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आज पद्म योग में दीपोत्सव का अनूठा संयोग, जानिए ज्योति पर्व का विशेष पूजन मुहूर्त

सनातन धर्म के चार प्रमुख पर्वो में दीपावली का प्रमुख स्थान है। इसे कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है।

By Edited By: Published: Sun, 27 Oct 2019 02:26 AM (IST)Updated: Sun, 27 Oct 2019 06:02 PM (IST)
आज पद्म योग में दीपोत्सव का अनूठा संयोग, जानिए ज्योति पर्व का विशेष पूजन मुहूर्त
आज पद्म योग में दीपोत्सव का अनूठा संयोग, जानिए ज्योति पर्व का विशेष पूजन मुहूर्त

प्रमोद यादव [वाराणसी]। सनातन धर्म के चार प्रमुख पर्वो में दीपावली का प्रमुख स्थान है। इसे कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। कार्तिक अमावस्या तिथि 27 अक्टूबर को सुबह 11.51 बजे लग रही है जो 28 को सुबह 9.43 बजे तक होगी। ऐसे में दीपावली 27 को मनाई जाएगी। दूसरे दिन 28 अक्टूबर को दीप ज्योति पर्व श्रृंखला के पर्व-उत्सवों के साथ सोमवती अमावस्या पर स्नान- दान किए जाएंगे। विशेष यह कि इस बार दीपावली पर आनंदादि योगों में खास पद्म योग का संयोग बन रहा है जो माता लक्ष्मी की आराधना के लिए विशेष होता है।

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पूजन मुहूर्त : ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार श्रीसमृद्धि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी को पद्म यानी कमल बेहद प्रिय है। पूजन का प्रमुख काल प्रदोष काल माना जाता है। इसमें स्थिर लग्न की प्रधानता मानी जाती है। अत: दीपावली पर पूजन का शुभ मुहर्त 27 को स्थिर लग्न वृष रात 6.46 से 8.42 बजे तक होगा। इस बार पूजन के समय भी अद्भुत योग स्थिर लग्न वृष के समय पद्म योग महालक्ष्मी की प्रसन्नता में चार चांद लगाने वाला होगा।

महत्व : सनातन धर्म के इस प्रमुख पर्व पर आम सनातनी सुख समृद्धि की कामना से विधिवत लक्ष्मी पूजन करता है। व्यापारी कारोबार उन्नति के लिए तो तात्रिक मंत्र सिद्धि के लिए और जो जिस भी क्षेत्र में हो कार्य सिद्धि के निमित्त मा लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजन-अर्चन, वंदन, पाठ आदि करता है।

मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या दीपावली स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है। इस दिन किसी भी कार्य का आरंभ करने से उसमें वर्षभर सफलता मिलती है।

प्रात: स्नान दान : कार्तिक अमावस्या पर पहले दिन मध्याह्न में पितरों के निमित्त श्राद्धादि करना चाहिए। प्रात:काल में यम को तर्पण व दीपावली पर प्रात: हनुमान जी के दर्शन-पूजन का विधान है।

काली पूजा : अमावस्या पर बंगीय समाज के लोग निशीथ काल में मा काली का विधिवत पूजन करते हैं। पूजनोत्सव 27 की रात किया जाएगा।

कथा : मान्यता है कि रावण पर विजय प्राप्त कर भगवान श्रीराम के वापस आने पर अयोध्यावासियों ने प्रसन्नता में दीपोत्सव मनाया था। ब्रह्मं पुराण अनुसार कार्तिक अमावस्या को अ‌र्द्धरात्रि के समय गणेश -लक्ष्मी, इंद्र-कुबेर सद्गृहस्थों के घरों में जहा-तहा विचरण करते हैं। इसलिए अपने निवास स्थान को सब प्रकार से स्वच्छ शुद्ध व सुशोभित कर चारों तरफ प्रकाश करने व दीपावली मनाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो चिरकाल तक स्थायी रूप से निवास करती हैं। विधि : दीपावली की शाम देव मंदिरों के साथ ही गृह द्वार, कूप, बावड़ी, गोशाला, इत्यादि में दीपदान करना चाहिए। रात्रि के अंतिम पहर में लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा का निस्तारण किया जाता है। व्यापारी वर्ग को इस रात शुभ तथा स्थिर लग्न में अपने प्रतिष्ठान की उन्नति के लिए कुबेर-लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। परिवार में इस रात गणेश-लक्ष्मी कुबेर जी का पंचोपचार का षोडशोपचार पूजन व धूप-दीप प्रज्जवलित कर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्तम, कनकधारा व लक्ष्मी चालीसा समेत किसी भी लक्ष्मी मंत्र का जप पाठ करना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन-धान्य सौभाग्य पुत्र-पौत्र कीर्ति लाभ, प्रभुत्व इत्यादि का महावरदान देती हैं। तिथि विशेष पर प्रात: पवित्र नदी में स्नान-दान कर मध्याह्न में पितरों के निमित्त श्राद्धादि करना चाहिए। प्रात: यम को तर्पण व दीपावली की सुबह हनुमान जी के दर्शन-पूजन-वंदन का विधान है। पूजा सामग्री : लाल वस्त्र आसन पर लक्ष्मी-गणेश, कुबेर-इंद्र की प्रतिमा या यंत्र स्थापित कर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें। भगवती लक्ष्मी की प्रसन्नता व कृपा प्राप्त करने के लिए बेल की लकड़ी, बेल की पत्ती व बेल के फल से हवन करना चाहिए। इसके अलावा कमल पुष्प व कमल गंट्टा से किया गया हवन विशेष फलदायी होता है। मंत्र : 'ओम् श्रीं श्रीयै नम:', 'ओम् श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद', 'श्रीं  ह्रीं श्रीं', 'ओम महालक्ष्मै नम:' इन मंत्रों से पूजन करने से महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। दीपावली पर श्रीसूक्तम का 16 बार पाठ और बेल की लकड़ी पर देशी घी से हवन कामना पूर्ण करने वाला है।


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