सोनभद्र में दो जन्मांध भाई-बहन आशीष और सरिता की लगन और मेधा सिर्फ आंखों की मोहताज नहीं
कर्महीन इंसान को मृतक के समान माना गया है लेकिन वहीं दूसरा इंसान कृशकाय या दिव्यांग होते हुए भी श्रेष्ठ कर्मों की बदौलत प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
सोनभद्र [संतोष दुबे]। कर्महीन इंसान को मृतक के समान माना गया है लेकिन, वहीं दूसरा इंसान कृशकाय या दिव्यांग होते हुए भी श्रेष्ठ कर्मों की बदौलत प्रसिद्धि प्राप्त करता है। इसके एक नहीं बल्कि कई उदाहरण हैं। इसमें भक्तिकाल के महान संत सूरदास और वर्तमान में शंकराचार्य रामभद्राचार्य और महान संगीतकार रवींद्र जैन शामिल हैं। इनकी ख्याति जन-जन में हैं। इन लोगों ने दुनिया तो नहीं देखी लेकिन, अपनी-रचनाओं में जो भाव प्रकट किए वो अन्य की क्षमता से बाहर है। कुछ इसी दिशा की ओर चल पड़े हैं बभनी विकास खंड को दो जन्मांध भाई-बहन आशीष और सरिता।
ग्राम पंचायत धनवार के चकबकदरीसानी गांव के शिक्षामित्र उदय प्रसाद की ये दोनों संतान हैं। पुत्री बड़ी है। आंख न होने की सूचना हृदय की वेदना तो पढ़ाई। यह और तब बढ़ गई जब पुत्र भी जन्मांध हुआ। पिता उदय प्रसाद कहते हैं, चिंता पालन-पोषण को लेकर नहीं बल्कि उनकी स्वयं की जिंदगी को लेकर हुई थी। ये स्वाभाविक भी था। समय बीता और सोच बदली। होनहार वीरवान के होत चिकने पात की कहावत को चरितार्थ करने वाले गुणों से संपन्न पुत्री-पुत्र को पिता उदय ने पढ़ाई कराने की सोच से कभी विमुख नहीं हुआ। उन्होंने प्रारंभिक पढ़ाई राज अंध विद्यालय इलाहाबाद शुरू कराई है।
आठवीं पास करने के बाद दोनों घर आ गए और ब्रेल लिपि से आगे की पढ़ाई की। सरिता ने हाई स्कूल प्रथम और इंटरमीडिएट द्वितीय श्रेणी में पास किया। अब वह जनता महाविद्यालय में स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्र हैं। वहीं आशीष राजकीय इंटर कालेज चपकी में इंटर में है। प्रधानाचार्य सबिता जायसवाल ने बताया कि आशीष काफी प्रतिभाशाली है। गायन में उसका कोई तोड़ नहीं है। दोनों भाई-बहन का लक्ष्य सभी को शिक्षित करना है। वह भी शिक्षक बनकर। दोनों ने कहा, मेरी लगन सिर्फ आंखों की मोहताज नहीं है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए इन्हें 20 किमी की दूरी तय करनी होती है। अब स्थितियां ये हैं कि अन्य अभिभावकों के लिए ये बच्चे प्रेरणादायी सिद्ध हो रहे हैं।