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शिक्षा से वंचित बच्चों में बीएचयू के शोधछात्र ज्ञान का भर रहे रंग, पेड़ के नीचे चलती कक्षा

वाराणसी में बीएचयू के शोध छात्रों की पहल पर शिक्षा की ठांव बन चुकी बरगद की छांव के नीचे बच्चों के ककहरा रटने की गूंज होती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 09 Mar 2019 10:01 PM (IST)Updated: Sun, 10 Mar 2019 10:05 AM (IST)
शिक्षा से वंचित बच्चों में बीएचयू के शोधछात्र ज्ञान का भर रहे रंग, पेड़ के नीचे चलती कक्षा
शिक्षा से वंचित बच्चों में बीएचयू के शोधछात्र ज्ञान का भर रहे रंग, पेड़ के नीचे चलती कक्षा

वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। रामनगर के भीटी गांव में पंचवटी मंदिर के बाहर बरगद के पेड़ तले शाम को रोज बच्चों का हुजूम उमड़ता है। बीएचयू के शोध छात्रों की पहल पर शिक्षा की ठांव बन चुकी बरगद की छांव के नीचे बच्चों के ककहरा रटने की गूंज होती है। शिक्षा से वंचित बच्चे पढ़ाई संग योग व खेल के सहारे जीवन को दिशा देने में जुटे हैं। यह वे बच्चे हैं जिनकी परवरिश बदहाल तंबू वाले 'घरों' में होती है। जहां सुबह उठने पर न तो कल से कोई उम्मीद होती है, न आज से कोई शिकायत। जिस माहौल में वे जी रहे थे वहां उन्हें इससे अच्छी जिंदगी की समझ ही नहीं, मगर अब उनकी जिंदगी संवर रही। बरगद की छांव में अब उनका बचपन खिल रहा है। उनकी जिंदगी में रंग भर रहे हैं चित्रकार व बीएचयू दृश्य कला संकाय के शोध छात्र सुबोध कुमार राय। वे अभ्युदय संस्था की मदद से करीब 100 बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। 

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अवकाश को छोड़ नियमित कक्षाएं : अवकाश को छोड़कर नियमित रूप से शाम को साढ़े तीन से साढ़े छह बजे तक कक्षाएं चलती हैं। खास बात यह कि बच्चों को पढ़ाई के बीच में आधे घंटे योग, खेल व अन्य शारीरिक श्रम वाली गतिविधियों का भी नियमित अभ्यास कराया जाता है।

आसान न थी यह पाठशाला : जब पहली बार बच्चे इस कक्षा में आए थे तो कंघी से दूर बिखरे बाल और महीनों स्नान से दूर काया पर जमी मैल की मोटी परत ने शरीर के रंग के साथ उनके बचपन को भी धूमिल कर दिया था। उन्हें छूने से पहले लोग हिचकिचाते, मगर बीएचयू के शोध छात्रों व अभ्युदय संस्था ने बच्चों का भविष्य गढऩे का बीड़ा उठा लिया। 

बालों के लिए शैंपू डे भी : संस्था की सचिव व समाज सेविका डा. शारदा सिंह और सुबोध राय बताते हैं कि छात्रों व छात्राओं के बाल धुलने के लिए सप्ताह में एक दिन शैंपू डे मनाया जाता है। एक दिन बच्चों के बाल शैंपू या मेडिकेयर से साफ कराए जाते हैं। पढ़ाई से बच्चों में नई चेतना का संचार हुआ है। वे नहाकर न केवल पढऩे आ रहे, बल्कि रंगोली बनाना, मेहंदी लगाना, खेलकूद में रुचि ले रहे हैं।

बड़े भी अक्षर ज्ञान से महरूम : कक्षा में चार से 16 साल तक की उम्र वाले बच्चे पढऩे आते हैं। इन बच्चों के परिजन भी अक्षर ज्ञान से दूर रहे। पढ़ाई क्या होती है इससे वे अनजान थे। ऐसे में बच्चों को प्रेरित करना बड़ी चुनौती थी। 

प्राइमरी में 25 बच्चों का दाखिला : बच्चों को रंग-बिरंगी सुसज्जित किताबें, मिठाई, टॉफी व पाठ्य सामग्री देकर शिक्षा की छांव में लाया गया। पिछले साल इसमें 25 बच्चों का नजदीक के प्राथमिक स्कूल में दाखिला कराया गया। समय-समय पर बच्चों का हेल्थ चेकअप कराया जाता है।

पट रही अशिक्षा की खाई भी : सुबोध बताते हैं कि आज बच्चे खुद यहां आने-पढऩे के लिए उत्सुक रहते हैं। इसके सहारे पीढिय़ों से चली आ रही अशिक्षा की खाई को भी पाटने में सफलता मिली है।


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