World Water Day 2021: वाराणसी में दो सदी पुरानी तकनीक से लबालब रहेंगे पौराणिक मान्यता के कुंड
करीब 200 साल पुरानी तकनीक की मदद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में जल संचयन की नई योजना आकार लेगी। इससे ‘स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम’ (वर्षा जल निकासी व्यवस्था) की मदद से काशी के कुंड और तालाब पूरे साल पानी से लबालब रहेंगे।
वाराणसी [विनोद पांडेय]। करीब 200 साल पुरानी तकनीक की मदद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में जल संचयन की नई योजना आकार लेगी। इससे ‘स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम’ (वर्षा जल निकासी व्यवस्था) की मदद से काशी के कुंड और तालाब पूरे साल पानी से लबालब रहेंगे। जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई ने 2012 में इसके पहले चरण का काम एलएंडटी कंपनी को दिया था। इसे एक साल में पूरा करना था, मगर सपा सरकार में योजना देरी का शिकार हो गई। 2015 में नगर निगम ने इस योजना को अधूरा मानकर नहीं स्वीकारा।
दूसरे चरण की तैयारी : पहले चरण में रोड साइड ड्रेन (सड़क किनारे स्थित नाले) का 28.30 किलोमीटर,मेजर ड्रेन (प्राकृतिक नाले) का 48.30 किमी व डिस्पोजल ड्रेन (तालाब-कुंड, नदियां आदि) का 12 किमी काम पूरा हो चुका है। अब दूसरे चरण में 11 पुरानी ड्रेनेज इकाइयों (प्राकृतिक व बरसाती नाले) के जीर्णोद्धार के साथ ही 25 कुंडों व तालाबों को जोड़ने का काम होना है। इसके लिए कंटूर लाइन (नक्शे पर यह लाइन दर्शाती है कि जमीन के ढलान और ऊंचाई के मुताबिक बारिश का पानी किधर बहेगा) बनानी है, जो कुंड व तालाबों को आपस में जोड़ेगी। यह साइफन विधि (जल को एक पात्र से नीचे स्तर पर मौजूद दूसरे पात्र में पहुंचाना। जलस्तर समान होने पर बहाव रुक जाता है) के तहत काम करेगा। इस तरह सभी कुंड व तालाब लबालब हो जाएंगे। ओवरफ्लो पानी मेजर ड्रेन से नदियों में चला जाएगा। 11 ड्रेनेज इकाइयों में वरुणा नदी के जीर्णोद्धार व सुंदरीकरण का कार्य पूरा हो चुका है। असि नदी, नरोखर ताल, नक्खीघाट नाला, सिकरौल नाला, नगवां नाला, सामनेघाट नाला का कार्य प्रारंभ होना है।
इन तालाबों का हो रहा सुंदरीकरण: स्मार्ट सिटी योजना से नदेसर, चकरा, घनेसरा, रानी ताल, सोनभद्र, चितईपुर, नेवादा, सगरा, सोनिया तालाब, पांडेयपुर, पहड़िया, सारंग तालाब, लक्ष्मी कुंड, पिशाच मोचन का सुंदरीकरण होगा। गुरुबाग स्थित श्रीनगर कालोनी में करीब 200 साल पहले बनाया गया ‘स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम’ दूरदर्शी सोच की मिसाल है। इसका उल्लेख 1883 के दस्तावेज में रामकुंड के रूप में है। दुर्गाकुंड, लक्ष्मीकुंड, सूरजकुंड, रामकुंड, कुरुक्षेत्र, सोनभद्र, पुष्कर आदि कुंड-तालाब भी आपस में जुड़े बताए जाते हैं। साल भर लबालब रहने वाले इन कुंडों के जल की निकासी गंगा की ओर है। ड्रेनेज सिस्टम इस तरह है कि इन कुंडों के भर जाने पर बारिश का पानी डेढ़सी पुल (विश्वनाथ मंदिर के द्वार) के निकट शाही नाले से होते हुए डा. राजेंद्र प्रसाद घाट पर गंगा में गिरता है। 1986 में गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा में मिल रहे नालों को बंद कर पंपिंग स्टेशनों से जोड़ दिया गया। इससे इन कुंडों का आपस में संबंध टूट गया। दुर्गाकुंड और लक्ष्मीकुंड के सुंदरीकरण का कार्य कराने वाली कंपनी नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन के महाप्रबंधक अनिल यादव बताते हैं कि दोनों तालाबों की सफाई के दौरान उन्होंने पाया कि लखौरी ईंटों (पतली सपाट लाल रंग की पकी मिट्टी की ईंटें जिनका मुगलकाल में किलों, जलाशयों, पुलों में इस्तेमाल होता था) से बना इनका ड्रेनेज सिस्टम गुरुबाग कालोनी जैसा ही है।
बोले अधिकारी : 'स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम’ का प्रथम चरण पूरा हो चुका है। अब तालाबों को जोड़ने के लिए बने ब्लू प्रिंट पर मंथन हो रहा है, ताकि जल संचयन को लेकर यह बड़ी कोशिश शुरू हो सके। -एके पुरवार, महाप्रबंधक, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई
बोले अधिकारी : कुंडों व तालाबों को वर्षाजल से सालभर लबालब रखने के लिए स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम की कनेक्टिविटी को लेकर नए सिरे से कार्ययोजना बनी है। यह काफी कारगर है। -गौरांग राठी, नगर आयुक्त, वाराणसी