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शहीदों के परिजनों का दुख तो समझिए, देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया उस मां का बेटा

फ्लाइट इंजीनियर विशाल पांडेय के पिता विजय शंकर पांडेय से चुनाव और नई सरकार पर चर्चा की तो उनका दर्द उभर आया।

By Vandana SinghEdited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 05:52 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 07:01 AM (IST)
शहीदों के परिजनों का दुख तो समझिए, देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया उस मां का बेटा
शहीदों के परिजनों का दुख तो समझिए, देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया उस मां का बेटा

वाराणसी, [अंकुर त्रिपाठी]। श्री नगर में 26 फरवरी को वायुसेना का हेलीकॉप्टर क्रैश होने से शहीद हुए चौकाघाट यादव बस्ती निवासी फ्लाइट इंजीनियर विशाल पांडेय के पिता विजय शंकर पांडेय से चुनाव और नई सरकार पर चर्चा की तो उनका दर्द उभर आया। उन्होंने कहा, 'हमने अपना वीर बेटा खोया है इसलिए उन परिवारों के दुख को समझ सकते हैं जिनके पुत्र देश की रक्षा के लिए लड़ते हुए कुर्बान हो गए। ऐसे में हम तो यही चाहते हैं कि देश में ऐसी सरकार हो जो वीर सपूतों की आतंकी हमलों से रक्षा कर सके। यह तभी संभव है जब सरकार मजबूत और प्रधानमंत्री सख्त इरादों वाले हों। दुश्मन को उसके देश में घुसकर मारने की हिम्मत रखने वाली सरकार चाहिए। मोदी सरकार ने यह हौसला दिखाया है। हम ऐसी ही सरकार आगे भी चाहेंगे।

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मूल रूप से रोहनिया के कुरहुआं गांव निवासी विजय शंकर पांडेय ने साजन सिनेमाघर के मैनेजर की नौकरी करते हुए तीन बेटों और दो बेटियों को शिक्षा दी। दूसरे नंबर के बेटे विशाल की चाहत फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करने की की थी इसलिए वह 2005 में वायुसेना में भर्ती हो गए। 2009 में विशाल ने बड़े भाई विकास के साथ मिलकर चौकाघाट यादव बस्ती में मकान खरीदा। तब से उनके माता-पिता और छोटी बहन वैष्णवी यहीं रहती हैं। 26 फरवरी को श्रीनगर में हेलीकाप्टर क्रैश में शहीद हुए विशाल का पार्थिव शरीर इसी मकान में लाया गया और फिर अंतिम संस्कार किया गया। मंगलवार को इस बारे में बात करते वक्त उनके पिता विजयशंकर और मां विमला देवी की आंखों में आंसू छलक आए। सवाल था कि चुनावी मौसम है। नई सरकार के लिए मतदान हो रहा है। तो आप कैसी सरकार चाहते हैं।

विजय शंकर यह बताते हुए क्रोध से भर जाते हैं कि 27 फरवरी को श्री नगर में पत्थरबाजों के बाधा डालने की वजह से उनके बेटे के शव का पोस्टमार्टम होने में काफी देर हुई जिसकी वजह से पार्थिव शरीर घर लाने में रात हो गई। वह कहते हैं कि पिछली सरकारों की तुष्टिकरण की नीति का खामियाजा है जो आतंकी, अलगाववादी और पत्थरबाज कोढ़ बन गए हैं। सेना पर पथराव करने वाले पत्थरबाजों के साथ कोई भी मुरव्वत नहीं करनी चाहिए। इसी तरह अलगाववादियों और आतंकियों से भी सख्ती से निपटना चाहिए। मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी ने पिछली सरकारों की तुलना में कड़ा रवैया अपनाया लेकिन हम और भी सख्ती चाहते हैं ताकि देश की रक्षा के इरादे से सेना में जाने वाले बेटे बिना लड़े यूं छिपकर किए जाने वाले आतंकी हमलों में नहीं शहीद हों। विजय शंकर मानते हैं कि इस देश के कुछ नेता संकीर्ण सोच वाले हैं। पुलवामा की घटना में तरह-तरह के बयान देकर उन्होंने दुनिया भर में गलत छवि पेश की है। इसी वजह से वे राजनीति से दूर रहते हैं। किसी भी राजनैतिक गतिविधि में शामिल नहीं होते। हां, परिवार सहित वोट जरूर करने जाते हैं ताकि देश के लिए सही सरकार चुनने में अपना भी योगदान दे सकें।

शहीद के माता-पिता चाहते हैं कि सरकार शहीदों के परिवार का ख्याल रखने के साथ ही गरीबों, किसानों, युवाओं के लिए बेहतर नीति तैयार करे। रोजगार की समस्या बड़ी है। विजय शंकर  कहते हैं कि उनका सबसे छोटा पुत्र आकाश भी सरकारी नौकरी नहीं मिलने और रोजगार के अभाव में बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहा है। सरकार पर्याप्त संख्या में रोजगार पैदा करने में नाकाम रही है। अगली सरकार जिस भी दल की हो, उससे अपेक्षा है कि युवाओं को रोजगार मुहैया कराए और विकास करे।

कांग्रेस ने नहीं करने दिया था स्ट्राइक

विजय शंकर कहते हैं कि कांग्र्रेस सरकार के दौरान पाकिस्तानी रेंजर दो भारतीय सैनिकों का सिर काट ले गए तो जनता में बेहद उबाल था। सेना ने स्ट्राइक की तैयारी कर ली थी। बेटे विशाल ने भी फोन पर बताया था कि हमें एलर्ट किया गया है, रात में पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर स्ट्राइक की तैयारी है। मगर रात में विशाल ने निराश लहजे में बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन ने सेना को अनुमति नहीं दी है। यह तो हर शख्स मानता है कि मोदी सरकार में सेना का मनोबल बढ़ा है।

युवाओं के लिए संजीदा और उदार हो सरकार

फाइटर प्लेन की पायलट बनने के लिए रात-दिन तैयारी कर रही छोटी बहन वैष्णवी ने कहा कि वह तो किसी भी सूरत में सेना में भर्ती होना चाहती हैं लेकिन एक बात कहेंगी कि सरकार ऐसी हो जो युवाओं को नौकरी देेने के मामले में संजीदा और उदार हो। यहां तो हाल यह है कि भर्ती परीक्षा के नतीजे आने में कई साल लग जाते हैं। यह गलत है।


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