प्राकृतिक रूप से अर्जित प्रतिरोधकता के साथ कारगर वैक्सीन का टीकाकरण सबको शारीरिक- मानसिक मजबूती दे रहा
हमारा डीएनए खानपान जीवन शैली औषधियों और प्राकृतिक रूप से अर्जित प्रतिरोधकता के साथ कारगर वैक्सीन का टीकाकरण सबको शारीरिक- मानसिक मजबूती दे रहा है। प्रभावी वजहों के साथ हम कोरोना से मुकाबले में अन्य देशों से ऊपर हैं।
प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे। वैक्सीन आने के बाद भी लोगों को कुछ और समय कोरोना के ही साथ बिताने हैं। आशंका जताई जा रही है कि संक्रमण का दूसरा दौर भारत में जनवरी और फरवरी तक देखने को मिल सकता है। अमेरिका, ब्राजील, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस जैसे देशों में अभी भी तेजी से फैल रहा है, मगर भारत की ताजा स्थिति इन खतरों से मुक्त प्रतीत हो रही है। भारत के मुकाबले संक्रमण की दर अमेरिका में चौदह गुना, ब्राजील में चार गुना और ब्रिटेन में करीब ढाई गुना ज्यादा है, जबकि मौतों के मामले में भी भारत इन देशों से कही ज्यादा बेहतर स्थिति में है। इसके अलावा ब्रिटेन से निकला कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन बी1.1.7 साठ से अधिक देशों में फैल चुका है, जबकि उसी के समान दक्षिण अफ्रीका का 501वाई.वाई2 स्ट्रेन भी बीस से अधिक देशों में अपने पांव पसार चुका है।
गनीमत है कि भारत में नए स्ट्रेन का चेन अब तक नहीं बन पाया है और जिस तरह से आंकड़े घट रहे हैं उससे यही आसार है कि चेन की संकल्पना हकीकत से दूर है। कारण, भारत में इस स्ट्रेन को फैलने के लिए सेलेक्टिव एडवांटेज अथवा अनुकूल वातावरण नहीं मिल रहा है। इसके पीछे हमारी डीएनए की खूबियां, घरेलू खाद्य उत्पाद व मसाले, पांरपरिक व आयुर्वेदिक औषधियां और महामारी के खिलाफ प्राकृतिक रूप से अर्जति प्रतिरोधकता ही जिम्मेदार है। इसके साथ ही भारत में युद्धस्तर पर शुरू हुआ टीकाकरण लोगों को मानसिक मजबूती भी दे रहा है। हमारी वैक्सीन सुरक्षित ही नहीं, बल्कि उपयोग के अनुसार सुगम और किफायती भी है, जिससे हम कोरोना का मुकाबला करने में अन्य देशों से कहीं ऊपर रहने वाले हैं। मगर, जब तक टीकाकरण का कार्य पूरा नहीं हो जाता, मानकों के पालन में कोई अनदेखी नहीं बरतनी चाहिए।
हमारे देश में कोई नई चीज आती है तो उसके साथ समाज में कई भ्रांतियां फैलने लगती हैं। यही हाल वैक्सीन के साथ हो रहा है कि इससे कई तरह की व्याधियां शरीर में आ सकती हैं। नार्वे समेत कई यूरोपीय देशों में वैक्सीन की पहली डोज के ही बाद ही कुछ लोग काल के गाल में समा गए। इससे लोगों में भ्रांति के साथ वैक्सीन के प्रति काफी डर भी बैठ गया है। जानकारी के लिए बता दें तो इन देशों में वैक्सीन लगवाने के बाद जो मौतें हुईं उनमें अस्सी वर्ष से अधिक उम्र के लोग थे। अभी तक भारत में ऐसा कोई मामला नहीं देखा गया। भारत की वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन की खासियत बाकियों से थोड़ी अलग है। भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन में कोरोना के मृत वायरस का उपयोग किया गया है, जो कि शरीर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं डालता। इसे दो से आठ डिग्री सेल्सियस पर घर में भी सुरक्षित रखा जा सकता है। कोविशील्ड में चिंपैजी के एडिनो वायरस से वैक्सीन तैयार किया गया, जो सबसे सुरक्षित बताई जा रही है।
वैक्सीन के भी बारे में जिस तरह से अफवाहों का दौर जारी है, उसमें हम इजराइल का उदाहरण ले सकते हैं। यहां एक चौथाई लोगों का टीकाकरण हो चुका है। वैज्ञानिकों ने पाया कि पहली खुराक लेने वालों को एक सप्ताह के भीतर ही कोरोना संक्रमित होने की संभावना 33 फीसद घट गई। यह प्रारंभिक परिणाम काफी उत्साहवर्धक है, जो वास्तविक दुनिया में वैक्सीन के प्रभाव को उम्मीदों पर खरा उतरता दिखा रहा है। वैक्सीन के संबंध में हमें यह बात अच्छे से समझ लेना चाहिए कि ज्यादातर लोगों में कोरोना वायरस का संक्रमण शरीर में इम्युनिटी को सक्रिय कर देता है। इसीलिए यह कहना बिल्कुल ठीक होगा कि वायरस म्यूटेट होकर चाहे जितने भी स्ट्रेन तैयार कर ले, मगर वैक्सीन की काट अभी कई बरस उसके पास नहीं है। अब जरूरत है वायरस सíवलांस की।
[जीन विज्ञानी, जंतु विज्ञान विभाग, बीएचयू, वाराणसी]