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सितार वादक पं. रविशंकर : काशी के लाल ने भारतीय संगीत को पहुंचाया सात समुंदर पार

पं. रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को वाराणसी में हुआ था उनका परिवार पूर्वी बंगाल के जैस्सोर जिले के नरैल का रहने वाला था।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 07 Apr 2019 02:34 PM (IST)Updated: Sun, 07 Apr 2019 03:11 PM (IST)
सितार वादक पं. रविशंकर : काशी के लाल ने भारतीय संगीत को पहुंचाया सात समुंदर पार
सितार वादक पं. रविशंकर : काशी के लाल ने भारतीय संगीत को पहुंचाया सात समुंदर पार

वाराणसी, जेएनएन। काशी की संगीत परंपरा में पंडित रविशंकर का नाम शीर्ष पर रहा है। उनहोंने सितार वादन की परंपरा को सात समुंदर पार भी फैलाया और काशी का नाम विश्‍व स्‍तर पर संगीत के क्षेत्र में ऐसा किया कि आज भी काशी में संगीत की शिक्षा लेने अाने वाले विदेशियों का क्रम अनवरत बना हुआ है। पं. रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को वाराणसी में हुआ था। उनका परिवार पूर्वी बंगाल के जैस्सोर जिले के नरैल का रहने वाला था। आज रविवार को 100वीं जयंती काशी में उनके शिष्‍यों की ओर से मनायी जा रही है।

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पं. रविशंकर की आरंभिक संगीत शिक्षा घर पर ही हुई। उस समय ख्‍यात संगीतकार और संगीतज्ञ उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां को इन्होंने अपना गुरु बनाया। यहां से संगीत यात्रा जाे प्रारंभ हुई वह अनवरत जारी रही। अलाउद्दीन ख़ां ने रविशंकर की क्षमता को देखते हुए अपना प्रिय शिष्य बनाया। हालांकि वह तत्‍कालीन समय में देश के ख्‍यात तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ां, किशन महाराज व सरोद वादक उस्ताद अली अकबर ख़ान के साथ भी लंबे समय तक जुड़े रहे। पहले उनकी रुचि नृत्य में भी थी मगर बाद में इस विधा के अतिरिक्‍त उन्‍होंने सितार पर ध्‍यान देना शुरु किया और वही उनकी पहचान बन गई। सितार वादक पंडित रविशंकर का अमेरिका के सेन डियागो में निधन 92 वर्ष की अवस्‍था में हुआ था। 100 वीं जयंती के मौके पर काशी में उनको याद करने वालों की आज भी कोई कमी नहीं है। उनके शिष्‍य आज भी काशी में संगीत परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। इस लिहाज से काशी की संगीत परंपरा का क्रम अनवरत आज भी जारी है। 

मिला भारत रत्‍न : पंडित रविशकर को उनके संगीत सफर के लिए वर्ष 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था। उन्हें 14 मानद डॉक्ट्रेट, पद्म विभूषण, मेगसायसाय पुरस्कार, तीन ग्रेमी अवॉर्ड और 1982 में गांधी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ मौलिक संगीत के लिए जार्ज फेन्टन के साथ नामांकन मिला था। इसके अतिरिक्‍त भी कई वैश्विक आयोजनों में उनको संगीत के लिए वह सम्‍मान मिला जो शायद ही किसी को नसीब होता हो। 


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