खाड़ी देशों तक पहुंची बुलेट आकार की अनोखी मिर्च, भारतीय सब्जी अनुसंधान ने की खोज
अरब देशों की रसोई में अब काशी की आभा भी होगी। चौंकिए नहीं वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से तैयार मिर्च की नई प्रजाति काशी आभा खाड़ी देशों की जरूरतें पूरे करेगी।
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव] । अरब देशों की रसोई में अब काशी की आभा भी होगी। चौंकिए नहीं, वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से तैयार मिर्च की नई प्रजाति 'काशी आभा' खाड़ी देशों की जरूरतें पूरे करेगी। हरी मिर्च का निर्यात बढ़े इसके लिए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर) ने नई प्रजाति काशी आभा विकसित की है। इसमें गुरचा, सडऩ, पीली चीटियां लगने की समस्या नहीं होगी। छोटी-बुलेट साइज की मिर्च में कई रोगों से लडऩे की क्षमता है। छोटी होने से परिवहन में आसानी होगी। निकट भविष्य में यह खाड़ी देशों की मांग पूरा करेगी। देश में सूखी मिर्च की निर्यात की स्थिति काफी हद ठीक है, मगर हरी मिर्च के निर्यात में अन्य कई देश आगे हैं।
इस मिर्च में यह भी खासियत : आइआइवीआर के निदेशक डा. जगदीश सिंह बताते हैं कि काशी आभा में जलवायु परिवर्तन यानी कम या ज्यादा तापमान में ढलने की खासियत है। उपज प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल है। कहाकि यह गर्व की बात है कि यहां के वैज्ञानिकों ने इस तरह की नई प्रजाति खोजी है। इसके अलावा भी सब्जी की कई प्रजाति विकसित की गई हैं।
निर्यात, प्रसंस्करण, भंडारण के अनुरूप : इस मिर्च को प्रधान वैज्ञानिक डा. राजेश कुमार व उनकी टीम ने विकसित किया है। डा. कुमार के अनुसार यह मिर्च निर्यात, प्रसंस्करण व भंडारण के अनुरूप विकसित की है। प्रदेश केबाद केंद्र की सीवीआरसी (सेंट्रल वेरायटी रिलीज कमेटी) की ओर से पिछले माह इसे हरी झंडी मिल गई है।
काफी तीखी है यह मिर्च : डा. राजेश बताते हैं कि यह मिर्च काफी तीखी है। इसमें कैप्साइसिन पर्याप्त मात्रा में है, जिससे तीखापन है। खाड़ी देशों में तीखी मिर्च की मांग है। जिसे काशी आभा पूरी करने में कारगर सिद्ध होगी।
पचास दिन में होती तैयार : हरे रंग की मिर्च की लंबाई 5 से 6 सेमी व मोटाई 1.5 से 1.8 सेमी है। पहली तोड़ाई रोपाई के लगभग 50 दिनों के बाद की जा सकती है। यह मिर्च सामान्य तापमान में करीब 15 दिनों तक सुरक्षित रह सकती है, जबकि अन्य मिर्च 6-7 दिनों तक ही सुरक्षित रहती है।
किसान खुद तैयार कर सकेंगे बीज : इस मिर्च में यह भी खासियत है कि यह मुक्त परागित किस्म है। यानी यह हाइब्रिड नहीं है। ऐसे में किसान खुद भी इसके बीज को तैयार कर सुरक्षित रख सकेंगे।