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बनारस पहुंचे 'तू बन जा गली बनारस' फेम गीतकार व शायर शकील आजमी, साझा किए अनुभव

भागमभाग जिंदगी में लोगों के पास रुपये-पैसों से लेकर ऐशो-आराम के तमाम साधन हैं। तू बन जा गली बनारस फेम गीतकार व शायर शकील आजमी। वे पिछले दिनों अक् संस्था के छावनी क्षेत्र स्थित क्लब स्प्रिचुअल में गालिब की याद में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 29 Dec 2020 05:59 PM (IST)Updated: Tue, 29 Dec 2020 06:01 PM (IST)
बनारस पहुंचे 'तू बन जा गली बनारस' फेम गीतकार व शायर शकील आजमी, साझा किए अनुभव
तू बन जा गली बनारस फेम गीतकार व शायर शकील आजमी

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। भागमभाग जिंदगी में लोगों के पास रुपये-पैसों से लेकर ऐशो-आराम के तमाम साधन हैं। बावजूद इसके न दिल में चैन है, न जेहन में सुकून। यह तड़प और खलिश बेचैन किए हुए है। यही बेचैनी कई बार इंसान को एकाकी जीवन की ओर धकेलने लगती है। इसकी वजह से शोहरत की बुलंदी पर पहुंचने के बाद भी लोग आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं। ऐसे में शायरी अपनी अहमियम साबित करती है। यह न केवल जेहन को सुकून देती है, बल्कि जीने का मकसद भी बताती है। इंसान को इंसान बने रहना भी सिखलाती है। शायरी को लेकर कुछ ऐसा ही नजरिया रखते हैं 'तू बन जा गली बनारस' फेम गीतकार व शायर शकील आजमी। वे पिछले दिनों अक् संस्था के छावनी क्षेत्र स्थित क्लब स्प्रिचुअल में गालिब की याद में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे। शायरी के तमाम पहलुओं व मंच से लेकर फिल्म तक के सफर पर उन्होंने दैनिक जागरण रिपोर्टर  से बात की।
- आपकी नजर में शायरी क्या है।
= आज के दौर में इंसान सुबह से ही जहनी व जिस्मानी तौर पर मशीन की तरह काम में लग जाता है। काम तो पूरा हो ही जाता है, लेकिन जब तक वो सो नहीं जाता जेहन चलता रहता है और काम में लगा रहता है। इसकी वजह से उसे नींद नहीं आती। वो बहुत सारी टेंशन लेकर जी रहा है। जब आदमी एकांत में जाता है तो उसे इस भीड़-भाड़ से बाहर निकलकर प्यार की जरूरत होती है जैसे कोई बुखार में तपते हुए माथे पर हाथ रख दे। इस पल का जो सुकून है, जो एहसास है, वो है शायरी। यह शायरी जब आपके जेहन में, लाइब्रेरी में या मोबाइल में होती है और आप उसे पढ़ते, देखते या सुनते हैं तो रिलैक्स होते हैं। ये कोई मामूली बात नहीं है। साइंस बहुत आगे है, लेकिन ऐसी कोई दवा नहीं बना सकी है, जो आदमी को पूरी तरह पुरसुकून कर दे। वो दवा शायरी ही है, बशर्ते आपको इससे थोड़ा-बहुत लगाव हो।

- मजाज, दाग देहलवी, अकबर इलाहाबादी के दौर की और आज की शायरी में क्या फर्क महसूस करते हैं।
= शायरी एक जज्बा है। यह ईश्वर का दिया नायाब तोहफा है, जो खरीदा नहीं जा सकता। इसलिए शायर नहीं जाते, बल्कि पैदा होते हैं। अबकर इलाहाबादी आज ही के शायर थे। सरल व सहज भाषा में लिखने के कारण उन्हें आवाम का शायर कहा जाता है। तब की शायरी फारसी व उर्दू का मिलाजुला रूप लिए हुए थी। आज की शायरी आसान हिंदी-उर्दू का मिलाप है। तब भी शायर दिल से लिखते थे और अब भी। इतना जरूर है कि आज हर ओर नकली शायरों की भीड़ जमा हो गई है।

- शायरी में शब्दों का चयन आप कैसे करते हैं।
= कई शायर बहुत मुश्किल शब्दों का प्रयोग करते हैं। ऐसा कर वे अपने ऐब (कमी) को छिपा लेते हैं। जबकि जो जबान (भाषा) हम बोलते हैं, समझते हैं, लिखना उसी में चाहिए। असल मकसद तो अपनी बात दूसरों तक पहुंचाना ही तो है। कुछ लोग यह बात समझते हैं, कुछ नहीं। मैं जैसा बोलता हूं या जिन शब्दों का इस्तेमाल बोचलाल में करता हूं, उसी में अपनी शायरी भी ढालता हूं।

- शायरी से गीतकार बनने का सफर कैसे तय किया।
= जिस दिन पहली गजल लिखी उसी दिन सोच पैदा हुई कि फिल्मों के लिए लिखूंगा। कैफी आजमी साहब की शोहरत और उनकी शख्सियत ने मुझे प्रेरित किया। उनके रास्तों पर चल कर मैं भी बड़ा नाम कमाना चाहता था। लेकिन शुरुआत देर से की। वर्ष 1984 में मैंने लिखना शुरू किया और 1996 में मेरी दो किताबें प्रकाशित हुईं। इसके बाद मुंबई आना-जाना शुरू हुआ। संघर्षों का दौर लंबा खिंचा तो फरवरी 2001 में खुद से वादा किया कि मर जाउंगा, लेकिन अब यहां से कामयाब हुए बगैर लौटूंगा नहीं। उस जिद और तड़प ने मेरे भीतर के शायर को विस्तार दिया और कामयाबी के रास्ते खुलते चले गए।

- फिल्मों के जाने की हसरत रखने वाले युवाओं को क्या नसीहत देना चाहेंगे।
= जब आप सीधे-सीधे फिल्मों में या मंच पर आते हैं तो आप स्वयं के भीतर के शायर या कवि को विस्तार नहीं दे पाते। जो लोग साहित्य में स्थापित होकर फिल्मों में आए, वही कामयाब हुए। जब आप फिल्म में आते हैं और आपको काम मिलता है, तो आपके काम को कई पैमानों पर परखा भी जाता है, लेकिन आपका शायर होना पहली शर्त है। इसलिए बिना लालच या मोह के युवा रियाज करते रहें। जब आपमें चमक आएगी, तो खुद बाजार आप तक पहुंचेगा।
उल्‍लेखनीय कार्य व सम्‍मान :
- मदहोशी, जहर, वो लम्हे, आर्टिकल-15, थप्पड़, मुल्क, तुम बिन-2, शादी में जरूर आना, जिद, घोस्ट, 1920 एविल रिटर्न, हांटेड, धोखा आदि फिल्मों समेत नौ वेब सीरीज के लिए गीत लिखे। मदहोशी फिल्म के गीत 'ऐ खुदा तूने मोहब्बत ये बनाई क्यों...' के लिए स्टारडस्ट अवार्ड का नामिनेशन मिला। 2007 में कैफी आजमी अवार्ड, 2012 में गुजरात गौरव अवार्ड सहित पांच बार गुजरात उर्दू साहित्य अकेडमी अवार्ड, तीन बार उप्र उर्दू एकेडमी अवार्ड, चार बार बिहार उर्दू एकेडमी अवार्ड व दो बार महाराष्ट्र उर्दू साहित्य एकेडमी अवार्ड से विभूषित किए जा चुके हैं। अब तक उनके नौ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

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