'आर्टिकल 15' फिल्म को लेकर सादी वर्दी में सिनेमाघरों में तैनात रही पुलिस Varanasi news
बदायूं जिले के कटरा सआदतगंज गांव में चचेरी बहनों की हत्या पर बनी फिल्म आर्टिकल 15 पर पीडि़त किशोरियों के परिजनों ने आपत्ति जताई।
वाराणसी, जेएनएन। बदायूं जिले के कटरा सआदतगंज गांव में चचेरी बहनों की हत्या पर बनी फिल्म आर्टिकल 15 पर पीडि़त किशोरियों के परिजनों ने आपत्ति जताई। इसके बाद जब यह फिल्म शुक्रवार को सिनेमाहालों रिलीज होने वाली थी तो अहतियात के तौर पर शहर के सभी सिनेमाहालों जहां जहां यह फिल्म रिलीज हुई थी वहां पर सुबह से ही पुलिस बल तैनात कर दिया गया था। खास बात यह कि जिन जिन आडीज में यह फिल्म चल रही थी वहां पर भी पुलिस वाले सादी वर्दी में मौजूद थे। पब्लिक के बीच उनकी मौजूदगी में वह किसी भी तरह के उपद्रव को रोकने के लिए तैयार थे। आइपी मॉल सिगरा के सिनेमा मैनेजर शीतला शरण ने बताया कि फिल्म को लेकर काफी चर्चा है। किसी भी तरह के विरोध की घटना न हो इसके लिए मॉल के गेट से लेकर आडी तक में पुलिस तैनात है। हम लोग भी पूरी मुस्तैदी से जुटे हुए हैं।
भेदभाव के जाल में उलझी जिंदगी
बदायूं के कटरा जिले में चचेरी बहनों की हत्या पर आधारित निर्देशक अनुभव सिन्हा की आर्टिकल 15 भारी सुरक्षा के बीच शुक्रवार को वाराणसी के सिनेमाहालों में रिलीज हो गई। इस फिल्म को लेकर उठ रहे विरोध को देखते हुए सुरक्षा कारणों से शहर के सभी सिनेमाघरों में पुलिस बल तैनात किए गए थे। जातिगत वर्चस्व कायम रखने की मानसिकता को दर्शाती यह फिल्म किस कदर दर्शकों के दिल झकझोर गई बता रही है।
सिगरा निवासी लॉ स्टूडेंट कुमुद का कहना है कि जाति को लेकर आज भी समाज में कितना भेदभाव है वह इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। अभिनेता आयुष्मान खुराना ने आईपीएस आफिसर के किरदार को बखूबी निभाया है। फि ल्म में यह स्पष्ट दिखाया गया है कि आर्टिकल 15 क्या है। फिल्म में कोई आपत्तिजनक डायलॉग नहीं था।
मलदहिया की सौम्या का कहना है फिल्म में अनुभव सिन्हा का डायरेक्शन बढिय़ा है। कैरेक्टर का स्क्रीन प्ले कसा हुआ था। आयुष्मान खुराना का डायलॉग उनके अंदर के आइपीएस के किरदार को सर्पोट कर रहा था। मूवी का लुक उसकी विषय वस्तु को और गंभीर बना रहा था। जहां तक फिल्म के विरोध की बात है तो ये तो समाज के अंदर पनप रही बुराई को दिखा रहा है ऐसे में छिपाने के बजाय समाप्त करने की जरूरत है।
डीएलडब्ल्यू के सौम्यधु्रव प्रेम का कहना है कि फिल्म में स्पष्ट तौर पर यह दिखाया गया है कि आर्टिकल 15 क हता है कि लिंग, जाति, नस्ल या किसी व्यक्ति से भेदभाव नहीं करना चाहिए। फिल्म की कहानी कसी हुई लगी। फिल्म में इस बात को मजबूती से दिखाया गया है कि बिना किसी भेद भाव के हर अधिकार सबको प्राप्त है।
राजेंद्र विहार कालोनी नेवादा के संजय कुमार गौतम ने कहा आर्टिकल 15 बन तो गया लेकिन आज तक कुछ लोगों ने दिमागी तौर पर उसे स्वीकार नहीं किया जिसका नतीजा फिल्म में उन बहनों को भुगतना पड़ा। ऐसी फिल्में समाज के सच को दिखाती हैं जिसे बदलाव की जरूरत है।