Sara Ali Khan की आस्था को बनारस का सलाम, धमाचार्यों ने कहा पूजन पद्धति अंत: करण का मामला
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में फिल्म अभिनेत्री सारा अली खान द्वारा दो दिन पहले दर्शन-पूजन के बाद उठे विवाद पर कुछ ऐसा ही बयान काशी के धर्माचार्यों की जुबान पर आया।
वाराणसी, जेएनएन। भोले भाव के भूखे और समभाव उनकी पहचान फिर भला उनके दरबार में किसी तरह के भेद को कहां स्थान। चंद्र भाल, गले सर्पमाल और बैल की सवारी करने वाले बाबा ने अपने आचार-व्यवहार और वेशभूषा से यही दिखाया-समझाया। नए दौर में आएं तो नौबतखाने में बैठ उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने उन्हें मध्याह्न भोग आरती के समय शहनाई की तान से मनाया तो फिर उनके दर्शन में किसी तरह की रोक-छेक का सवाल कैसे आया। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में फिल्म अभिनेत्री सारा अली खान द्वारा दो दिन पहले दर्शन-पूजन के बाद उठे विवाद पर कुछ ऐसा ही बयान काशी के धर्माचार्यों की जुबान पर आया। सारा की आस्था को को सलाम किया।
महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट स्थित सतुआ बाबा पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर संतोषदास महाराज संतों-ऋषियों का हवाला देते रामानंदाचार्य की पंक्ति जात-पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का कोई... सुनाते हैैं। कहते हैैं बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ का दरबार सभी के लिए है। जो भी बाबा में आस्था-श्रद्धा दिखाए हम अपनाएं। देश-विदेश से लोग आते भी हैैं फिर किसी व्यक्ति विशेष के लिए कहां से सवाल उठ जाते हैैं। इस तरह का विरोध सनातन धर्म के लिए ठीक नहीं।
ख्यात ज्योतिषाचार्य प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय अहिल्याबाई द्वारा मंदिर निर्माण के बाद मुख्य द्वार पर सिर्फ आर्य समाजियों के लिए प्रवेश के लिए लगाए गए शिलापट्टï की ओर ध्यान दिलाते हुए उसे तत्कालीन सामाजिक परिवेश की जरूरत बताते हैैं। कहते हैैं इससे इतर लोगों के दर्शन के लिए रजिस्टर पर आस्था दर्ज कर मंदिर प्रशासन की ओर से व्यवस्था की गई है। बहुत सारे विदेशी आते हैैं, जब उन्हें नहीं रोका जाता तो सारा को क्यों। हमारे आराध्यदेव को कोई सम्मान दे तो भला इसका विरोध क्यों। धर्मशास्त्रों में भले रोक हो लेकिन समय की मांग अनुसार बहुत सारी चीजें बदलती चली गईं और बदलती जा रही हैैं। ऐसे में लचीला होना पड़ेगा। तमाम हिंदू भी आज मजार पर जाते हैैं, मुसलमान संकट मोचन और बाबा विश्वनाथ का दर्शन कर आते हैैं लेकिन सारा सेलिब्रिटी होने से पहचान ली गई। हमें बदले दौर के अनुसार लचीला होना पड़ेगा।
अखिल भारतीय विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महासचिव डा. कामेश्वर उपाध्याय पूजन पद्धति को हृदय के भीतर का मामला बताते हैैं। कहते हैैं आस्था अंतकरण का मामला है, आप उसे बांध नहीं सकते। जो लोग कट्टïरता की बात करते हैैं वे क्यों नहीं देखते कि अरब देशों ने अपने यहां मंदिर बनाने की अनुमति प्रदान की और सुरक्षा भी दी। जो भी लिबरल व्यक्ति हिंदुत्व के साथ जुडऩा चाहता है उसके लिए हम मार्ग बंद करते हैैं तो हमारी दकियानुसी विचारधारा होगी। ये वही गलती होगी जो काशी विद्वत परिषद ने कश्मीरी मुसलमानों को हिंदुत्व में लौटने से मना किया था।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के पूर्व अध्यक्ष महामहोपाध्याय पद्मश्री डा. हरिहर कृपालु त्रिपाठी महाराज के अनुसार सनातन धर्म में आस्था है तो बाबा का दर्शन करने देने में कोई हर्ज नहीं। हां, दर्शन प्रदर्शन की चीज नहीं। बाबा का दर्शन के लिए लुकाछिपी की भी जरूरत नहीं, आस्था है तो बताइए और और बाबा दर्शन कर जाइए।