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दिसंबर तक पूरा हो जाएगा कोरोना की दवा पर अध्ययन, बीएचयू सहित 53 केंद्रों पर हो रहे 91 क्लीनिकल ट्रायल

उम्मीद है कि कोरोना की दवा पर दिसंबर तक यह अध्ययन पूर्ण हो जाएंगे। देश के 53 केंद्रों पर 91 ट्रायल हो रहे है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 10:42 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 01:42 AM (IST)
दिसंबर तक पूरा हो जाएगा कोरोना की दवा पर अध्ययन, बीएचयू सहित 53 केंद्रों पर हो रहे 91 क्लीनिकल ट्रायल
दिसंबर तक पूरा हो जाएगा कोरोना की दवा पर अध्ययन, बीएचयू सहित 53 केंद्रों पर हो रहे 91 क्लीनिकल ट्रायल

वाराणसी, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार आयुष की चिकित्सा पद्धतियों पर व्यापक रूप में वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं। इस समय करीब तीन लाख भारतीय आयुर्वेदिक औषधियों के कोरोना पर प्रभाव को लेकर चल रहे अध्ययन में भागीदारी कर रहे है। इन क्लीनिकल ट्रायल्स के प्रारंभिक रुझान उत्साहवर्धक हैं। उम्मीद है कि कोरोना की दवा पर दिसंबर तक यह अध्ययन पूर्ण हो जाएंगे। इसके बाद परिणाम का व्यापक वैज्ञानिक मापदंडों पर परीक्षण आइसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद), सीएसआइआर (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद) आदि वैज्ञानिक संगठनों के माध्यम से किया जाएगा। यह कहना है आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा का। वह जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में ऑनलाइन आयोजित तीन दिवसीय 22वें अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

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कोटेचा ने विश्व विशेषत: यूरोप के देशों को कोविड काल में भारत में किए जा रहे कार्यों से अवगत कराते कहा कि अखिल भारतीय आयुर्वेदीय संस्थान, नई दिल्ली में अनेक समझौतों के तहत शोध कार्य हो रहे हैं। इसके साथ ही देश के 53 केंद्रों पर 91 ट्रायल हो रहे है। इसी के तहत बीएचयू में प्रो. आनंद चौधरी एवं प्रो. जया चक्रवर्ती के संयोजन में दो क्लीनिकल ट्रायल्स हो रहे हैं। 'आयुर्वेद संजीवनी' एप के बारे में बताया कि केंद्र सरकार का लक्ष्य इस एप से 50 लाख लोगों को जोडऩे का था, लेकिन प्रसन्नता का विषय है कि अभी तक इससे लगभग डेढ़ करोड़ से ऊपर लोग जुड़कर आयुष चिकित्सा पद्धतियों से कोरोना काल में अपना स्वास्थ्य संवद्र्धन कर रहे हैं। संगोष्ठी में चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू स्थित रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विभाग के अध्यक्ष प्रो. आनंद चौधरी ने सहभागिता करते हुए 'प्राचीन आयुर्वेदीय भैषज्य कल्पनाओं पर आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत का प्रभाव एवं नए औषधि स्वरूप निर्धारण में इनकी उपयोगिता' पर अपने विचार रखे। उन्होंने यूरोप के 16 देशों के 221 लगभग प्रतिभागियों को बताया कि आयुर्वेद में स्वरस, क्वाथ, चूर्ण, अवलेह, गुग्गुल, आसव अरिष्ट, औषधीय तेल, घृत का निर्माण विभिन्न व्याधियों में व्याप्त वात, पित्त एवं कफ (त्रिदोष) को ठीक करने के लिए किया जा रहा है। बताया कि कोरोना काल में मनुष्य मात्र की व्याधि क्षमत्व (इम्युनिटी) क्षमता की वृद्धि में इनका विशेष प्रयोग है। आंवला, अश्वगंधा, च्यवनप्राश आदि रसायन द्रव्यों का प्रयोग कर भारतीय सुरक्षित हैं। संगोष्ठी में केरल से डा. राम मनोहर, गुजरात से प्रो. एसएन गुप्ता, नई दिल्ली से प्रो. तनुजा नेसरी, जोधपुर आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अभिमन्यु कुमार आदि ने भी विचार रखे।


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