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बलिया जिले में बहुरिया का कुआं कभी क्षेत्र की मिटाता था प्‍यास, आज खुद के पहचान की तलाश

हमारे पूर्वज पर्यावरण व प्रकृति का महत्व जानते थे। बड़े बड़े राजा जमींदार व्यवसायी धार्मिक व सामाजिक कार्यो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। आज हम अपने पूर्वजों की धरोहर तालाब कुएं व बगीचे को संरक्षित नहीं कर पा रहें हैं।

By Abhishek sharmaEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2021 07:20 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2021 07:20 AM (IST)
बलिया जिले में बहुरिया का कुआं कभी क्षेत्र की मिटाता था प्‍यास, आज खुद के पहचान की तलाश
आज हम अपने पूर्वजों की धरोहर तालाब, कुएं व बगीचे को संरक्षित नहीं कर पा रहें हैं।

बलिया, जेएनएन। हमारे पूर्वज पर्यावरण व प्रकृति का महत्व जानते थे। बड़े बड़े राजा, जमींदार, व्यवसायी धार्मिक व सामाजिक कार्यो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। आज हम अपने पूर्वजों की धरोहर तालाब, कुएं व बगीचे को संरक्षित नहीं कर पा रहें हैं। विकास खंड रेवती अंतर्गत झरकटहां ग्राम सभा के वशिष्ठनगर प्लाट गांव में स्थित बहुरिया का कुआं (इनार) भी संरक्षक व देखरेख के अभाव में अपनी पहचान खोने के कगार पर है। इस कुआं का दूसरा नमूना पूरे पूर्वांचल में कहीं नहीं है। आज एक करोड़ रुपये खर्च करने पर भी इस तरह का कुआं बनना संभव नहीं दिखता। 

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इस कुआं की यह है खासियत 

इस कुआं की खासियत यह है कि इसमें एक साइड से पांच फीट चौड़ी मवेशियों के पानी पीने के लिए हौदा बना हुआ है। चढऩे के लिए दो तरफ से सीढ़ी है। कुआं के ऊपरी सतह में 6 कमरे बने हैं। उसमें उस क्षेत्र से आवागमन करने वाले व्यक्ति विश्राम करते थे। आज शासन प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते इसका अस्तित्व समाप्ति के कगार पर है। इसके ऊपर झाड़-झंखाड़ उग आए हैं। आसपास के लोग इस पर उपले पाथ रहे हैं।

बहुरिया के कहने पर हुआ था कुआं का निर्माण 

लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व झरकटहां ग्रामवासी रामदिहल ङ्क्षसह जमींदार के खानदान में शादी के बाद डोली में बैठ कर कन्या (बहुरिया ) झरकटहां ससुराल आ रही थी। वशिष्ठनगर प्लाट गांव जहां कुआं स्थित है, गर्मी व धूप के चलते कहारों ने वहीं डोली रखा। कहारों को प्यास लगी थी लेकिन उस विरान स्थल पर दूर-दूर तक कहीं पानी या कुआं नजर नहीं आया। इस पीड़ा को बहुरिया ने भी महसूस किया। ससुराल में आते ही बहुरिया ने मांग रखा कि उस वीरान स्थल पर कुआं का निर्माण कराया जाए। उनकी मांग को अतिरेवती (बलिया) : हमारे पूर्वज पर्यावरण व प्रकृति का महत्व जानते थे। बड़े बड़े राजा, जमींदार, व्यवसायी धार्मिक व सामाजिक कार्यो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। 

आज हम अपने पूर्वजों की धरोहर तालाब, कुएं व बगीचे को संरक्षित नहीं कर पा रहें हैं। महत्वपूर्ण मानते हुए ससुराल के लोगों ने इस कुआं का निर्माण कराया। तब इस कुआं का जल मीठा होने के चलते दूर दराज से भी लोग पानी पीने पहुंचते थे। अब इनके खानदान के रामाशीष ङ्क्षसह गांव में तथा उनके पुत्र गुंजन ङ्क्षसह बलिया रहते है। झरकटहां ग्राम सभा के पूर्व प्रधान राजकिशोर यादव ने बताया की इसके जीर्णोद्धार के लिए कई बार पहल की गई लेकिन शासन स्तर से अभी तक कोई बजट नहीं आया। 


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