Tokyo Olympics : ललित उपाध्याय ने तेजू भइया को समर्पित किया कांस्य पदक, गाजीपुर में लोगों ने किया स्वागत
टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हाकी टीम के सदस्य ललित उपाध्याय को गुरुवार को जिले के लोगों ने पलक पांवड़े पर बैठा लिया। करमपुर में उन्होंने स्व तेज बहादुर सिंह को मेडल समर्पित करते हुए लोगों का दिल जीत लिया।
जागरण संवाददाता, गाजीपुर। टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हाकी टीम के सदस्य ललित उपाध्याय को गुरुवार को जिले के लोगों ने पलक पांवड़े पर बैठा लिया। करमपुर में उन्होंने स्व: तेज बहादुर सिंह को मेडल समर्पित करते हुए लोगों का दिल जीत लिया। ललित ने कहा कि काश आज तेजू भइया रहे होते। उनके सपने को पूरा करने में कोई कोर कसर नहीं छोडूंगा। उन्हीं की बदौलत आज यहां तक पहुंचा हूं। वह द्रोणाचार्य पुरस्कार के असली हकदार हैं, उन्हें यह मिलना चाहिए।
इसके पूर्व गर्मजोशी के साथ फूलमालाओं से स्वागत किया गया। सिधौना से सैकड़ों बाइक सवार युवाओं के साथ पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह के पुत्र अनिकेत सिंह व भतीजे आशुतोष सिंह ने ललित उपाध्याय की आगवानी की। ललित उपाध्याय जिंदाबाद, तेजू भइया अमर रहें के नारे से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। सिधौना, औड़िहार, बिहारीगंज होते हुए ललित का काफिला करमपुर स्टेडियम में पहुंचा तो प्रशिक्षरत जूनियर खिलाड़ियों ने फूलों की वर्षा की। वहां पहुंचते ही सबसे पहले ललित ने स्व: तेजबहादुर सिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित करने के साथ ही अपना पदक समर्पित किया।
सुबह करीब 10 बजे ललित ओपन थार जीप पर से जनपद सीमा में प्रवेश किए। उसके साथ जीप पर भारतीय हाकी टीम के खिलाड़ी राजकुमार पाल, अनिकेत, आशुतोष व कोच इंद्रदेव राजभर रहे। जीप के आगे-आगे हाथों में तिरंगा झंडा लिए सैकड़ों युवा बाइक से जुलूस के रूप में चल रहे थे। बिहारीगंज होते हुए ललित का काफिला करमपुर स्टेडियम में पहुंचा तो प्रशिक्षणरत खिलाड़ियों ने ललित पर पुष्प वर्षा की। मंच पर पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह, रमाशंकर उर्फ हिरन सिंह, गंगा सागर सिंह, पूर्व एमएलसी डा कैलाश सिंह, बालेश्वर सिंह समेत सभी ने ललित उपाध्याय का फूलमालाओं से स्वागत किया। अंगवस्त्रम, स्मृति चिन्ह व बुके देकर लोगों ने ललित उपाध्याय का स्वागत किया। अध्यक्षता सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष सुदर्शन यादव व संचालन अरुण कुमार सिंह ने किया।
करमपुर मेरी कर्मभूमि, तेजू भइया ने वहां तक पहुंचाया
स्वागत से अभिभूत ललित उपाध्याय कुछ क्षण के लिए भावुक भी हो गए। तेजबहादुर सिंह के चित्र पर मेडल समर्पित करते हुए उनका मन थोड़ा द्रवित हुआ, लेकिन किसी को अहसास नहीं होने दिया। ललित ने कहा कि मेरा जन्म भले ही वाराणसी में हुआ है, लेकिन मेरी कर्मभूमि करमपुर है। मेरी इच्छा थी कि मैं टोक्यो ओलिंपिक में हासिल करने वाला पदक स्व तेजबहदुर भइया के हाथों पहनूंगा। मेरा दुर्भाग्य है कि आज वे हमारे बीच नहीं हैं। पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह, रमाशंकर उर्फ हिरन सिंह व गंगासागर सिंह लगातार मुझसे बात करते रहते थे। उनकी बातें मेरे लिए उर्जा का काम कीं। ललित ने कहा कि मेघबरन सिंह महाविद्यालय में मैंने पढ़ाई की, लेकिन मुझसे एक रुपया नहीं लिया गया। मुझे बस कहा गया कि तुमको खेलना है जितना खेल सकते हो खेलो। मैंने वही किया और खूब खेला। भरोसा जताया कि आने वाले समय में इसी करमपुर के खिलाड़ी और भारतीय हाकी टीम के सदस्य राजकुमार पाल भी पदक लाएंगे। इसके अलावा करमपुर में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जूनियर खिलाड़ी अपने कोच की बातों का अनुसरण करते हुए खूब खेले आने वाले समय में उन्हें सफलता मिलेगी। कभी ये मत सोचिए कि मेरे पास यह नहीं है कि बस इतना सोचिए हम क्या पा सकते हैं। ललित का कहा कि सपने को पूरा करने के लिए नींद को छोड़कर जी-तोड़ मेहनत करें।
ललित ने करमपुर को दिलाई दुनिया में पहचान
पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह ने कहा कि ललित उपाध्याय ने दुनिया में करमपुर को पहचान दिलाई है। आज बड़े भइया स्व तेजबहादुर सिंह होते तो काफी प्रसन्न होते। कुछ लोग अफवाह फैला रहे हैं कि मेघबरन सिंह हाकी स्टेडियम बंद हो जाएगा उनके लिए मेरा संदेश है कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। आने वाले समय में और बेहतर तरीके से स्टेडियम का संचालन किया जाएगा। हम तीनों भाई एवं हमारे बच्चे स्टेडियम का और बेहतर तरीके से संचालन करेंगे। ललित उपाध्याय ने जिस तरह अपने कामयाबी का श्रेय बड़े भइया स्व: तेजबहादुर सिंह को दिया उसे सुनकर मन विव्हल हो गया।
स्व: तेजबहादुर को द्रोणाचार्य पुरस्कार दिलाने के लिए करूंगा हर संभव प्रयास
पत्रकारों से मुखातिब होते हुए ललित उपाध्याय ने कहा कि जब टीम ने कांस्य पदक जीता को मन सातवें आसमान पर था। अंदर से काफी उत्साह व खुशी थी। सभी खिलाड़ी एक-दूसरे से गले मिलकर बधाई दे रहे थे क्योंकि देश का मान बढ़ा है। करमपुर स्टेडियम से कई सारी यादें जुड़ी हैं। तेजू भइया इसी स्टेडियम में टेबल पर बैठते थे और एक-एक खिलाड़ी का ध्यान देते थे। मेरी परीक्षा थी तो मैं नर्वस था, लेकिन भइया ने कहा कि ललित पहिले पेटभर खाना खा, फिर देखल जाई। एक सवाल के जवाब में कहा कि कांस्य पदक जीतने के बाद सबसे पहले देश और फिर अपने गुरु की याद आई। कहा कि तेजू भइया को द्रोणाचार्य पुरस्कार दिलाने के लिए मुझसे जितना बन सकेगा मैं करूंगा।
ललित के नाम हुआ स्टेडियम का स्टैंड
करमपुर स्टेडियम में एस्ट्रोटर्फ के पश्चिमी तरफ बैठने के लिए बने स्टैंड का नाम ललित उपाध्याय स्टैंड किया गया। ललित ने फीता काटकर उसका उद्धाटन किया।