वाराणसी क्षेत्र के छह नए जीआइ उत्पादों की दुनिया में जमेगी साख, 11 जिलों में 22 हजार करोड़ का सालाना कारोबार
अंतरराष्ट्रीय बाजार में विशुद्ध उत्पाद की लगातार बढ़ती मांग के क्रम में काशी के छह नए जीआइ टैग लगे उत्पाद फायदेमंद साबित होंगे। अभी तक 12 जीआइ उत्पाद ही थे। कुल 18 जीआइ उत्पाद के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ने से वर्तमान कारोबार 22 हजार करोड़ सालाना बढ़ोतरी होगी।
वाराणसी, अरुण कुमार मिश्र। अंतरराष्ट्रीय बाजार में विशुद्ध उत्पाद की लगातार बढ़ती मांग के क्रम में काशी के छह नए जीआइ टैग लगे उत्पाद फायदेमंद साबित होंगे। अभी तक 12 जीआइ उत्पाद ही थे। कुल 18 जीआइ उत्पाद के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ने से वर्तमान कारोबार 22 हजार करोड़ सालाना (अनुमानित) और 20 लाख रोजगार (प्रत्यक्ष-अप्रत्क्ष) में सकारात्मक बढ़ोतरी होगी। दअरसल, पूरी दुनिया किसी न किसी रूप से प्रदूषण के गिरफ्त में है। इसमें खाने-पीने, पहनावे, आभूषण, खिलौने से लेकर सभी सामान प्रभावित हैं। ऐसे में विशिष्ट पहचान रखने वाला जीआइ उत्पाद ग्राहकों की पहली पसंद बनकर उभर रहा है। यही कारण है कि समूची दुनिया के बाजार में दिनोंदिन ऐसे उत्पादों की साख जम रही है।
छह नए उत्पाद और उसकी विशिष्टता
चुनार रेडक्ले ग्लेज पाटरी - मर्तबान से लेकर जार तक और कप-प्लेट,फ्लावर पाट से लेकर खिलौने से शायद ही कोई परिवार अछूता होगा। शिल्पी गंगा की मिट्टी से विभिन्न प्रकार के बर्तनों, सजावटी सामानों को तैयार करते हैं।
जरी-जरदोजी एवं हैंड इंब्रायडरी - रेशम एवं जरी के बैज, मुकुट, वस्त्र बनाने का कार्य-दुनिया के लगभग सभी राष्ट्राध्यक्षों, सेनाओं, पुलिस, महत्वपूर्ण स्कूलों के मोनोग्राम, बैज, मुकुट, आभूषण, वस्त्र बनाए जाते हैं।
हैंड ब्लाक प्रिंटिंग क्राफ्ट - इस उद्योग में लकड़ी एवं पीतल का ब्लाक बनाकर विभिन्न प्रकार के रंगों के समायोजन से सूती, रेशमी, एवं अन्य वस्त्रों पर छपाई का उत्कृष्ट कार्य किया जाता है।
वूड कार्विंग क्राफ्ट - विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों में अशोका पीलर, बुद्ध की मूर्तियां, कमल छतरी, फूलदान, बाक्स आदि बनारस के आसपास शिल्पी बनाते हैं।
मीरजापुर पीतल बर्तन - पीतल के बर्तन समेत अन्य धातुओं के मिश्रण से निर्मित हंडा, परात, गगरा, कटोरा, कटोरी, गिलास, कलश, एवं फूल की थालियां बनाई जाती हैं।
मऊ की साड़ी : सूती साड़ी के इस कारोबार से मऊ में दो हजार हैैंडलूम बुनकर परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जुड़े हैैं। इस हुनर के नाम तीन नेशनल अवार्ड हैैं।
क्या है जीआइ टैग
जीआइ टैग यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग भारतीय संसद ने 1999 में पंजीकरण और सुरक्षा एक्ट के तहत “ज्योग्राफिक इंडिकेशन आफ गुड्स” लागू किया था। इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाई जाने वाली विशिष्ट वस्तु पर कानूनी अधिकार उसे राज्य को दिया जाता है। जीआइ टैग के फायदे यह हैं कि इसके मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में उस वस्तु की कीमत और उसका महत्व बढ़ जाता है। इस वजह से इसका एक्सपोर्ट बढ़ जाता है।
जीआई पंजीकृत उत्पाद - (आंकड़े अनुमानित)
जिला - जीआइ उत्पाद - बाजार - रोजगार
बनारस - ब्रोकेड एवं साड़ी - 2000 करोड़ - पांच लाख
भदोही - हस्तनिर्मित कालीन - 8 हजार करोड़ - 10 लाख
मीरजापुर - हस्तनिर्मित दरी - 200 करोड़ - 50 हजार
बनारस - मेटल रिपोजी क्राफ्ट - 100 करोड़ - 500
वाराणसी - गुलाबी मीनाकारी - 10-12 करोड़ - 200
वाराणसी - वुडेन लेकर वेयर एंड ट्वायज - 10 करोड़ - 2 हजार
निजामाबाद - ब्लैक पाटरी - 2 करोड़ - 500
बनारस - ग्लास बीड्स - 100 करोड़ - 5000
वाराणसी - साफ्टस्टोन जाली वर्क - 10 करोड़ - 500
गाजीपुर - वाल हैंगिंग - 5 करोड़ - 3000
चुनार - बलुआ पत्थर - 500 करोड़ - 2000 शिल्पी
गोरखपुर - टेराकोटा क्राफ्ट - तीन कराेड़ - 500
चुनार - रेडक्ले ग्लेज पाटरी - पांच करोड़ - 300 शिल्पी
बनारस - जरी-जरदोजी व हैंड इंब्रायडरी - 100 करोड़ - 20 हजार
बनारस - हैंड ब्लाक प्रिंटिंग क्राफ्ट - 20 करोड़ - 200 शिल्पी
बनारस - वूड कार्विंग क्राफ्ट - चार कराेड़ - 1000 शिल्पी
मीरजापुर - पीतल बर्तन - 100 करोड़ 20 हजार
मऊ - साड़ी - 200 करोड़ -200 हजार
उम्मीदों का आसमान
जीआइ टैग लगने से वस्तुओं के प्रति खरीदारों का विश्वास पक्का हो रहा है। यही कारण है कि विदेशों से लगातार इसकी मांग बढ़ रही है। -डा. रजनीकांत, जीआइ विशेषज्ञ।
जीआइ उत्पाद की विशिष्टता उसकी पहचान है। इको फ्रेंडली उत्पाद होने से स्वस्थ समाज का निर्माण होगा। विभाग ऐसे उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर काम कर रहा है। ये जितना मजबूत होगा गांवों से युवाओं का पलायन रुकेगा।
- वीरेंद्र कुमार, उपायुक्त, उद्योग।