जब मस्तिष्क और हृदय में विरोधाभास हो तो हृदय की सुनो, विश्व धर्म महासभा-शिकागो की 125वीं जयंती पर हुआ आयोजन
विश्व धर्म महासभा-शिकागो की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में विगत एक वर्ष में स्वामी विवेकानंद के जीवन व संदेश पर आधारित विभिन्न प्रतियोगिता के विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया गया।
वाराणसी, जेएनएन। दूसरों को सुनने से केवल आपके विचार ही बदल सकते हैं, लेकिन चेतना में बदलाव नहीं आता। दूसरों को सुनकर ज्ञान मिल सकता है, प्रज्ञा नहीं। अनुभूति ही वास्तविक गुरु है। दूसरों की अच्छाई से सीखो, लेकिन उसे अपने तरीके से अनुभव करो। ये बातें कृष्णमूर्ति फाउंडेशन-राजघाट के पूर्व सचिव प्रो. पी कृष्णा ने शुक्रवार को रामकृष्ण मिशन होम ऑफ सर्विस की ओर से स्वतंत्रता भवन-बीएचयू में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कहीं। छात्रों को सीख देते हुए कहा कि अनुयायी बनने से अधिक जरूरी है आत्मसात करना। जब मस्तिष्क और हृदय में विरोधाभास हो तो हृदय की सुनो, क्योंकि चेतना में परिवर्तन हृदय में परिवर्तन होने से होता है। सभी धर्मो को गहराई से समझकर उनका सम्मान करें। सभी धर्म सत्य की ओर ही ले जाते हैं। इस दौरान विश्व धर्म महासभा-शिकागो की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में विगत एक वर्ष में स्वामी विवेकानंद के जीवन व संदेश पर आधारित विभिन्न प्रतियोगिता के विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया। इस दौरान डॉ. अजय कुमार सिंह ने वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। विशिष्ट अतिथि छपरा विवि के कुलपति प्रो. हरिकेश सिंह ने स्वामी विवेकानंद के संदेश को याद करते हुए कहा कि राष्ट्रों व धर्मो को आपस में नहीं लड़ना है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति प्रो. पृथ्वीश नाग ने कहा कि मानव निर्माण का सर्वागीण मॉडल स्वामी विवेकानंद के विचारों और संदेशों में निहित है। अध्यक्षता रामकृष्ण मिशन होम ऑफ सर्विस के सचिव स्वामी विश्वात्मानंद महाराज, स्वागत स्वामी वरिष्ठानंद, संचालन डॉ. अभिषेक सिंह व धन्यवाद ज्ञापन देवाशीष दास ने किया।