पोखरण परीक्षण के सफल नेतृत्वकर्ता अब बीएचयू को दे रहे सेवाएं, नहीं ले रहे भत्ता व खर्च
दुनिया के बहुत से संस्थानों ने डीएससी ऑनरेरी की उपाधि दी है जिनमें से एक सबसे खास है काशी हिंदू विश्वविद्यालय का सम्मान। जब भी यहां आता हूं खुद को इसी बगिया का एक छात्र पाता हूं।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। दुनिया के बहुत से संस्थानों ने डीएससी ऑनरेरी की उपाधि दी है, जिनमें से एक सबसे खास है काशी हिंदू विश्वविद्यालय का सम्मान। मैं जब भी यहां आता हूं खुद को इसी सुंदर बगिया का एक छात्र पाता हूं। यह बातें पोखरण परीक्षण 'मिशन शक्ति भाग-1 ( वर्ष 1974) और भाग-2 (वर्ष 1998) का नेतृत्व करने वाले डा. आर चिदंबरम ने कही। अब वे विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में बीएचयू के भौतिकी विभाग को सेवाएं दे रहे है।
लैब साइंटिस्ट से अपना करियर शुरू करने वाले डा. चिदंबरम 1974 परीक्षण में राजा रमन्ना के साथ, तो 1998 में डा. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ नेतृत्व की भूमिका में थे। इस मिशन को कुशलतापूर्वक अंजाम देने के बाद डा. चिदंबरम वाजपेयी काल से लेकर अभी पिछले कुछ महीनों तक भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे हैं। बीएचयू के एमिरेट्स प्रोफेसर ओ एन श्रीवास्तव के मुताबिक विश्वविद्यालय से बिना किसी भत्ते और खर्च लिए 20 साल से नियमित बीएचयू आकर भौतिकी के छात्रों के प्रेरणास्रोत बने हैं। उन्ही के प्रभाव से बीएचयू के कई छात्र बार्क और कलपक्कम परमाणु साइट पर भी जाकर प्रशिक्षण लेकर न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनते रहे हैं। परीक्षण के बाद 1999 में जब वे विश्वविद्यालय आये थे, तो छात्रों को मिशन शक्ति की आपबीती सुनाई थी। उस दौरान सभी छात्रों व प्रोफेसरों में कौतूहल था कि किस तरह से बिना मिलिट्री प्रशिक्षण के बज्र गर्मी और रेतीले हालातों में अमेरिकी जीपीएस से बचाकर परीक्षण को अंजाम दिया गया था। वह जितने भी दिन बनारस रहते हैं, बीएचयू के भौतिकी विभाग स्थित लैब में प्रशिक्षण और व्याख्यान में ही मशगूल रहते हैं।
बनारस के रसगुल्ले जैसा कुछ नहीं
बातचीत में डा. चिदंबरम ने बताया कि जब भी वह बीएचयू आते हैं तो बनारस के घाट पर स्नान कर मंदिरों में दर्शन और स्थानीय व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं। वह बताते हैं कि बनारस जैसा रसगुल्ला और दूध का स्वाद तो अद्भुत था, शायद इतना स्वादिष्ट रसगुल्ला तो कहीं और नहीं।
थोरियम से ऊर्जा बनाने में 40 फीसदी सफलता
थोरियम का सबसे ज्यादा भंडार भारत में है, इसके उत्पादन पर बात करते हुए डा. चिदंबरम ने बताया कि हम अभी सबसे एडवांस थर्ड स्टेज में च्थोरियम-यूरेनियम 233च् पर काम कर रहे हैं। इसके लिए कलपक्कम के नाभिकीय केंद्र में रिसर्च रिएक्टर कामिनी का संचालन किया जा रहा है। प्रो. श्रीवास्तव के मुताबिक थोरियम से परमाणु ऊर्जा पर लगभग 40 फीसदी तक सफलता मिल चुकी है।