पहचान : फीकी पड़ रही जमैथा के खरबूजे की मिठास, जौनपुर सहित कई जिलों में है प्रसिद्ध
जमैथा का खरबूजा जौनपुर ही नहीं अन्य तमाम जनपदों में स्वाद व मिठास में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है। लेकिन इस लाजवाब फल को प्रकृति की बुरी नजर लग गई है।
जौनपुर, जेएनएन। जमैथा का खरबूजा जौनपुर ही नहीं, अन्य तमाम जनपदों में स्वाद व मिठास में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है। लेकिन इस लाजवाब फल को प्रकृति की बुरी नजर लग गई है। शायद यही वजह है कि अब न तो यहां के खरबूजे में वह पहले वाली मिठास रह गई और न ही इसकी बोआई के प्रति किसानों की कोई खास रुझान। पहले जहां पैदावार प्रति बीघे आठ मन हुआ करती थी, वहीं आज यह घटकर आधी पहुंच गई है।
इस फल के मिठास का कारण खेतों में रासयनिक खादों का अधिक से अधिक प्रयोग है।
फरवरी के पहले सप्ताह से करीब एक माह तक खरबूजा की बोआई का कार्यक्रम चलता है। औसतन प्रति बीघा के हिसाब से एक कुन्तल नीम की खली, बीस किलोग्राम डाई तथा एक किलोग्राम खरबूजा का बीज प्रयोग में लाया जाता है। पहले यह शानदार फल यहां मई माह के प्रथम सप्ताह से निकलने लगता था। वक्त के साथ बदलाव आया। अब काश्तकार बोआई का कार्य ही अप्रैल से आरंभ करते हैं और उत्पादन जून तक होता है। सबसे बड़ी बात यह कि न खेत खाली छोड़े जा रहे हैं और न ही जैविक खादों की तरफ ही ध्यान दिया जा रहा है। यहां के कई किसानों ने बताया कि पहले इन खाली पड़े खेतों में पशुओं के गोबर व मूत्र को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करते थे। अब इन चीजों का अभाव है। किसानों की आमदनी घटकर 20 से 25 हजार प्रति बीघा तक आ गई है।
जनपद के सिरकोनी विकास खंड अंतर्गत गोमती नदी किनारे बसे जमैथा गांव में 14 मौजों अखड़ो बस्ती, शिवपुर, रामनगर, कैथोली, दुमटी, जमैथा, गड़ही, बंगाली वीर आदि क्षेत्र में लगभग 200 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में खरबूजा की खेती होती थी। यह फल जनपद ही नहीं पूरे पूर्वांचल में निर्यात किया जाता है। किसान पन्ना लाल, नरेंद्र कुमार, शशिधर, लक्ष्मी नारायण आदि ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण के चलते खरबूजे की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। पहले की अपेक्षा उत्पादन घट गया है। पहले जहां एक पौधे में 20 फल लगते थे वहीं अब संख्या आधे से भी कम हो गए हैं। अधिकांश किसान अधिक उत्पादन पाने के लिए हाईब्रिड बीज बो रहे हैं। जमैथा की खरबूजे की मिठास तभी कायम रह सकती है जब पुरवइया हवा चले। इसकी पैदावार बलुई मिट्टी में होती है। यह नदी का पानी बढ़ने या फिर दो-तीन साल में आने वाली बाढ़ के सहारे खेतों में पहुंचती है। ऐसा न होने पर खरबूजे की मिठास पर असर पड़ता है।
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