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Pitra Paksha 2021 : इस बार 16 दिन का होगा पितृ पक्ष, पितृ ऋण तीन ऋणों में सबसे प्रमुख

Pitra Paksha 2021 अश्विन कृष्ण पक्ष में तृतीया की वृद्धि होने से 23 और 24 सितंबर को भी पितृ पक्ष की तिथि का मान रहेगा। 21 सितंबर की भोर 448 बजे लग रही प्रतिपदा इस बात 22 सितंबर की भोर 507 बजे तक रहेगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 18 Sep 2021 09:32 PM (IST)Updated: Sat, 18 Sep 2021 09:32 PM (IST)
Pitra Paksha 2021 : इस बार 16 दिन का होगा पितृ पक्ष, पितृ ऋण तीन ऋणों में सबसे प्रमुख
आश्विन कृष्ण पक्ष में तृतीया की वृद्धि होने से 23 और 24 सितंबर को भी पितृ पक्ष की तिथि होगी।

वाराणसी, जेएनएन। इस बार आश्विन कृष्ण पक्ष में तृतीया की वृद्धि होने से 23 और 24 सितंबर को भी पितृ पक्ष की तिथि का मान रहेगा। 21 सितंबर की भोर 4:48 बजे लग रही प्रतिपदा इस बात 22 सितंबर की भोर 5:07 बजे तक रहेगी। वैसे तो सनातन धर्म में पितर ऋण तीन ऋणों में प्रमुख माना जाता है। पितरों को देव की मान्यता है और उन्हें समर्पित आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष कहा जाता है। यह पखवारा 21 सितंबर से शुरू हो रहा है। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि 21 सितंबर की भोर 4:48 बजे लग रही है जो 22 सितंबर की भोर 5:07 बजे तक रहेगी। पितृ पक्ष की समापन छह अक्टूबर सर्वपैत्री अमावस्या पर पितृ विर्जसन से होगा। इस बार खास यह है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में तृतीया तिथि की वृद्धि हो रही है जो 23 और 24 सितंबर को भी रहेगी। इससे पितृ पक्ष 16 दिनों का होगा।

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ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सनातन धर्म में किसी पक्ष का आरंभ उदया तिथि अनुसार माना जाता है। वहीं श्राद्ध-तर्पण का समय दोपहर में होता है। शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव, पितृ, ऋषि तीन ऋण बताए गए हैं। जिन माता-पिता ने हमारी आयु-आरोग्यता, सुख-समृद्धि में अभिवृद्धि के लिए अनेकानेक प्रयास किए हैं। उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है।

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार सनातन धर्म में पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए पितृपक्ष महालया की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध के दस प्रकारों में से एक प्रकार को महालया कहा जाता है। हर सनातनी को वर्ष भर में पितरों की मृत्यु तिथि पर जल, तिल, जौ, कुश, पुष्प आदि से उनका श्राद्ध करना चाहिए। गो-ग्रास देकर एक, तीन, पांच ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितृगण संतुष्ट होते हैं। इससे परिवार में सुख-समृद्धि, शांति, यश-वैभव, कीर्ति प्राप्त होती है।


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