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काशी में खुलेगा पूर्वाचल का पहला बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर, टाटा मेमोरियल सेंटर की पहल

पूर्वाचल के साथ ही बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में सिकल सेल एवं ब्लड कैं सर की समस्या बढ़ती ही जा रही है।

By Edited By: Published: Thu, 21 Feb 2019 11:46 AM (IST)Updated: Thu, 21 Feb 2019 11:46 AM (IST)
काशी में खुलेगा पूर्वाचल का पहला बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर, टाटा मेमोरियल सेंटर की पहल
काशी में खुलेगा पूर्वाचल का पहला बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर, टाटा मेमोरियल सेंटर की पहल

वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। पूर्वांचल के साथ ही बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में सिकल सेल एवं ब्लड कैंसर की समस्या बढ़ती ही जा रही है। दशकों से चली आ रही इस समस्या को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चिंता व्यक्त कर चुके हैं। वह भी बीएचयू में ही। बावजूद इसके बीएचयू में बीएमटी (बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर) नहीं शुरू नहीं हो पाया, जबकि 2013 से ही इसकी कवायद चल रही है। वहीं टाटा मेमोरियल सेंटर की ओर से लहरतारा स्थित होमी भाभा कैंसर अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर खोलने की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है, जबकि इस इस अस्पताल को शुरू महज एक ही साल हुआ है। यहां पर ब्लड बैंक भी खुलने जा रहा है जिसका लाइसेंस एनएचएम (नेशनल हेल्थ मिशन) की ओर से लाइसेंस भी मिल गया है।

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चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के ट्रामा सेंटर परिसर में बोन मैरो ट्रांसप्लाट एंड स्टेम सेल रिसर्च सेंटर का शिलान्यास जनवरी 2013 में ही हो गया था। 35 करोड़ की इस आलीशान बिल्डिंग को बनाने में करीब सवा चार साल लग गए। यानी मार्च 2017 से ही यह भवन तैयार खड़ा है। बावजूद इसके इसमें बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं शुरू हो पाई है। अभी तक इसके लिए न तो मैन पावर तैयार हो पाया है और न ही उपकरणों की खरीद हो सकी है, जबकि उपकरणों के लिए 40 करोड़ राशि भी स्वीकृत हो चुकी है। यहीं नहीं बीएचयू का खुद का ब्लड बैंक भी है। इसके बाद भी यह हालत है। वहीं उधर, टाटा ट्रस्ट ने महज एक साल में ही बीएचयू का आइना दिखा दिया। हालांकि यहां भी लाइसेंस के लिए महीनों इंतजार करना पड़ा। डिप्टी डायरेक्टर प्रो. सत्यजीत प्रधान के अनुसार होमी भाभा कैंसर अस्पताल में ब्लड बैंक के लिए लाइसेंस मिल गया है। जल्द ही यहां पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर खोल दिया जाएगा।

इसलिए जरूरी है बोन मैरो ट्रासप्लाट : आमतौर पर बोन मैरो ट्रासप्लाट मरीज का बोन कैंसर के लिंफोमा, मल्टीपल माइलोमा और ल्यूकेमिया आदि की स्थिति में किया जाता है। इसमें दो तरह की विधि अपनाई जाती है। पहली मरीज के ही खून से बीएमटी होता है, जिसमें आटोलॉगस विधि का उपयोग होता है। यह विधि तब प्रयोग में लाई जाती है जब मरीज को इलाज के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लाट की जरूरत होती है। हालांकि डोनर से भी विकल्प है, लेकिन इसमें इंफेक्शन का खतरा रहता है।


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