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बांस के गुलदस्ते से गुलजार होगा विंध्यक्षेत्र, कारीगरों को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान

मडि़हान के बांस से बने गुलदस्ते अब विंध्य क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे देश मे शोभा बढ़ाएंगे और खिलौनों की मंडी भी नक्सल क्षेत्र में लगने जा रही है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 07:40 AM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 05:47 PM (IST)
बांस के गुलदस्ते से गुलजार होगा विंध्यक्षेत्र, कारीगरों को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान
बांस के गुलदस्ते से गुलजार होगा विंध्यक्षेत्र, कारीगरों को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान

मीरजापुर [सर्वेश कुमार दुबे]। मडि़हान के बांस से बने गुलदस्ते अब विंध्य क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे देश मे शोभा बढ़ाएंगे और खिलौनों की मंडी भी नक्सल क्षेत्र में लगने जा रही है। जहां दूर-दूर से व्यापारी पहुंचकर यहां के सामानों को खरीदकर दूसरे जनपद व प्रांतों मे रौनक लाएंगे। अब वह दिन दूर नहीं जब यहां की बांसुरी भी देशभर के मेलों में दिखाई देगी। साथ ही बांस के पारंपरिक कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय मंच मिलेगा जहां वे अपने हुनर से डालर में भी आमदनी कर पाएंगे।

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दशकों तक नक्सलवाद का दंश झेलने वाला क्षेत्र अब उबरने लगा है और देश के तीव्र विकास में कदम से कदम मिलाने की कोशिश कर रहा है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मडि़हान में व्यापार मेले का आयोजन किया जाएगा जहां दूर-दूर से व्यापारी पहुंचकर यहां के सामानों को खरीदेंगे। यहां का सामान देश के विभिन्न राज्यों तक पहुंचेगा और आनलाइन मार्केटिंग से इसे प्रसिद्ध शापिंग वेबसाइट से भी बेचा जाएगा। अब वह दिन भी दूर नहीं रह गया है जब यहां की बांसुरी भी देशभर के मेलों में दिखाई देगी। शासन ने बंबू मिशन के तहत साढ़े तीन करोड़ की योजना को मंजूरी दे दी है। पहली किस्त में बीस लाख रूपया भी रिलीज हो गया है और वन कार्यालय परिसर में खाली पड़ी जमीन पर एसएमसी केंद्र का निर्माण शुरू हो चुका है। पहले चरण में यहां की झाडिय़ों की सफाई की जा रही है जिसके बाद बांस की सामग्रियों को बनाने वाली फैक्ट्री की स्थापना मार्च तक हर हाल में हो जाएगी।

उगाई जाएगी बांस की नर्सरी

बांस की नर्सरी भी मडि़हान वन क्षेत्र में ही उगाई जाएगी और आदिवासी तथा वनवासी लोगों को इस रोजगार के लिए प्रेरित करप्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण लेने के बाद यही कारीगर बांस की मूर्ति, खिलौने, टोपी, वाद्य यंत्र, थाली, गिलास, कुर्सी, मेज, डलियां, बांसुरी, चटाई आदि का निर्माण किया जाएगा। स्ट्रीट लाइट से वन क्षेत्र का अंधियारा भी दूर हो जाएगा और  व्यापारियों के लिए पीने के लिए नल से जल की व्यवस्था की जाएगी।

स्वच्छ पर्यावरण का प्रतीक बनेगा

अमूमन क्षेत्र में प्लास्टिक एवं फोम की गिलास और थाली का प्रयोग शादी विवाह एवं उत्सवों में किया जा रहा है। हालांकि प्रदूषण को देखते हुए इन सभी वस्तुओं पर रोक बावजूद धड़ल्ले से यह प्रचलन में है। अब मडि़हान के जंगल में जब यह मंगल कार्य शुरू हो जाएगा तो बांस से बनी थाली, गिलास, बोतल पर्यावरण संरक्षण में भी बड़ी भूमिका निभाएंगे।

बांस के घर बनेंगे सहारा

स्थानीय कारीगरों को इस तरह से प्रशिक्षित किया जा रहा है कि अब वे बांस का घर भी तैयार करेंगे। इसे कहीं भी ले जाया सकता है, यह पूरी तरह से ट्रांसपोर्ट फिट होंगे। इन घरों का महत्व गर्मी के दिनों खासतौर से होता है क्योंकि बांस गर्म हवाओं को शीतल करने मे मददगार साबित होता है। वन क्षेत्राधिकारी प्रदीप कुमार मिश्र ने बताया कि क्षेत्र के लोगों को लखनऊ में प्रशिक्षित किया जा चुका है और जल्द ही इसका लाभ ग्रामीणों को मिलने लगेगा।


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