गंवई अंदाज में दिखीं शहर की स्टाइलिश महिलाएं, फेसबुक पर गांव की थीम पर पार्टी
वाराणसी में कोरोना संक्रमण काल में महिला मंडल की ओर से फेसबुक पर हर सप्ताह थीम पार्टी हो रही है महिलाएं सज रही हैं नृत्य संगीत और मनोरंजन भी हो रहा है।
वाराणसी, [वंदना सिंह]। वह सखियों का मिलना और धूम-धड़ाके से थीम पार्टियों को आयोजित करना जिसमें कभी बॉलीवुड की दस्तक होती तो कभी डिस्को। मगर कोरोना के चलते अभी क्लबों की थीम पार्टी बंद है। पिछले साल तक जब तक कोरोना को कोई जानता नहीं था तब तक सभी क्लबों में मौसम, त्यौहार, माहौल के अनुसार विशेष आयोजन हुआ करते थे। जहां महिलाएं सज धज कर नृत्य संगीत के बीच इन आयोजनों का आनंद लेती थी। बाकायदा इनकी प्लानिंग होती और एक विशेष थीम तैयार की जाती थी। उसी के अनुसार सजावट, परिधान आदि होता कई क्लबों में महिलाओं ने आखिर अपने मनोरंजन का रास्ता ढूंढ निकाला है। उनके यहां हर सप्ताह थीम पार्टी हो रही है, महिलाएं सज रही हैं, नृत्य संगीत और मनोरंजन भी हो रहा है, बस यह सब चीजें एक साथ एक जगह पर मौजूद होकर नहीं फेसबुक उनके चित्रों व वीडियो को पोस्ट कर हो रहा है। साथ ही जबरदस्त कैप्शन भी उपहार में उन्हें मिला।
विदुषी महिला मंडल की महिलाओं ने ऐसा ही आयोजन किया। कोई चूल्हे पर रोटी सेंकती नजर आई तो कोई हंसूए से सब्जी काटते, गायों को चारा खिलाते, कुएं से पानी निकालते दिखी। सिर को ढंके, भर मांग सिन्दूर लगाए, पैरों में पायल, हाथों में भरी हुई चूड़ियां और चटकीले रंग की साड़ियां पहने ये महिलाएं नानी दादी के गांव के दौर की याद ताजा कर जा रही थीं। कुछ ने गांव के मुखिया का भी रूप धरा। बिल्कुल देसी अंदाज में महिलाएं इस थीम पार्टी में शामिल हुईं । इनमें हाउसवाइफ के साथ ही वर्किंग वूमेन भी थीं। क्लब द्वारा इन सभी महिलाओं को एक-एक कैप्शन उपहार स्वरूप दिया गया। वहीं विदुषी महिला मंडल की संस्थापक मनीषा अग्रवाल ने बताया कोरोना काल में आखिर गांव ही काम आया। हम लोगों ने अपनी पार्टी के जरिए गांव के प्रति अपना आभार जताया और उस मिट्टी का सम्मान करते हुए उस दौर को जीने की कोशिश की जो कभी हमारी नानी दादी के जुबान से सुनी थी। हर सदस्य ने इसे थीम नहीं अपना कर्तव्य समझे हुए दिल से जिया। हमने कुछ कैप्शन दिए।
रमा, पूजा, गरिमा, अनुराधा, शालिनी सहित सभी सदस्यों को कैप्शन मिला जो इस प्रकार है। खींच लाता है गांव में बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद,लस्सी, गुड़ के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद'। याद है अब तक धीमरों के कुएं की छांव की कि यह जमीं है गांव की, हां ये जमीं है गांव की..हर कदम पर मिलती है पेड़ो की छाँव कुछ ऐसा ही है मेरा अपना गांव। मिट्टी की खुशबू के संग मैं हवा सा बहने वाला हूं, गर्व से कहता हूं मैं अपने गांव का रहने वाला हूं।