बोले बनारस के उलमा, तीन तलाक पर अध्यादेश को मंजूरी पर्सनल लॉ के खिलाफ
सुन्नी मुफ्ती बोर्ड बनारस के सेक्रेटरी व शाही जामा मस्जिद बादशाह बाग के पेश इमाम मौलाना हसीन हबीबी ने कहा कि कानून पहले भी संविधान और पर्सनल लॉ के खिलाफ था।
वाराणसी (जेएनएन) । केंद्र सरकार ने बुधवार को संसद में लटके तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को दंडनीय अपराध बनाने वाले बिल को कानूनी रूप देने के लिए अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की है। सरकार के इस कदम पर उलमा-ए-कराम ने नाराजगी जाहिर करते हुए इसे शरीयत में सीधा दखल करार दिया है।
सुन्नी मुफ्ती बोर्ड बनारस के सेक्रेटरी व शाही जामा मस्जिद बादशाह बाग के पेश इमाम मौलाना हसीन हबीबी ने कहा कि ये कानून पहले भी संविधान और पर्सनल लॉ के खिलाफ था, संशोधन के बाद भी है। हालांकि संशोधन के बाद थोड़ी रियायत जरूर दी गई है। वहीं मुफ्ती हारून रशीद नक्शबंदी ने कहा कि हर भारतीय का फर्ज है कि वो कानून का पूरी तरह से पालन करे। मगर सरकार का भी ये कर्तव्य बनता है कि किसी ऐसे कानून को जनता पर थोपा न जाए, जिससे उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन हो। संसद में यह बिल लोकसभा से तो पास हुआ था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया, जिसके बाद इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए सरकार ने अध्यादेश का रास्ता चुना है। हालांकि 6 महीने के अंदर इस पर संसद की मुहर लगनी जरूरी है। सरकार के लिए यह फिर बड़ी चुनौती साबित होगी।
21 महीनों में 430 मामले : सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2017 से 13 सितंबर 2018 तक 430 तीन तलाक की घटनाएं मिली हैं। इनमें से 229 सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से पहले के हैं, जबकि 201 जजमेंट के बाद के हैं। तीन तलाक के सबसे अधिक मामले यूपी में आए। इस अवधि में यूपी में कुल 246 केस आए।
कब दर्ज होगा केस : यह अपराध संज्ञेय (जिसमें पुलिस सीधे गिरफ्तार कर सकती है) तभी होगा, जब महिला खुद शिकायत करेगी। इसके साथ ही खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी केस दर्ज कराने का अधिकार रहेगा। पड़ोसी या कोई अनजान व्यक्ति इस मामले में केस दर्ज नहीं करा सकता है।
समझौते के लिए शर्त : कानून में समझौते के विकल्प को भी रखा गया है। पत्नी की पहल पर ही समझौता हो सकेगा, लेकिन मजिस्ट्रेट द्वारा उचित शर्तों के साथ।
जमानत की शर्त : इस कानून के तहत पत्नी का पक्ष सुनने के बाद मजिस्ट्रेट इसमें जमानत दे सकते हैं।
गुजारे का प्रावधान : तीन तलाक पर कानून में छोटे बच्चों की कस्टडी मां को दिए जाने का प्रावधान है। पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण का अधिकार मजिस्ट्रेट तय करेंगे, जिसे पति को देना होगा।
कानून का एक दायरा होना चाहिए, जो किसी की मर्जी ने नहीं बल्कि आम जन के लिए श्रेयस्कर हो। संशोधन के बाद भी ये कानून संविधान और पर्सनल लॉ के खिलाफ है। - मौलाना हसीन हबीबी।
हर भारतीय का फर्ज है कि वो नियम और कानून का पूरी तरह पालन करे। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो ऐसे कानून बनाए, जो उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे, हनन नहीं।
- मुफ्ती हारून रशीद नक्शबंदी