नेताजी के नाम पर काशी में अनूठाSubhash Temple, खुशी रमन भारतवंशी हैं पुजारी
नेताजी के नाम पर अनूठा सुभाष मंदिर काशी में ही है जिसकी पुजारी एक दलित युवती खुशी भारतवंशी हैं। यह मंदिर जाति धर्म लिंग के भेद को खत्म कर एकता का संदेश देता है। आजाद हिंद सरकार की स्थापना दिवस पर हर साल 21 अक्टूबर को विशेष दर्शन होता है।
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने द्वितीय विश्व युद्ध में दौरान अंग्रेजों के सामने सबसे कठिन चुनौती खड़ी की थी। उन्होंने पूरी दुनिया को अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार की जानकारी दी और भारत की आजादी की अनिवार्यता का अहसास कराया। 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में उन्होंने अस्थायी आजाद हिंद सरकार की स्थापना की थी। इस सरकार के मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री, कार्यकारी प्रमुख युद्ध मंत्री और सर्वोच्च सेनापति नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्वयं थे। इस सरकार को जापान, बर्मा, जर्मनी, चीन, इटली, थाइलैंड सहित विश्व के नौ देशों ने मान्यता प्रदान की थी। उन्हीं नेताजी के नाम पर अनूठा सुभाष मंदिर काशी में ही है, जिसकी पुजारी एक दलित युवती खुशी भारतवंशी हैं।
यह सुभाष मंदिर जाति, धर्म, लिंग के भेद को खत्म कर एकता का संदेश देता है। आजाद हिंद सरकार की स्थापना दिवस पर हर साल 21 अक्टूबर को यहां पर विशेष दर्शन होता है। बीएचयू में इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं विशाल भारत संस्थान के संस्थापक डा. राजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस सभी देशों के महापुरुषों से अलग रूहानी हैसियत रखते हैं। इनको सिर्फ जन्म-दिवस पर याद नहीं किया जाता बल्कि मंदिरों के शहर काशी में राष्ट्रदेवता के रूप में प्रतिदिन पूजा जाता है।
सुभाष मंदिर लमही स्थित इंद्रेश नगर में 23 जनवरी 2020 को स्थापित किया गया। दुनिया के 15 देशों के लोगों ने इसमें अपनी आस्था जताई है। यह 11 फीट ऊंचा है। इसकी सीढिय़ां लाल रंग की हैं। मूर्ति ग्रेनाइट की बनी है। काला रंग शक्ति का प्रतीक है, शक्ति की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा (सुनहरा छत्र) निकलती है। मंदिर सुबह सात बजे भारत माता की प्रार्थना के साथ खुलता है। शाम में सात बजे पहले आजाद हिंद सरकार का राष्ट्रगान गाया जाता है, फिर पांच बार राष्ट्रदेवता को जय हिंद के साथ सलामी दी जाती है। इसके बाद महाआरती होती है। आरती के वक्त डफली, नगाड़ा, ड्रम, ताशा, मजीरा, बिगुल, शंख, घंटी जैसे वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं।