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History Of Gyanvapi Masjid : इतिहास के दावों को सर्वे से मिला बल, 15 अक्टूबर 1991 को ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दायर हुआ था मुकदमा

Varanasi Gyanvapi Masjid Case 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में नव मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजन-अर्चन का अधिकार को लेकर पं.सोमनाथ व्यास डा. रामरंग शर्मा व अन्य ने वाद दायर किया था। पक्ष द्वारा दावा किया कि मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद निर्माण किया गया था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 16 May 2022 04:26 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2022 05:55 PM (IST)
History Of Gyanvapi Masjid : इतिहास के दावों को सर्वे से मिला बल, 15 अक्टूबर 1991 को ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दायर हुआ था मुकदमा
15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में पूजन-अर्चन के अधिकार को लेकर वाद दायर किया था।

वाराणसी, इंटरनेट डेस्‍क। ज्ञानवापी परिसर में नया मंदिर निर्माण और पूजा-पाठ करने को लेकर 15 अक्टूबर 1991 को सिविल जज (सिडि.) वाराणसी की अदालत में वाद दायर किया गया था। जिसमें विवादित स्थल को स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का अंश बताया गया। ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद 1991 से ही चल रहा है लेकिन 32 साल बाद भी मुकदमे की सुनवाई शुरू नहीं हो सकी है। एक पक्ष द्वारा दावा किया जाता है कि मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद निर्माण किया गया था।

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ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे कई फीट ऊंची विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है। बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के पास ही ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है।

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में गुरुवार को मुस्लिम पक्ष की ओर से एडवोकेट कमिश्नर को बदलने और ज्ञानवापी के तहखाने की वीडियोग्राफी मामले पर कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। ज्ञानवापी मामले को लेकर विगत काफी समय से कोर्ट में मामला चल रहा है। इस प्रकरण में अब तक क्‍या-क्‍या हुआ और कैसे हुआ इस बारे में सिलसिले वार इन बिंदुओं के माध्‍यम से समझा जा सकता है।

आजादी के बाद.. 1991 में दायर हुआ मुकदमा

15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में नव मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजन-अर्चन का अधिकार को लेकर पं.सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व अन्य ने वाद दायर किया था।

1998 में हाईकोर्ट में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से दो याचिकाएं दायर की गई थी इस आदेश के खिलाफ, 7 मार्च 2000 को पं.सोमनाथ व्यास की मृत्यु हो गई।

11 अक्टूबर 2018 को पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को वाद मित्र नियुक्त किया मामले की पैरवी के लिए।

8 अप्रैल 2021 को वाद मित्र की अपील मंजूर कर पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी कर दिया।

18 अगस्त 2021 - दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने संयुक्त रूप से सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की गयी थी कि काशी विश्वनाथ धाम-ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी और विग्रहों को 1991 की पूर्व स्थिति की तरह नियमित दर्शन-पूजन के लिए सौंपा जाए। आदि विश्वेश्वर परिवार के विग्रहों की यथास्थिति रखी जाए।

आठ अप्रैल 2022 - सुनवाई के क्रम अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया।

18 अप्रैल 2022 - जिला प्रशासन ने शासकीय अधिवक्ता के जरिये याचिका दाखिल कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफ पर रोक लगाने की मांग की।

19 अप्रैल 2022 - कोर्ट कमिश्नर ने सर्वे करने की तिथि से अदालत को अवगत कराया।

19 अप्रैल 2022 - विपक्षी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कमीशन कार्यवाही रोकने की गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा।

- 20 अप्रैल 2022 - अदालत ने सुनवाई पूरी की, फैसला सुरक्षित रखा।

- 26 अप्रैल 2022 - को निचली अदालत ने ईद के बाद सर्वे की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। आदेश के तहत कोर्ट कमिश्नर ने छह मई को सर्वे करने से कोर्ट को अवगत कराया था।

दो मई 2022 - वादी पक्ष की महिलाओं ने अपर पुलिस आयुक्त को प्रार्थना पत्र देकर सुरक्षा की गुहार लगाई।

पांच मई 2022 - एडवोकेट कमिश्नर की कमीशन कार्यवाही के दौरान एकत्रित साक्ष्यों व सबूतों को सुरक्षित रखने के लिए अदालत से की अपील। अदालत ने पुलिस को आयुक्त को साक्ष्यों को सुरक्षित रखवाने का दिया ओदश।

छह मई 2022 - कोर्ट कमिश्नर ने ज्ञानवापी परिसर में पक्षकारों की उपस्थिति में कमीशन कार्यवाही शुरू की, जो पहले दिन पूरी नहीं हो सकी।

सात मई 2022 - अगले दिन कोर्ट कमिश्नर को ज्ञानवापी मस्जिद में जाने से रोका गया, जिससे कार्यवाही रोक दी गई।

नौ मई 2022 - प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने एडवाकेट कमिश्नर बदलने के लिए कोर्ट में दी अर्जी।

10 व 11 मई 2022 - अर्जी पर बहस हुई पूरी, फैसला सुरक्षित।

12 मई 2022 - कमीशन कार्यवाही कराने व एडवोकेट कमिश्नर नहीं बदलने का कोर्ट ने किया फैसला।

पौराणिक स्थली ज्ञानवापी का सच इतिहास के पन्नों में दर्ज

पौराणिक स्थली ज्ञानवापी का सच इतिहास के पन्नों में दर्ज है जो गवाही देते हैं कि किस तरह इस तीर्थ स्थली ने 1194 से 1669 के बीच कई झंझावात झेले। इसका उल्लेख काशी हिंदू विश्वविद्यालय व पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे ख्यात इतिहासकार डा. अनंत सदाशिव अल्तेकर की वर्ष 1936 में प्रकाशित पुस्तक हिस्ट्री आफ बनारस में प्रमुखता से है। इसे ज्ञानवापी मामले में संदर्भ के तौर पर पेश किया जा चुका है। इसमें मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करने का विवरण भी दर्ज है।

पुस्तक के अध्याय चार में वर्णन है कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की वजह से बनारस दो हजार साल पहले से ख्याति प्राप्त है। पौराणिक साक्ष्य बताते हैं कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानकूप के उत्तर तरफ स्थित है। इस मंदिर को 1194 से 1669 के बीच कई बार तोड़ा गया।


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