स्वस्थ समाज : साफ्टवेयर बताएगा बच्चे की प्रकृति, रोक सकेंगे रोग व विकृति
बड़े होकर आपके बच्चे का स्वभाव और प्रकृति आखिरकार कैसी होगी, उसका रुझान किस क्षेत्र की ओर होगा, भविष्य में कौन सी बीमारी हो सकती है, यह बताएगा एक साफ्टवेयर।
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। बड़े होकर आपके बच्चे का स्वभाव व प्रकृति कैसी होगी, उसका रुझान किस क्षेत्र की ओर होगा, भविष्य में उसे कौन-कौन सी बीमारी परेशान कर सकती है, इन सभी सवालों का जवाब आपको अब आसानी से मिल सकेगा। आयुर्वेद में वर्णित त्रिविध परीक्षा यानी दर्शन, स्पर्शन, प्रश्न के माध्यम से बच्चे की प्रकृति जान सकें इसके लिए आयुर्वेद में वर्णित प्रकृति निर्धारण लक्षणों को लेकर बीएचयू और आइआइटी की सहायता से पीआरएस-आइपीए साफ्टवेयर (प्रोटोटाइप रिसर्च सॉफ्टवेयर-इंफैंट प्रकृति एसेसमेंट) बनाया गया है। इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से बच्चे की प्रकृति को जानने के साथ उसके आहार-विहार और भविष्य में होने वाली विकृतियों अथवा बीमारियों का इलाज करना आसान हो जाएगा।
एसोसिएट प्रोफेसर ने किया शोध : आयुर्वेद में वर्णित त्रिविध परीक्षा पर यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन आयुर्वेद एंड फार्मेसी में प्रकाशित हो चुका है। बीएचयू आयुर्वेद संकाय केबाल रोग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर बीएम सिंह के मार्गदर्शन में इस पर राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, चौकाघाट के एसो. प्रोफेसर डा. नीरज श्रीवास्तव ने शोध किया। जबकि शरीर क्त्रिया विभाग की अध्यक्ष प्रो. संगीता गहलोत और कंप्यूटर साइंस आइआइटी के डा. संजय सिंह को-सुपरवाइजर थे। इस शोध पर आधारित यह साफ्टवेयर बेंगलुरू स्थित एसएपी लैब में कार्यरत डा. प्रगुन सिंह ने बनाया है। इसी शोध के लिए डा. नीरज श्रीवास्तव को अगले वर्ष 10 से 12 जून तक बेल्जियम में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में बतौर अतिथि वक्ता आमंत्रित भी किया गया है।
बच्चे दर्शन व स्पर्शन और मा बताएंगी प्रश्न : डा. नीरज ने बताया कि इस सॉफ्टवेयर में छोटे बच्चों का एनॉटामिकल फिजिकल व फिजियोलॉजिकल पैरामीटर बनाया गया है। इसमें प्रकृति को निर्धारित करने वाले लक्षणों को प्रश्न के रूप में बच्चे की मा से पूछा जाता है, क्योंकि छोटा बच्चा प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाएगा। इस सॉफ्टवेयर का उपयोग 18 साल तक के बच्चों के लिए भी किया जा सकता है।
स्वस्थ बच्चे का ही प्रकृति निर्धारण : प्रकृति निर्धारण हमेशा स्वस्थ बच्चे का किया जाता है। प्रकृति निर्धारण होने से बच्चे को भविष्य में होने वाली बीमारियों के प्रति भी सावधान रह सकेंगे। साथ ही खान-पान और रहन-सहन को प्रकृति के अनुरूप नियंत्रित कर बच्चे को स्वस्थ रखा जा सकता है। बच्चा भविष्य में किस क्षेत्र में अच्छा कर सकता है यह भी इसके द्वारा निर्धारित किया जा सकता है, मगर इस पर अभी व्यापक शोध करने की जरूरत है।