वाराणसी के इस युवक ने ऐसे कोरोना को दी मात, बोला- इंडिया में मिला काम तो नहीं जाऊंगा दुबई
वाराणसी के हरहुआ ब्लाक के युवा जितेंद्र विश्वकर्मा का कहना है कि अस्पताल में डॉक्टरों का प्रेम ऐसा मिला कि पता ही नहीं चला और मैं ठीक हो गया लगा जैसे मैं अपने घर में ही हूं।
वाराणसी, जेएनएन। वाराणसी के हरहुआ ब्लाक के चुप्पेपुर ग्राम पंचायत के राजस्व गांव छतरीपुर के युवा जितेंद्र विश्वकर्मा (30 वर्ष) ने कोरोना को हराकर स्वस्थ होकर घर लौट आए। वह दुबई के जबिल अली में ऑफिस में फोन आपरेटर का कार्य करता था। जितेंद्र ने बताया कि पत्नी को पहली संतान होने की सूचना पर खुशी में वतन के लिए चला क्योंकि दुबई की सरकार भी कोरोना को लेकर यह सूचना दी कि जिसको अपने वतन जाना हो, तो जा सकता है। 9 माह रहने के बाद अपने बुआ के लड़के के साथ एयर इंडिया के प्लेन से 20 मार्च को बाबतपुर हवाई अड्डा पर 4 घंटे का सफर कर पहुंचा। वहां से प्राइवेट कार से घर पहुंचा। अगले दिन एयरपोर्ट से काॅल आया कि अपनी जांच कराकर रिपोर्ट करें। अगले दिन पंडित दीनदयाल चिकित्सालय जाकर मिला जहां कोई सिप्टम नहीं मिला और दवा देकर छोड़ दिया गया।
जितेंद्र ने बताया कि अगले दिन पुनः एयरपोर्ट से कॉल आया। 26 मार्च को गले मे परेशानी हुई तो पुनः जांच कराने पहुंचा तो डॉक्टर नहीं थे। अगले दिन 27 को फिर गया। पहले वाले डॉक्टर मिले उन्होंने जांच की और आइसोलेशन वार्ड में रख लिया। 10 दिन उपचार के बाद घर पहुंचा। मुझे पता ही नही चला कि मैं अस्पताल में हूं। डॉक्टर से मुझे प्रेम, खाना, दवा, देखरेख, अच्छी बातें करने को मिला।
डॉक्टरों का साहस व प्यार पाकर कोरोना को हराया
डॉक्टर शुक्ला का वह जज्बा, धीरज कि तुम्हे कुछ नहीं हुआ है, हिम्मत से अस्पताल में रहो, तुम ठीक हो। अस्पताल में सुबह शाम दवाएं समय पर भोजन, नाश्ता, चाय प्रतिदिन सब्जी बदलकर मिलती रही। चावल नहीं खाना था। अस्पताल का माहौल यह था कि सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की जरूरत थी। समय 10 दिन बीत गया और पता ही नहीं चला। रिपोर्ट निगेटिव आई तो घर एंबुलेंस से पहुंचा दिया गया। अलग कमरे में 14 दिन क्वारंटाइन में रहा।
ग्राम प्रधान प्रतिनिधि ने इस घड़ी में परिवार का साथ दिया
6 सदस्यों का छोटा परिवार गांव से 500 मीटर दूर अलग घर पर हैं। पिताजी सहित पूरे परिवार को क्वारंटाइन में कर दिया गया। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि प्रेमशंकर ने घर पर राशन की दुकान से राशन स्वयं पहुंचाया, मेरी एक अदद गाय जिसका भूंसा खत्म हो गया, खुले बाजार में भूंसा नही बिक रहा था अपने घर से बोरे में भूंसा लेकर गो माता की सेवा की। घर मे बालक होने की खुशी में गाया गया। भले ही बालक का जन्म अस्पताल में हुआ लेकिन परिजनों में अंदर से खुशी तो ऊपर से कोरोना को लेकर चिंता थी। मुझे अस्पताल में सोहर गाने खुशी मनाने की जानकारी हुई तो मन बड़ा ही प्रसन्न हुआ।
40 से 50 हजार रुपये मिलता था विदेश में
कोरोना की भयावहता बड़ी थी लेकिन उस पर विजय पाने का श्रेय मैं अस्पताल के डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ व अस्पताल की प्रबंधन को देता हूं। वैसे काशी में जहां भोलेनाथ हैं वहां कोई चिंता नहीं होती और न ही कोई अनाथ होता है। मेरे दिल मे संतोष व खटक यह था कि यदि दुबई में कोरोना का शिकार होता तो न जाने क्या होता। स्वदेश अपने घर, शहर में रहा और चिंतामुक्त रहा। सब भगवान व स्वजनों की कृपा है। लेकिन सबसे बड़ी कृपा यहां के डॉक्टरों की सेवा है। विदेश में 40 से 50 हजार रुपये मिलता था। अब इंडिया में इस तरह के काम मिले तो विदेश नहीं जाऊंगा। बाबा विश्वनाथ, काल भैरव की कृपा से सब ठीक बीत रहा है।