भगवान गणेश, बुद्ध, शंकर समेत अन्य देवी- देवताओं की मूर्तियां, हाथी, उल्लू, विशालकाय अंडे की आकृतियां और शानदार लैंप आदि तैयार किए जा रहे हैं। दरअसल, यह काम पहले केवल सॉफ्ट स्टोन तक सीमित था पर अब यहां के शिल्पी राजस्थान के सेलम व काला पत्थर से आकर्षक उत्पाद तैयार कर रहे हैं। इसके साथ इटली के एलाबस्टर पत्थरों पर भी जाली कटिंग की कला से भारतीय शिल्प में ढालकर आकर्षक उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। शिल्पी हरेराम ने बताया कि बनारस आगमन पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को खूब पसंद आया और इस कला की सराहना भी की थी। यहां के उत्पाद कई देशों में निर्यात किए जाते हैं।
स्टोन क्राफ्ट में बनारस की बादशाहत: बहरहाल, इस शिल्प का मूल केंद्र एक प्रकार से बनारस के उस पार रामनगर है। वैसे कुछ गांवों भीटी, सुलतानपुर, सिगड़ी और शहर के लहरतारा व लक्सा समेत अन्य जगहों पर भी इसका काम होता है।वर्तमान में यहां 15 से 20 करोड़ रुपये का स्टोन क्राफ्ट का कारोबार होता है।
विश्वभर में फैला है बाजार: बनारस के स्टोन शिल्प का बाजार पूरे यूरोप और अमेरिका के अतिरिक्त जापान, कोरिया समेत दक्षिण पूर्वी देशों में फैला हुआ है। इन देशों में काशी के शिल्पी अपने इन उत्पादों का निर्यात करते हैं।
पत्थरों की क्वालिटी से निराशा: शिल्पी जयप्रकाश, सुनील, बचाऊ ने बताया कि अच्छी क्वालिटी का छह से आठ इंच का हाथी तैयार करने में एक एक सप्ताह लग जाता है। मांग की कोई समस्या नहीं है बस इनदिनों अच्छी क्वालिटी के पत्थर नहीं मिल रहे। बुंदेलखंड के झांसी, महोबा और चरखारी से पत्थर मंगाया जाता आता है, लेकिन गुणवत्ता अच्छी पहीं होती। अंगूरी पत्थर बढ़िया होता है, लेकिन पिछले कई वर्षों से यह नहीं मिल पा रहा। इसको लेकर कुछ लोगों का मानना है कि अच्छी क्वालिटी के पत्थर को पीसकर उसका पाउडर चीन भेज दिया जा रहा है। इस पर रोक लगाने की मांग की गई है।