डा. फिरोज के पास बीएचयू में अब तीन विकल्प, धर्म विज्ञान के बाद आयुर्वेद और संस्कृत विभाग में भी हुआ चयन
विश्वविद्यालय के कार्यकारिणी परिषद ने जब लिफाफे खोले तो पाया गया कि डा. फिरोज का चयन आयुर्वेद संकाय संहिता एवं संस्कृत सहित कला संकाय के संस्कृत विभाग में भी हुआ है।
वाराणसी, जेएनएन। बीएचयू में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर तैनाती के बाद से डा. फिरोज का विरोध करने वालों को मेधावी मुस्लिम शिक्षक की तरफ से अद्वितीय प्रतिभा का धनी होने का पैगाम मिला है। विश्वविद्यालय के कार्यकारिणी परिषद ने जब लिफाफे खोले तो पाया गया कि डा. फिरोज का चयन आयुर्वेद संकाय संहिता एवं संस्कृत सहित कला संकाय के संस्कृत विभाग में भी हुआ है। सूत्रों के मुताबिक कार्यकारिणी ने चयन पर अपनी स्वीकृति देते हुए गेंद कुलपति प्रो. राकेश भटनागर के पाले में डाल दी है। कार्यकारिणी ने स्पष्ट कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि मुस्लिम शिक्षक धर्म विज्ञान नहीं पढ़ा सकते हैं, फिर भी विश्वविद्यालय को यह देखना चाहिए कि यदि विकल्प हैं तो क्या कुछ बीच का रास्ता निकल सकता है। कार्यकारिणी ने इस मसले पर कुलपति को स्वतंत्र होकर निर्णय लेने का निर्देश दिया। हालांकि अंतिम निर्णय फिरोज लेने के लिए स्वतंत्र हैं कि वे कहां अध्यापन करना चाहेंगे।
नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में शनिवार को बीएचयू की कार्यकारिणी परिषद की बैठक हुई। बैठक में कार्यकारिणी के सभी सदस्य मौजूद रहे। बैठक में सर्वाधिक गंभीर मसला डा. फिरोज का ही रहा जिसपर देर तक कार्यकारिणी ने विमर्श किया। सूत्रों का कहना है कि बैठक में विश्वविद्यालय द्वारा कर्मचारियों के भविष्य निधि के रुपयों के निवेश को लेकर भी मसला उठा। कुलपति द्वारा स्पष्ट किया गया कि पूर्व में कई वर्षों के दौरान कुल 180 करोड़ रुपये डीएचएफएल (दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड) में निवेश किए गए थे जिसमें ब्याज सहित 175 करोड़ रुपये वापस भी मिल गए हैं, शेष फंसे फंड को लेकर विधिक परामर्श लिया जा रहा है। कार्यकारिणी ने विश्वविद्यालय की इनवेस्टमेंट कमेटी को निर्देश दिया कि कर्मचारियों के फंड को विश्वसनीय सेक्टर में ही निवेश करें। खासकर प्राइवेट सेक्टर को लेकर बेहद सतर्कता से कदम उठाया जाए।
कितनी स्वायत्तता चाहता है आइएमएस
-बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान (आइएमएस) और अस्पताल को एम्स जैसा दर्जा दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि बैठक में मांग उठी कि आइएमएस को और स्वायत्तता चाहिए। कार्यकारिणी ने सवाल उठाया कि आखिरकार उन्हें कितनी स्वायत्तता चाहिए। यह ध्यान रहे कि आइआइटी बीएचयू की तरह ही आइएमएस भी हमेशा विश्वविद्यालय के अधीन ही रहेगा। किसी भी सूरत में पूर्ण स्वायत्तता नहीं दी जाएगी। हां, यह भी है कि उन्हें मिलने वाली फंडिंग और उनके कार्यों में बेवजह बीएचयू प्रशासन द्वारा कोई बाधा नहीं पहुंचेगी। बैठक में नीति आयोग के एक सदस्य ने इस संबंध में प्रजेंटेशन भी दिया। अंत में कार्यकारिणी ने कहा कि जो भी अपेक्षाएं हैं उनका विस्तृत प्रस्ताव अगली बैठक में लाया जाए।
अवमानना मामले में चुनौती देगा विवि
-कार्यकारिणी की बैठक में न्यायालय से जुड़े विश्वविद्यालय के मामलों को लेकर भी चर्चा हुई। कुलपति ने कार्यकारिणी सदस्यों को बताया कि डा. अभिषेक चंद्रा मामले में अवमानना को लेकर विश्वविद्यालय याचिका दायर करेगा। प्रबंधशास्त्र की एक नियुक्ति से जुड़े मामले में कार्यकारिणी ने न्यायालय का फैसला आने तक रोक लगा दी है।
ट्वीट मामले में निर्णय बाद में
-कार्यकारिणी परिषद के समक्ष समाजशास्त्र के एक प्रोफेसर के खिलाफ एक छात्र द्वारा आपत्तिजनक ट्वीट किए जाने का मामला कार्रवाई के लिए लाया गया जिसपर अगली बैठक में विचार की सहमति बनी। साथ ही कार्यकारिणी ने विवि को इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट आदि के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय से लोन लेने की सहमति प्रदान की। बैठक में कुलपति के अलावा कार्यकारिणी परिषद के सदस्य फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट डीम्ड यूनिवर्सिटी-देहरादून के डा. एके त्रिपाठी, एचएनबी गढ़वाल विवि-उत्तराखंड के प्रो. हरीशचंद्र नैनवाल, आइसीएआर रिसर्च सेंटर रांची के डा. एके सिंह, मणिपुर केंद्रीय विवि के पूर्व कुलपति प्रो. आद्या प्रसाद पांडेय, इलाहाबाद विवि के प्रो. अशीम कुमार मुखर्जी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा के प्रो. राम नरेश मिश्रा, रसायन विज्ञान विभाग-बीएचयू के प्रो. बच्चा सिंह व एमेरिट्स प्रोफेसर आइआइटी-बीएचयू के प्रो. आनंद मोहन शामिल थे।