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कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में यूपी की है बड़ी भूमिका, सोनभद्र के बिजली यूनिटों की बंदी से आई कमी

कार्बन उत्सर्जन को लेकर बढ़ रही वैश्विक चिंता के कारण भारत पर भी लगातार दबाव बढ़ते जा रहा है। भारत अभी भी कार्बन उत्सर्जन के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है जो चिंता का बड़ा कारण है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 02 Nov 2021 03:30 PM (IST)Updated: Tue, 02 Nov 2021 03:30 PM (IST)
कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में यूपी की है बड़ी भूमिका, सोनभद्र के बिजली यूनिटों की बंदी से आई कमी
कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता को देखते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करना बड़ी चुनौती है।

जागरण संवाददाता, सोनभद्र। कार्बन उत्सर्जन को लेकर बढ़ रही वैश्विक चिंता के कारण भारत पर भी लगातार दबाव बढ़ते जा रहा है। भारत अभी भी कार्बन उत्सर्जन के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है जो चिंता का बड़ा कारण है। कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता को देखते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करना बड़ी चुनौती है। हालांकि पिछले डेढ़ दशकों के दौरान कई पुरानी इकाइयों को बंद कर उत्सर्जन में कमी लायी गयी है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के अनुसार भारत ने 2005 से 2016 के बीच कार्बन उत्सर्जन में 24 फीसद की कमी लायी है। इस भारी कमी में उत्तर प्रदेश का बड़ा सहयोग रहा है। इस दौरान यूपी की कोयला आधारित 21 इकाइयों को हमेशा के लिए बंद करने से कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आयी। इनमें ओबरा की 50 मेगावाट की पांच इकाईयां ,100 मेगावाट की तीन, पनकी की 32 मेगावाट वाली दो,110 मेगावाट वाली दो, हरदुआगंज की 30 मेगावाट वाली तीन, 50 मेगावाट वाली दो, 55 मेगावाट वाली दो तथा 60 मेगावाट वाली दो इकाईयां शामिल है। इन इकाइयों के बायलर का नान रिहीट टाइप का बना होना इनके बंद होने का प्रमुख कारण साबित हुआ। नान रिहीट इकाइयों में कोयले की खपत ज्यादा होती है जिससे प्रदूषण ज्यादा होने के साथ ऊर्जा ह्रास भी ज्यादा होता है।

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भविष्य में भी यूपी की रहेगी बड़ी भूमिका

आने वाले वर्षों में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में भी यूपी की बड़ी भूमिका रहेगी। पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए देश में मौजूद 25 वर्ष से पुरानी इकाइयों को बंद किया जाना है। इनमें सबसे ज्यादा यूपी की 17 इकाइयों को बंद किया जाना है। इनमें अनपरा की 210 मेगावाट की तीन, 500 मेगावाट की दो, ओबरा की 200 मेगावाट वाली पांच, परीछा की 110 मेगावाट की दो, 210 मेगावाट की दो, 250 मेगावाट की दो तथा हरदुआगंज की 110 मेगावाट की एक इकाई शामिल है। हालांकि अभी कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता सहित पुरानी इकाइयों से अत्यंत सस्ती बिजली पैदा होने तथा वित्तीय कारणों से इन इकाइयों को कुछ वर्षों का जीवनदान दिया गया है। इसी वर्ष मंत्रालय द्वारा कोयला बिजली घरों के लिए कड़े पर्यावरण मानकों को लागू करने की समय अवधि बढ़ाई है। मंत्रालय द्वारा जारी पूर्व आदेश के तहत 25 वर्ष से ज्यादा पुरानी कोयला आधारित इकाइयों को 31 दिसंबर 2022 तक बंद करना था। नए आदेश में यह सीमा 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है।


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